शनिवार, 23 जुलाई 2011

काले-काले जो मेघ छाये हैं.....













-अरुण  मिश्र 

काले - काले     जो    मेघ    छाये   हैं |
जाने    किसका    संदेशा    लाये    हैं ||


हैं    ये    बादल    नहीं,   लिफाफे   हैं |
मेरे   साजन   का   ख़त   छिपाए   हैं ||


ये    जो    आये,   वो   आ   रहे   होंगे |
अक्स, रिम-झिम में झिलमिलाये हैं ||


बदलियाँ    हैं   कि,   छोरियां   चंचल |
जो,   शफक   की    हिना   रचाए   हैं ||


मन   बिंधा   है,  मदन   के  बानों  से |
इन्द्र,   नभ    में,    धनुष   उठाए   हैं ||   
                         *

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें