मंगलवार, 5 जुलाई 2011

अच्छी ग़ज़लें कहते हैं ...


अच्छी ग़ज़लें कहते हैं ...   

-अरुण मिश्र.

यारों  मेरे मुहल्ले में, इक  शख्स  ‘अरुन जी’  रहते हैं। 
हमें इल्म क्या , लोग कहें पर , अच्छी ग़ज़लें कहते हैं।।
  
बहकी - बहकी  बातें   करते , चहके - चहके  लहज़े  में। 
रात  को  शायद  रोते   होंगे , दिन  भर  हॅसते  रहते हैं।।
  
बातों  का  तो   सूत   कातते , सपनों  के   धागे   बुनते। 
खिले-खिले  से  दिखते , लेकिन  खोये - खोये  रहते हैं।।
  
सारा आलम अपना समझें,ख़ुद की सुध-बुध से गाफ़िल। 
ग़ैरों  के  ग़म  में  अक्सर ही ,  ऑख   भिगोये   रहते हैं।।
  
बोली-बानी   सब  कबीर   सी , मस्ती  पीर-फ़कीरों सी। 
मीर   से  दीवाने  लगते  हैं , हॅस कर  हर दुख  सहते हैं।।
                                        *

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुनो अरुण जी ! दुर्ग शहर के अरुण निगम क्या कहते हैं-
    ऐसे ही अशआर और हम गज़ल ढूँढते रहते हैं.
    मन कबीर, मस्ती फकीर,तरकश में तीर पितामह-सा
    शर- शैय्या पर सोते, जो पर-पीर ही सहते रहते हैं.

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    बहुत बढ़िया ............... प्रफुल्लित सा हुआ हूँ , बार बार पढ़ -सुनकर
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  3. बातों का तो सूत कातते , सपनों के धागे बुनते।
    खिले-खिले से दिखते , लेकिन खोये - खोये रहते हैं।।

    'बातों का तो सूत '..बहुत खूबसूरत सा ख्याल है! वाह!

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  4. प्रिय रजनीश जी, रश्मिरेख पर पधारने के लिए मैं आप का आभारी हूँ|
    -अरुण मिश्र.

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  5. प्रिय अरुण निगम जी, आप की काव्यात्मक प्रतिक्रिया/टिप्पणी से अभिभूत हूँ|आप के ब्लॉग देखे|आप की सृजनशीलता से प्रभावित हुआ| लोक कवि की रचनाओं को प्रकाश में लाना, निश्चय ही एक श्लाघनीय प्रयास है| लोकभाषा की ये श्रेष्ठ कवितायेँ किसी भी कवि
    के लिए प्रेरणास्पद हैं| स्नेह बनाये रखियेगा| शुभकामनायें|
    -अरुण मिश्र.

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  6. प्रिय अमित जी, अनुग्रह के लिए अमित-आभार|शुभकामनायें|
    -अरुण मिश्र.

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  7. प्रिय अल्पना जी, आप को शेर' अच्छा लगा; मैं कृतार्थ हुआ|
    बहुत-बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनायें|
    -अरुण मिश्र.

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