गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें |
गर्वित है छब्बीस जनवरी...
-अरुण मिश्र
ताने लोकतंत्र की छतरी।
गर्वित है छब्बीस जनवरी।।
नेता, अभिनेता, अपराधी।
अफसर, मंत्री, उजली खादी।।
बन्द गाड़ियां औ’ बन्दूकें।
जनहित में कब अवसर चूकें??
गॉधी के अनगढ़ थे सपने।
उन्हें सुडौल बनाया हमने।।
काट-कूट के, ठोंक-पीट के।
राम-राज लाये घसीट के।।
नायक हों चाहे खलनायक।
जन-गण-मन के हैं अधिनायक।।
तुम जनता! इनकी जय बोलो।
काम ज़रूरी, फ़ारिग हो लो।।
अज़ब लोक है, गज़ब तंत्र है।
भैंस मुक्त, लाठी स्वतंत्र है।।
तंत्र, चीज यह मस्त-मस्त है।
लोक भले ही लस्त-पस्त है।।
ताने लोकतंत्र की छतरी।
हर्षित है छब्बीस जनवरी।।
मुग्ध लुटाये, शाशन-सत्ता।
राशन, भाषण, साड़ी, भत्ता।।
हर-हर-हर विकास की गंगा।
नहा रहा, हर भूखा-नंगा।।
खूब करो पैदा औलादें।
लोकतंत्र की लादी लादें।।
आजू-बाजू हो जाओ सब।
दौड़ेगा विकास का रथ अब।।
चाहे कितनी हो कठिनाई।
जाति न मगर भूलना भाई!!
बारी - बारी से बहुरेंगे।
आज़ादी की फसल चरेंगे।।
मूरख हैं, जो समझें सारे।
चारे वाले, हैं बेचारे।।
हौदी पर चारा खायेंगे।
बाहर हुये तो पगुरायेंगे।।
मेवा चरे राम की बकरी।
विहॅस रही छब्बीस जनवरी।।
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