https://youtu.be/kpiKUx6lUvw
लोकगायिका संजोली पाण्डेय
जन्म- अयोध्या ,उत्तर प्रदेश ,1995
अध्यक्ष ~ धरोहर -लोककलाओं का संगम (NGO)
लोकगीतों और लोकविधाओं की संरक्षिका
अवधी के निर्गुण लोकगीत भौतिक अवलंबों पर आधारित आध्यात्मिक रचनाएँ है.
ऐसा ही एक मनोहारी युगल गीत व् उसका भावप्रवण संगीत प्रस्तुत है। इस गीत में
सोनार ईश्वर व झुलनी मानव शरीर तथा रतनइन्द्रयों के रूपक के तौर पर में प्रयुक्त हुए है।
झुलनी में गोरी लागा हमार जिया, झुलनी का रंग साँचा हमार पिया
कवन सोनरवा बनायो रे झुलनिया, रंग पड़े नहीं कांचा हमार जिया
सुघड़ सोनरवा रचि रचि के बनवै, दै अगनी का आँचा हमार पिया।
छिति जल पावक गगन समीरा, तत्व मिलाइ दियो पाँचा हमार पिया।
रतन से बनी रे झुलनिया, जोइ पहिरा सोइ नाचा हमार पिया।
जतन से रखियो गोरी झुलनिया, गूँजे चहूँ दिसि साँचा हमार पिया।
टूटी झुलनिया बहुरि नहिं बनिहैं, फिर न मिलै अइसा साँचा हमार पिया।
सुर मुनि रिसी देखि रीझैं झुलनिया, केहु न जग में रे बाँचा हमार जिया।
एहि झुलनी का सकल जग मोहे, इतना सांई मोहे राचा हमार पिया।
अवधी के निर्गुण लोकगीत भौतिक अवलंबों पर आधारित आध्यात्मिक रचनाएँ है.
ऐसा ही एक मनोहारी युगल गीत व् उसका भावप्रवण संगीत प्रस्तुत है। इस गीत में
सोनार ईश्वर व झुलनी मानव शरीर तथा रतनइन्द्रयों के रूपक के तौर पर में प्रयुक्त हुए है।
झुलनी में गोरी लागा हमार जिया, झुलनी का रंग साँचा हमार पिया
कवन सोनरवा बनायो रे झुलनिया, रंग पड़े नहीं कांचा हमार जिया
सुघड़ सोनरवा रचि रचि के बनवै, दै अगनी का आँचा हमार पिया।
छिति जल पावक गगन समीरा, तत्व मिलाइ दियो पाँचा हमार पिया।
रतन से बनी रे झुलनिया, जोइ पहिरा सोइ नाचा हमार पिया।
जतन से रखियो गोरी झुलनिया, गूँजे चहूँ दिसि साँचा हमार पिया।
टूटी झुलनिया बहुरि नहिं बनिहैं, फिर न मिलै अइसा साँचा हमार पिया।
सुर मुनि रिसी देखि रीझैं झुलनिया, केहु न जग में रे बाँचा हमार जिया।
एहि झुलनी का सकल जग मोहे, इतना सांई मोहे राचा हमार पिया।
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