सोमवार, 30 नवंबर 2020

देवि ! सुरेश्वरि ! भगवति ! गंगे !.../ आदि शंकराचार्य / संगीत एवं स्वर : पण्डित हरिनाथ झा

 https://youtu.be/ZDFXFiP3sSg 

देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे! त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे। 

शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥1 ॥

हे देवी! सुरेश्वरी! भगवती गंगे! आप तीनों लोकों को तारने वाली हैं। 

शुद्ध तरंगों से युक्त, महादेव शंकर के मस्तक पर विहार करने वाली 

हे मां! मेरा मन सदैव आपके चरण कमलों में केंद्रित है।

भागीरथीसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।

नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ 2 ॥

हे मां भागीरथी! आप सुख प्रदान करने वाली हो। आपके दिव्य जल 

की महिमा वेदों ने भी गाई है। मैं आपकी महिमा से अनभिज्ञ हूं। 

हे कृपामयी माता! आप मेरी रक्षा करें।

हरिपदपाद्यतरंगिणी गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे।

दूरीकुरुमम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ 3 ॥

हे देवी! आपका जल श्री हरि के चरणामृत के समान है। 

आपकी तरंगें बर्फ, चंद्रमा और मोतियों के समान धवल हैं। 

कृपया मेरे सभी पापों को नष्ट कीजिए और इस संसार सागर 

के पार होने में मेरी सहायता कीजिए।

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम्।

मातर्गंग त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ 4 ॥

हे माता! आपका दिव्य जल जो भी ग्रहण करता है, वह परम पद 

पाता है। हे मां गंगे! यमराज भी आपके भक्तों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे।

भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये !पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ 5 ॥

हे जाह्नवी गंगे! गिरिवर हिमालय को खंडित कर निकलता हुआ 

आपका जल आपके सौंदर्य को और भी बढ़ा देता है। आप भीष्म 

की माता और ऋषि जह्नु की पुत्री हो। आप पतितों का उद्धार करने 

वाली हो। तीनों लोकों में आप धन्य हो।

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।

पारावारविहारिणिगंगे विमुखयुवति कृततरलापंगे॥ 6 ॥

हे मां! आप अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली हो। 

आपको प्रणाम करने वालों को शोक नहीं करना पड़ता। हे गंगे! आप 

सागर से मिलने के लिए उसी प्रकार उतावली हो, जिस प्रकार एक 

युवती अपने प्रियतम से मिलने के लिए होती है।

तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः।

नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे। ॥ 7 ॥

हे मां! आपके जल में स्नान करने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता। 

हे जाह्नवी! आपकी महिमा अपार है। आप अपने भक्तों के 

समस्त कलुषों को विनष्ट कर देती हो और उनकी नरक से रक्षा करती हो।

पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।

इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ 8 ॥

हे जाह्नवी! आप करुणा से परिपूर्ण हो। आप अपने दिव्य जल 

से अपने भक्तों को विशुद्ध कर देती हो। आपके चरण देवराज 

इंद्र के मुकुट के मणियों से सुशोभित हैं। शरण में आने वाले को 

आप सुख और शुभता प्रदान करती हो।

रोंगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।

त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ 9 ॥

हे भगवती! मेरे समस्त रोग, शोक, ताप, पाप और कुमति को 

हर लो। आप त्रिभुवन का सार हो और वसुधा का हार हो, हे देवी!  

इस समस्त संसार में मुझे केवल आपका ही आश्रय है।

अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।

तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥ 10 ॥

हे गंगे! प्रसन्नता चाहने वाले आपकी वंदना करते हैं। 

हे अलकापुरी के लिए आनंद-स्रोत हे परमानंद स्वरूपिणी! 

आपके तट पर निवास करने वाले वैकुंठ में निवास करने 

वालों की तरह ही सम्मानित हैं।

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।

अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ 11 ॥

हे देवी! आपसे दूर होकर एक सम्राट बनकर जीने से अच्छा है 

आपके जल में मछली या कछुआ बनकर रहना अथवा आपके 

तीर पर निर्धन चंडाल बनकर रहना।

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।

गंगा स्तवमिमममलं नित्यं पठति नरे यः स जयति सत्यम् ॥ 12 ॥

हे ब्रह्मांड की स्वामिनी! आप हमें विशुद्ध करें। जो भी यह गंगा 

स्तोत्र प्रतिदिन गाता है, वह निश्चित ही सफल होता है।

येषां हृदये गंभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।

मधुराकंता पञ्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः ॥ 13 ॥

जिनके हृदय में गंगा जी की भक्ति है। उन्हें सुख और मुक्ति 

निश्चित ही प्राप्त होते हैं। यह मधुर लययुक्त गंगा स्तुति 

आनंद का स्रोत है।

गंगा स्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।

शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः ॥ 14 ॥

भगवत चरण आदि जगद्गुरु द्वारा रचित यह स्तोत्र हमें विशुद्ध कर 

हमें वांछित फल प्रदान करे।


शनिवार, 28 नवंबर 2020

बारो कृष्णैय्या.../ सन्त कनक दास (१५०९-१६०९) / कु. सम्पूर्ति राव

https://youtu.be/4ikBnS2oDuw

 

baarO krishNayya
Composer: Saint Kanaka Daasa
Translated  by
Chakravarti Madhusudan

raagam: maanD, (Also sung in Mishra Piloo and Jonpuri); taaLam: aadi

pallavi :
baarO krShnayya krShnayya baarO krShnayya ninna bhaktara manegeega

anupallavi :
baarO ninna mukha tOrO ninna sari yaarO jagadhara sheelanE 

charaNam 1 :
andugE padukavu kaalandugE kiru gejje dhim dhimi 
dhimi dhimi dhimi enuta pongoLalanooduta baarayya
 
charaNam 2
kankaNa karadalli ponnungura hoLeyuta kinkiNi kiNI kiNi kiNi enuta 
pongoLalanooduta baarayya baarO krShnayya

CharaNam 3 :
vaasa uDupili nElayAdi kEshavanE daasa ninna pada daasa ninna pada
daasa ninna pada daasa kanakanu baarayya

Translation:
Come Krishna, come to your devotees house now.
Come, show your face, who is comparable to you, 
the supporter of universe?
You have sandals on your feet, anklets and small bells 
that make the sound dhim dhimi worn on your ankles. 
Come, playing the golden flute.
You have sparkling gold rings and bangles in your hand 
that make the sound kinkini kini kini. Come, playing the 
golden flute.
Oh Adi Keshava, you dwell in Udupi; I, Kanaka, am a humble 
devotee of your feet, please come to me.

Saint Kanaka Dasa (1509 – 1609) was a Haridasa, 
a renowned composer of Carnatic music, poet, philosopher 
and musician. He is known for his keertanas and ugabhoga, 
compositions in the Kannada language for Carnatic music. 
Like other Haridasas, he used simple Kannada language and 
native metrical forms for his compositions.

Spoorthi Santosh Rao : 
In the world of carnatic music. Kum. Spoorthi is the Disciple of 
Vidwan Ranjani & Vidwan Gayatri. Born on 03/04/2005 in Bangluru, 
Karnatka, Kum. Spoorthi Rao was the title Winner of Super Singer 
Junior Season 4. She studied in Sri Aurobindo Memorial School and 
received musical training in light music from Narahari Dixit, tabla from 
Pt. Rajgopal Kallurkar, Carnatic music from Yashasvi Subbarao, and 
playback singing from Parthu Nemani.


शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

गगन सदन तेजोमय.../ लता मंगेशकर / चित्रपट : उंबरठा (मराठी, १९८२)

https://youtu.be/KGLtYbsIMAE

संगीत : पं. हृदयनाथ मंगेशकर गीत : वसंत बापट स्वर : लता मंगेशकर चित्रपट : उंबरठा

शब्दरचना :

गगनसदन तेजोमय
तिमिर हरून करुणाकर
दे प्रकाश देई अभय
छाया तव, माया तव
हेच परम पुण्यधाम
वार्‍यातून तार्‍यांतुन
वाचले तुझेच नाम
जगजीवन जनन-मरण
हे तुझेच रूप सदय
वासंतिक कुसुमांतून
तूच मधुर हासतोस
मेघांच्या धारांतुन
प्रेमरूप भासतोस
कधि येशील चपलचरण
वाहिले तुलाच हृदय
भवमोचन हे लोचन
तुजसाठी दोन दिवे
कंठातील स्वर मंजुळ
भावमधुर गीत नवे
सकलशरण मनमोहन

सृजन तूच, तूच विलय

Umbartha (Marathiउंबरठा; English: The Doorstep) is a 1982 

Marathi film produced by D. V. Rao and directed and coproduced 

by Dr. Jabbar Patel. The film is a story of a woman's dream to 

step outside her four walled home and bring change in the society. 

Smita Patil played the lead protagonist in the film for which she won 

Marathi Rajya Chitrapat Puraskar for Best Actress. The film was 

adjudged as the Best Feature Film in Marathi at the 29th National 

Film Awards for "a sincere cinematic statement on the theme of a 

woman seeking to establish her identity by pursuing a career, even 

at the risk of alienation from her family".

The film is based on a Marathi novel "Beghar" (Homeless) by 

Shanta Nisal and was also simultaneously made in Hindi as Subah 

with the same cast.

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

ज़ाहिद ने मेरा हासिल-ए-ईमां नहीं देखा - असग़र गोंडवी / आबिदा परवीन

https://youtu.be/_hwD7kxbT

असग़र गोंडवी (१८८४ -१९३६) गोण्डाभारत

प्रख्यात पूर्व-आधुनिक शायर, अपने सूफ़ियाना लहजे के लिए प्रसिद्ध। 

मस्ती में फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जानाँ नहीं देखा

सुनते हैं बहार आई गुलिस्ताँ नहीं देखा

ज़ाहिद ने मिरा हासिल-ए-ईमाँ नहीं देखा

रुख़ पर तिरी ज़ुल्फ़ों को परेशाँ नहीं देखा

आए थे सभी तरह के जल्वे मिरे आगे

मैं ने मगर दीदा-ए-हैराँ नहीं देखा

इस तरह ज़माना कभी होता पुर-आशोब

फ़ित्नों ने तिरा गोशा-ए-दामाँ नहीं देखा

हर हाल में बस पेश-ए-नज़र है वही सूरत

मैं ने कभी रू-ए-शब-ए-हिज्राँ नहीं देखा

कुछ दावा-ए-तमकीं में है माज़ूर भी ज़ाहिद

मस्ती में तुझे चाक-गरेबाँ नहीं देखा

रूदाद-ए-चमन सुनता हूँ इस तरह क़फ़स में

जैसे कभी आँखों से गुलिस्ताँ नहीं देखा

मुझ ख़स्ता महजूर की आँखें हैं तरसती

कब से तुझे सर्व-ख़िरामाँ नहीं देखा

क्या क्या हुआ हंगाम-ए-जुनून ये नहीं मालूम

कुछ होश जो आया तो गरेबाँ नहीं देखा

शाइस्ता-ए-सोहबत कोई उन में नहीं 'असग़र'

काफ़िर नहीं देखे कि मुसलमाँ नहीं देखा


Us ka mukh ik jot hai ghoonghat hai sansaar
Ghoonghat mein vo chup gaya mukh per aanchal daar(daal)
(This might be pushing it, but this is my exegesis of the couplet.
Her face is like light (guiding light) and the ghoonghat is the world --
symbolizing life and the struggle to find a place in the world.
She hid herself in her veil and covered her face. Meaning the
guiding light is lost/hidden in the world, and it's up to the lover
to find it. How else will he reach his destination?!)

Zaahid ne mera hasil-e-eimaa.n nahin dekha
Rukh per teri zulfon ko pareeshaa.n nahin dekha

(The pious has not seen how I attained my faith.  
He has not seen the lock of hair spreading on your
cheek, in worry. Implying that the pious remains pious,
since he has not fallen in love, if he had seen your beauty
your emotions your face your hair and its beauty in
different emotions, he would not be a worshipper
anymore, he would have become a lover like me,
he would have attained faith, yaqeen,-certainity or
faith is a higher stage than worship)

Her haal mein bus pesh-e-nazar hai vohi soorat
Main ne kabhi roo-e-shab-e-hijraa.n nahin dekha

(In every condition, you are all that I think of, I've never
seen a night of separation, meaning you were always with
me, even if only as my thought, but I was with you)

Aaye thay sabhi tarah ke jalvay meray aagay
Main ne magar aye deeda-e-hairaa.n nahin dekha
(There have been many wonderful sights that have come before
my eyes, but I didn't see any of them that would surprise me.
Implying miracles were happening right and left around me
and infront of me but I was not surprised, what really had
grabbed my attention was your face, nothing else seemed
as important anymore. )

Kiya kiya hua hangaam-e-junoo.n yeh nahin maaloom
Kuch hosh jo aaya to gareebaa.n nahin dekha
(I don't know what chaos has taken place here. All I know is, when
I came to my senses I had not have my collar to look into.
Implying I was so lost in love totally unaware of what was
happening around me, such that when I came back to look at
myself, there was no more of myself, it had annihilated into you )