सोमवार, 3 जून 2013

मगर उससा मिला कोई नहीं.....




मगर उससा मिला कोई नहीं.....

-अरुण मिश्र.

बारहा   ढूँढा,   मगर   उससा  मिला  कोई   नहीं। 
है  ‘अरुन’  सा  एक  ही,  याँ   दूसरा  कोई  नहीं।। 

तू  क़रम की  ओट में,  मुझ पर  क़हर ढाता रहा। 
यूँ   कि   तू  मेरा   ख़ुदा ;  तेरा  ख़ुदा   कोई  नहीं??
  
ज़र्रे - ज़र्रे   में   नुमाया   नूर    से,  गाफि़ल  रहा। 
ज़ुस्तज़ू   उसकी रही,  जिसका  पता  कोई  नहीं।।
  
हमसे   पहले  भी    हुये,  फ़रहादो-कै़सो-रोमियो। 
फिर भी लगता हमको, हमसा आशना कोई नहीं।।
                                              * 
  

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