अच्छी ग़ज़लें कहते हैं ...
-अरुण मिश्र.
यारों मेरे मुहल्ले में, इक शख्स ‘अरुन जी’ रहते हैं।
हमें इल्म क्या , लोग कहें पर , अच्छी ग़ज़लें कहते हैं।।
बहकी - बहकी बातें करते , चहके - चहके लहज़े में।
रात को शायद रोते होंगे , दिन भर हॅसते रहते हैं।।
बातों का तो सूत कातते , सपनों के धागे बुनते।
खिले-खिले से दिखते , लेकिन खोये - खोये रहते हैं।।
सारा आलम अपना समझें,ख़ुद की सुध-बुध से गाफ़िल।
ग़ैरों के ग़म में अक्सर ही , ऑख भिगोये रहते हैं।।
बोली-बानी सब कबीर सी , मस्ती पीर-फ़कीरों सी।
मीर से दीवाने लगते हैं , हॅस कर हर दुख सहते हैं।।
*
अरूण जी से मिलवाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएं------
जादुई चिकित्सा !
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।
सुनो अरुण जी ! दुर्ग शहर के अरुण निगम क्या कहते हैं-
जवाब देंहटाएंऐसे ही अशआर और हम गज़ल ढूँढते रहते हैं.
मन कबीर, मस्ती फकीर,तरकश में तीर पितामह-सा
शर- शैय्या पर सोते, जो पर-पीर ही सहते रहते हैं.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ............... प्रफुल्लित सा हुआ हूँ , बार बार पढ़ -सुनकर
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बातों का तो सूत कातते , सपनों के धागे बुनते।
जवाब देंहटाएंखिले-खिले से दिखते , लेकिन खोये - खोये रहते हैं।।
'बातों का तो सूत '..बहुत खूबसूरत सा ख्याल है! वाह!
प्रिय रजनीश जी, रश्मिरेख पर पधारने के लिए मैं आप का आभारी हूँ|
जवाब देंहटाएं-अरुण मिश्र.
प्रिय अरुण निगम जी, आप की काव्यात्मक प्रतिक्रिया/टिप्पणी से अभिभूत हूँ|आप के ब्लॉग देखे|आप की सृजनशीलता से प्रभावित हुआ| लोक कवि की रचनाओं को प्रकाश में लाना, निश्चय ही एक श्लाघनीय प्रयास है| लोकभाषा की ये श्रेष्ठ कवितायेँ किसी भी कवि
जवाब देंहटाएंके लिए प्रेरणास्पद हैं| स्नेह बनाये रखियेगा| शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.
प्रिय अमित जी, अनुग्रह के लिए अमित-आभार|शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएं-अरुण मिश्र.
प्रिय अल्पना जी, आप को शेर' अच्छा लगा; मैं कृतार्थ हुआ|
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.