https://youtu.be/Q4yQbOixrMA
नजीर के किशन कन्हैया रचनाकार: नजीर अकबराबादी स्वर: चंदन तिवारी धुन: निराला बिदेसिया सहगायन: शैलेंद्र शर्मा व्यास संगीत संयोजन : उपेंद्र पाठक रिकार्डिंग: मैक्स आडियो, रांची निर्माण व प्रस्तुति: लोकराग
है सबका ख़ुदा सब तुझ पे फ़िदा
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
हे कृष्ण कन्हैया, नन्द लला
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
हे कृष्ण कन्हैया, नन्द लला
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
इसरारे हक़ीक़त यों खोले
तौहीद के वह मोती रोले
सब कहने लगे ऐ सल्ले अला
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
सरसब्ज़ हुए वीरानए दिल
इस में हुआ जब तू दाखिल
गुलज़ार खिला सहरा-सहरा
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
फिर तुझसे तजल्ली ज़ार हुई
दुनिया कहती तीरो तार हुई
ऐ जल्वा फ़रोज़े बज़्मे-हुदा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
मुट्ठी भर चावल के बदले
दुख दर्द सुदामा के दूर किए
पल भर में बना क़तरा दरिया
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
जब तुझसे मिला ख़ुद को भूला
हैरान हूँ मैं इंसा कि ख़ुदा
मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
ख़ुर्शीद में जल्वा चाँद में भी
हर गुल में तेरे रुख़सार की बू
घूँघट जो खुला सखियों ने कहा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
दिलदार ग्वालों, बालों का
और सारे दुनियादारों का
सूरत में नबी सीरत में ख़ुदा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
इस हुस्ने अमल के सालिक ने
इस दस्तो जबलए के मालिक ने
कोहसार लिया उँगली पे उठा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
मन मोहिनी सूरत वाला था
न गोरा था न काला था
जिस रंग में चाहा देख लिया
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
तालिब है तेरी रहमत का
बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंद लला
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
तौहीद के वह मोती रोले
सब कहने लगे ऐ सल्ले अला
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
सरसब्ज़ हुए वीरानए दिल
इस में हुआ जब तू दाखिल
गुलज़ार खिला सहरा-सहरा
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
फिर तुझसे तजल्ली ज़ार हुई
दुनिया कहती तीरो तार हुई
ऐ जल्वा फ़रोज़े बज़्मे-हुदा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
मुट्ठी भर चावल के बदले
दुख दर्द सुदामा के दूर किए
पल भर में बना क़तरा दरिया
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
जब तुझसे मिला ख़ुद को भूला
हैरान हूँ मैं इंसा कि ख़ुदा
मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
ख़ुर्शीद में जल्वा चाँद में भी
हर गुल में तेरे रुख़सार की बू
घूँघट जो खुला सखियों ने कहा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
दिलदार ग्वालों, बालों का
और सारे दुनियादारों का
सूरत में नबी सीरत में ख़ुदा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
इस हुस्ने अमल के सालिक ने
इस दस्तो जबलए के मालिक ने
कोहसार लिया उँगली पे उठा
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
मन मोहिनी सूरत वाला था
न गोरा था न काला था
जिस रंग में चाहा देख लिया
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
तालिब है तेरी रहमत का
बन्दए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंद लला
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें