रविवार, 16 जून 2013

दुआ दो ‘मीर’ को........

दुआ दो  ‘मीर’  को........

-अरुण मिश्र
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दुआ दो  ‘मीर’  को,  टुक चैन से  ज़न्नत में  वो सोवे। 
‘अरुन’ तुम यां रखो क़ायम वही अन्दाज़े-दर्द-आगीं।।
  
छलकतीं  रात-दिन  जो दर्द से,  अल्ला के आलम में। 
सुला के  ख़्वाहिशें  कितनी,  ये आँखें  रात भर जागीं।।
  
बहुत  ग़म हैं  ज़माने में,  तो  थोड़ी  सी  खुशी  भी  है। 
मिलन  के  एक  पल   में,   सैकड़ों  तन्हाइयां   भागीं।।

हैं  मीठी,  तल्खि़यों,  दुशवारियों  में,   राहते-ज़ां  सी। 
न   जाने   कैसी   शीरीनी  में,   ये   बातें  तिरी,  पागीं।।
  
न  जाओ  श्याम ! रो-रो   गोपियां,  पइयां परन लागीं। 
तो झरने सी झरन लागी हैं,उनकी चश्मे-अश्क-आगीं।।
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