बुधवार, 2 जनवरी 2019

नए साल को सोच रहा हूँ ....



नए साल को सोच रहा हूँ

-अरुण मिश्र 

गए साल को देख रहा हूँ।
नए साल को सोच रहा हूँ।।

            गए साल में  क्या था ऐसा,
            नए साल  जो  नहीं रहेगा ?
            केवल साल बदल जाने से,
            जीवन में क्या कुछ बदलेगा?? 

            मेरे घर के ठीक बगल में,
            मेरी मेड  रहा  करती है।
            जैसे गुज़र-बसर  मैं करता,
            वह भी गुज़र-बसर करती है।।

            पिछले कर्ज़े  लाख  चुकाए,
            फिर भी कुछ उधार बाकी है।
            मेरी पेंशन नहीं मिली तो, 
            उसकी भी पगार बाकी है।।

            नए साल का जश्न मगर फिर,
            नए साल को  होना ही  है।
            बच्चे कुछ पल तो हँस-गा लें,
            जीवन  हँसना-रोना  ही  है।।

            शाम सजा कर कुछ गुब्बारे,
            और बजा कर गीत सुहाने। 
            बैठे सब  अलाव को  घेरे,
            नए साल का जश्न मनाने।।

            पूड़ी - सब्ज़ी   बनवाई   है,
            बस इतना उपक्रम, काफ़ी है।
            चहक रहे हैं,  नाच  रहे  हैं,
            बच्चों  ने  पाई   टॉफ़ी  है ।।

            यही जश्न बिलियन डॉलर का,
            जो यह दुनिया मना  रही है। 
            नए साल की मृग-मरीचिका,
            सबको सपने दिखा रही है।।

मैं भी कुछ सपने-उम्मीदें,
पाल रहा हूँ, पोस रहा हूँ।। 
                             *  
              
  

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