2017 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
2017 लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 25 नवंबर 2017

धीरे-धीरे वो मेरे एहसास पे छाने लगे....





धीरे-धीरे वो मेरे एहसास पे छाने लगे....

-अरुण मिश्र 

धीरे - धीरे    वो    मेरे   एहसास   पे    छाने  लगे।
ख़्वाबों में बसने लगे,  ख़्यालों को  महकाने  लगे।।

उनकी सब बेबाकियाँ जब हमको रास आने लगीं।
तब  अचानक  एक दिन,  वो  हमसे शरमाने लगे।।

जिनकी  आमद  के  लिए  थे  मुद्दतों से मुन्तज़िर।
उनका  आना तो  हुआ  पर,  आते ही  जाने लगे।।

देखने  लायक  वो मन्ज़र  था,  जुदाई  की  घड़ी।
अश्क अपने  पोंछ कर, हमको ही समझाने लगे।।

बहकी-बहकी गुफ्तगू थी जब तलक पहलू में थे।
हमसे भी ज्यादा 'अरुन', वो ख़ुद ही दीवाने लगे।।
                                         *

गुरुवार, 21 सितंबर 2017

सागर की ये फेनिल लहरें ....

 सागर तट, पुरी 













सागर की ये फेनिल लहरें .... 

सागर की ये फेनिल लहरें 
मुझे देख कर कितनी खुश हैं। 
पैरों तक दौड़ी आती हैं; 
कुछ मीठे स्वर में गाती हैं। 

हाल पूँछतीं 
कहो सखा 
तुम कहाँ खो गए थे इतने दिन ?
दुनिया के किन जंजालों में ? 
बहुत दिनों के बाद मिले हो।

क्या ये मुझ को नहीं पता है ,
जितनी हलचल मेरे उर में , 
उतनी ही तेरे भी मन में ?

आओ बैठो ,
बहुत-बहुत बातें करते हैं। 
बहुत दिनों के बाद मिले हो।।
                 *
- अरुण मिश्र 
१७. ०९. २०१७ , रविवार , प्रातः 
पुरी सागर तट। 

(सभी  मित्रों को समर्पित )