श्री हनुमते नमः
भावानुवाद :
पूँछ से बुहार उदधि-अम्बर के मध्य मार्ग
चलते उछल, बने कारण इन्द्र-मोद के।
फैली भुजाओं से फूट रहे पर्वत-खण्ड
मिथिलानन्दनि-नयननंदन का वंदन आज ।।
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-अरुण मिश्र
मूल संस्कृत :
लाङ्गूलमृष्टवियदम्बुधिमध्य्मार्ग-
मुत्प्ल्युत्य यान्त्ममरेन्द्रमुदो निदानम् ।
आस्फालितस्वकभुजस्फुटिताद्रिकाण्डं
द्राङ्मैथिलीनयननन्दनमद्य वन्दे ।।
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टिप्पणी : कविपति श्री उमापति द्विवेदी विरचित वीरविंशतिका नामक २० श्लोकों की
श्री हनुमतस्तुति के प्रथम श्लोक का भावानुवाद, ज्येष्ठ मास के अंतिम मंगलवार को
श्रद्धा सहित प्रस्तुत है।
-अरुण मिश्र
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