आओ धरती को बचाएं...
-अरुण मिश्र
ऐसी तहज़ीबो - तरक्की से भला क्या हासिल ?
कि, जो इंसान ही बन जाये ज़मीं का क़ातिल |
तायरो - ज़ानवर बच पायेंगे, न शज़रो - बसर |
अगले सौ साल में होगा ज़मीं पे ये मंज़र -
दिमाग़ जीते भले, रोयेगा, हारेगा दिल |
ऐसी तहज़ीबो - तरक्की से भला क्या हासिल ??
फूल बाग़ों में खिलें, पेड़ों पे पखेरू हों |
सांस तो ले सकें, ताजा हवा हो, खुशबू हो |
नीर नदियों का हो निर्मल कि जिसको पी तो सकें |
आओ धरती को बचाएं कि, इस पे जी तो सकें ||
साफ़ झीलों में सुबह, आफताब मुँह धोये |
ज़ुल्म ऐसा न करो धरती पे, धरती रोये ||
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बहुत सुंदर कविता .....
जवाब देंहटाएंHi,'चैतन्य शर्मा'जी, आप बहुत प्यारे बच्चे हो,और नटखट भी|मैंने आप का ब्लॉग'चैतन्य का कोना' और आप के ममा का ब्लॉग भी देखा|मुझे दोनों पसंद आये|आपका ब्लॉग ज्यादा अच्छा लगा|ख़ास कर आपकी drawing|
जवाब देंहटाएंआपने मेरे ब्लॉग पर बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया दी है|लगभग ३०-३१ साल पहले एक ऐसे ही नटखट बच्चे के लिए कुछ कविताएँ लिखी गईं थी| उन में से एक आप को gift कर रहा हूँ|
"मुन्ने से दूनी बढ़ती, मुन्ने की कारस्तानी |
मम्मी-पापा, आठों पहर, करते निगरानी |
मुन्ना मुश्किल में; क्या बोले, करे, खेले?
मुन्ने की हर बात ही, कहलाती शैतानी|"
आपका दोस्त
-अरुण मिश्र.