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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

'शिव' बिन सूना गीत शिवालय....


स्वर्गीय श्रद्धेय भदौरिया जी (डॉ. शिव बहादुर सिंह) 
को विनम्र श्रद्धांजलि 

टिप्पणी : दिनांक १९.०८.२०१३, सोमवार को श्रद्धेय भदौरिया जी के श्राद्ध में सम्मिलित
होने के लिए लालगंज, रायबरेली जाते समय मन में जो श्रद्धा-प्रवाह उमड़ा, उसे छन्दों 
में बाँधने का प्रयास किया है।
*''हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी??'' - भदौरिया जी की प्रसिद्ध कविता, 'नदी का 
बहना मुझ में हो' की एक  पंक्ति है। भदौरिया जी के स्वर में इस कविता की वीडियो 
क्लिपिंग प्रस्तुत है।       



'शिव' बिन सूना गीत-शिवालय.… 

ब्रह्मनाद    में   लीन   हुआ   स्वर,
महाज्योति  में  ज्योति हुई  लय।

           जाने   को   सब  जाते  इक  दिन,
           यह     असार    संसार     छोड़ते।
           तुम    परम्परा   के   वाहक    थे,
           कैसे     शाश्वत   नियम    तोड़ते??

किन्तु,   तुम्हारे  जाने  से  'शिव'
सूना - सूना       गीत - शिवालय।।

           हर    प्यासे   के    लिए   नदी  थे;
           हर   कोई      भर   लाता    गगरी।
           तृषा      बुझाएंगे      अब      कैसे,
           हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी??*
  
जब  तक  जीवित  रहे,   धरा  पर
थे  शिवत्व  के   जीवित  परिचय।।

           तुम   चन्दन  वन   की   छाया  थे-
           सघन,   जहाँ   शीतल  होता  मन।
           'शिव' तेरा सान्निध्य  क्षणिक भी,
           पारस   सम,   करता  था   कंचन।।

क्षीण   भले,     क्षयमान   कलेवर,
पर,   कृतित्व  की   आभा  अक्षय।।

                                                     -अरुण मिश्र .    
         

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

मेरा मन केदारनाथ में .....


The hellish rains have turned Kedarnath into a ghost town. Though the outer structure of the temple seems intact, there are bodies piled up outside its gate.  Kedarnath shrine, one of the holiest of Hindu temples dedicated to Lord Shiva, and other buildings are seen damaged. (PTI)
                     मलबों  में  सिसकी  लेती  हैं जाने  कितनी  करुण-कथायें ...










मेरा मन केदारनाथ में .....                

-अरुण मिश्र.

यूँ   तो  मैं  घर  में   बैठा हूँ,
मेरा   मन   केदारनाथ   में।।

जहाँ प्रकृति ताण्डव-लीला-रत;
पागल   जहाँ   हुये   हैं   बादल।
घूम  रहा  है   उस   प्रान्तर  में,
पर्वत - पर्वत,  जंगल - जंगल।।

मेरा  मन   उनसे  जुड़ता  है,
बचा न जिनके कोई साथ में।।

किसका  साथ  कहाँ  पर छूटा?
अन्तहीन   बह  रहीं   व्यथायें।
मलबों  में   सिसकी  लेती   हैं,
जाने  कितनी   करुण-कथायें।।

संग  तुम्हारे, सब सनाथ थे;
कैसे, कुछ  बदले अनाथ में??

जो   विनशे   विनाश-लीला  में,
उनके प्रति यह हृदय, द्रवित है।
किन्तु, प्रलय से जो बच निकले,
उन्हें  देख,   मन   रोमांचित  है।।

कौन  जियेगा,  कौन  मरेगा?
है यह विधि के चपल हाथ में।।

थोड़े    आँसू     की     श्रद्धाँजलि, 
   उन्हें,   नहीं   हैं  शेष  आज  जो।
   जो   विपदा   में   बचे   सुरक्षित,
   पथ  उनका   भी,   मंगलमय हो।।

महाप्रलय के बाद, सृष्टि फिर
नूतन  उभरे,  नव-प्रभात  में।।
*

रविवार, 24 मार्च 2013

अंजलि भर भाव के प्रसून

अंजलि भर भाव के प्रसून 
-अरुण मिश्र.




































मेरे उक्त काव्यसंग्रह  
"अंजलि भर भाव के प्रसून" 
का सद्यः प्रकाशित संस्करण-२०१३, 
अब उपलब्ध है।   
                                         -अरुण मिश्र.