शनिवार, 11 मई 2013

गुलाबों का तो बस पैकर रहा है....


You are always on my mind...
उसी की ख़ुश्बुयें औ’ रंग उसके...











गुलाबों का तो बस पैकर रहा है....

-अरुण मिश्र.

जो हम पे, जान  से सौ  मर  रहा है। 
अदा   देखो,  हमीं   से   डर  रहा  है।।
  
उसी  ने  तो    है   ये  परदा  उठाया। 
खुले  में  अब जो नाटक कर रहा है।।
  
मैं इसको लाख अपना घर कहूँ  पर। 
हक़ीकत  में,  उसी  का  घर  रहा है।।
  
हमेशा  से   वो   अपनी    हर  बहारें। 
चमन  के   ही   हवाले  कर  रहा  है।।
  
उसी  की   ख़ुश्बुयें   औ’  रंग उसके। 
गुलाबों  का  तो  बस  पैकर  रहा  है।।
  
‘अरुन’ अल्फाज़ में  अब भी हमारे। 
वो   अहसासात  अपने  भर  रहा है।। 
                                   * 
उसी की ख़ुश्बुयें औ’ रंग उसके...

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