रविवार, 24 अप्रैल 2011

पृथ्वी दिवस पर विशेष...















आओ  धरती को  बचाएं...

-अरुण मिश्र 


        ऐसी  तहज़ीबो - तरक्की  से   भला  क्या  हासिल  ?
      कि,  जो  इंसान  ही  बन  जाये  ज़मीं का  क़ातिल | 
       तायरो - ज़ानवर   बच  पायेंगे,  न  शज़रो - बसर |
       अगले  सौ  साल  में   होगा  ज़मीं   पे    ये   मंज़र -

दिमाग़   जीते    भले,    रोयेगा,     हारेगा     दिल |
ऐसी  तहज़ीबो - तरक्की  से  भला  क्या  हासिल  ??

       फूल    बाग़ों   में     खिलें,    पेड़ों    पे   पखेरू   हों |
       सांस  तो  ले   सकें,  ताजा  हवा   हो,   खुशबू   हो | 
       नीर नदियों का हो निर्मल कि जिसको पी तो सकें |
       आओ  धरती को  बचाएं कि,  इस पे  जी तो  सकें ||

साफ़   झीलों   में   सुबह,   आफताब   मुँह    धोये |
ज़ुल्म   ऐसा    न  करो   धरती   पे,   धरती   रोये ||
                                          *



2 टिप्‍पणियां:

  1. Hi,'चैतन्य शर्मा'जी, आप बहुत प्यारे बच्चे हो,और नटखट भी|मैंने आप का ब्लॉग'चैतन्य का कोना' और आप के ममा का ब्लॉग भी देखा|मुझे दोनों पसंद आये|आपका ब्लॉग ज्यादा अच्छा लगा|ख़ास कर आपकी drawing|
    आपने मेरे ब्लॉग पर बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया दी है|लगभग ३०-३१ साल पहले एक ऐसे ही नटखट बच्चे के लिए कुछ कविताएँ लिखी गईं थी| उन में से एक आप को gift कर रहा हूँ|

    "मुन्ने से दूनी बढ़ती, मुन्ने की कारस्तानी |
    मम्मी-पापा, आठों पहर, करते निगरानी |
    मुन्ना मुश्किल में; क्या बोले, करे, खेले?
    मुन्ने की हर बात ही, कहलाती शैतानी|"

    आपका दोस्त
    -अरुण मिश्र.

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