https://youtu.be/uWC2Z4iRAJ8
तुम मेरी राखो लाज हरी ।
तुम जानत सब अंतरजामी , करनी कछु न करी ॥१ ॥
औगुन मोसे बिसरत नाही , पल छिन घरी घरी ।
सब प्रपंच की पोट बाँधि करि , अपने सीस धरी ॥२ ॥
दारा सुत धन मोह लियो है, सुधि बुधि सब बिसरी ।
सूर पतित को बेगि उबारो , अब मेरी नाव भरी ॥३ ॥
शब्दार्थ -
राखो = रखो , रक्षा करो , बचाओ ।
लाज = लज्जा , प्रतिष्ठा ।
अन्तरजामी = अन्तर्यामी , सबके भीतर रहनेवाला , सबके हृदय की
बात जाननेवाला , परमात्मा ।
करनी = काम , क्रिया ।
बिसरना = विस्मृत करना , भुलाना , दूर करना ।
घड़ी = दिन - रात का ६० वाँ भाग , २४ मिनट का समय ।
क्षण = पल का चौथाई भाग ।
पल = २४ सेकेण्ड का समय ।
प्रपंच = माया , संसार , उलझन , छल - कपट , झमेला , आडम्बर ।
पोट = पोटली , गठरी ।
दारा = पत्नी ।
मोह लियो है - मोहित कर लिया है, आकर्षित कर लिया है, आसक्त कर लिया है,
अज्ञानी बना दिया है।
सुधि = सुध , होश - हवास , चेतना , ज्ञान।
बुधि = बुद्धि , विवेक , विचार।
पतित - जो नीच गिरा हुआ हो, पापी, अधम।
बेगि = वेग , शीघ्र।
उबारो = बचाओ ।
भावार्थ -
हे हरि ( हे श्रीकृष्ण , हे भगवन् ) ! आप मेरी प्रतिष्ठा की रक्षा कीजिए।
हे अन्तर्यामी ! आप सबके हृदयों की सब बातें जाननेवाले हैं, मेरे हृदय की
भी बातें जानते हैं कि मैंने कभी कुछ भी सत्कर्म नहीं किया ॥१ ॥
पल, क्षण या एक घड़ी के लिए भी मैं अपने अवगुणों ( दोषों ) को छोड़ नहीं
पाता हूँ । मैंने अपने सारे पापों की पोटली बाँधकर उसे अपने सिर पर धारण
कर लिया है अर्थात् अपने द्वारा किये गये अत्यधिक पापों के फलस्वरूप
कष्ट भोग रहा ।।2।।
पत्नी, पुत्र , धन-संपत्ति आदि ने मेरे मन को अपनी ओर खींच लिया है,
इसी के चलते मैंने अपनी सब सुध-बुध ( होश-हवास, ज्ञान ) को गंवा दिया है।
संत सूरदासजी कहते हैं कि हे भगवन् ! आप मेरा शीघ्र उद्धार कर दीजिए।
अब मेरी जीवन- नैया पापरूपी जल से भर गयी है और वह डूबना ही चाहती है।।३।।
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