https://youtu.be/9sRDF_aPmeY
जिस दिन भी बिछड़ गया प्यारे
ढूँढते फिरोगे लाखों में
फिर कौन सामने बैठेगा
बंगाली भावुकता पहने
दूरों दूरों से लाएगा
केशों को गंधों के गहने
ये देह अजंता शैली सी
किसके गीतों में सँवरेगी
किसकी रातें महकाएँगी
जीने के मोड़ों की छुअनें
फिर चाँद उछालेगा पानी
किसकी समुंदरी आँखों में
दो दिन में ही बोझिल होगा
मन का लोहा तन का सोना
फैली बाहों सा दीखेगा
सूनेपन में कोना कोना
अपने रुचि-रंगों का चुनाव
किसके कपड़ों में टाँकोगे
अखरेगा किसकी बातों में
पूरी दिनचर्या ठप होना
दरकेगी सरोवरी छाती
धूलिया जेठ वैशाखों में
ये गुँथे गुँथे बतियाते पल
कल तक गूँगे हो जाएँगे
होंठों से उड़ते भ्रमर गीत
सूरज ढलते सो जाएँगे
जितना उड़ती है आयु परी
इकलापन बढ़ता जाता है
सारा जीवन निर्धन करके
ये पारस पल खो जाएँगे
गोरा मुख लिये खड़े रहना
खिड़की की स्याह सलाखों में
नोट : मैंने इस गीत को १९७० के दशक में रेडियो पर भारत भूषण जी
के स्वर में सुना था। अद्भुत अनुभव था। उसकी छाप मन पर अमिट है।
आज भी कानों में वह भावपूर्ण स्वर गूँजता है।
वह ऑडियो खोज रहा हूँ पर कहीं मिल नहीं रहा है। किसी को मिले तो
अवश्य सुनें।
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