मंगलवार, 19 जनवरी 2021

किंगर का झाला घुगुती ..पांगर का डाला घुगुती.../ पारम्परिक गढ़वाली लोकगीत / स्वर एवं संगीत : किशन महिपाल / नृत्य : सुमन कार्की

 https://youtu.be/d2fGn4N0Axo

किंगर का झाला घुगुती ..पांगर का डाला घुगुती .
ले घुर घुरान्दी घुगुती ..ले फुर उड़ान्दि घुगुती
..
{किंगर का झाला घुगुती ..पांगर का डाला घुगुती .
ले घुर घुरान्दी घुगुती ..ले फुर उड़ान्दि घुगुती
..}
ले टक लगान्दी घुगुती ..के रेंदी
बिगांदी घुगुती ..
के देश की होली घुगुती ..के देश बे आई
घुगुती ..
किंगर का झाला......होए होए ..
किंगर का झाला घुघूती ..पांगर का डाला घुघूती ..
ले घुर घुरन्दी घुघूती ..ले फुर उड़ान्दि घुगुती
..
{किंगर का झाला घुगुती ..पांगर का डाला घुगुती .
ले घुर घुरान्दी घुगुती ..ले फुर उड़ान्दि घुगुती
..}
तू मालु झाले की घुगुती ..
तू केसों रंग की घुगुती ..तू कब बसदी
घुगुती..
तू कन बसानी घुगुती ...-
तू मालु झाले की ....
तू मालु झाले की . घुगुती ..
तू मालु रंग की घुगुती ..तू कब बसदी
घुगुती..
तू कन बसानी घुगुती ...-
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तू मालु झाले की घुगुती ..तू केसों रंग की
घुगुती ..
तू कब बसदी घुगुती..तू कन बसानी
घुगुती ...
तू मालु झाले की...होए होए ..
तू मालु झाले की घुगुती ..तू मालु रंग की
घुगुती ..
बल चैत बैशाख घुगुती ..तू घुर घुरांदी घुगुती
..
{किंगर का झाला घुघूती ..पंगर का डाला घुघूती ..
ले घुर घुरन्दी घुघूती ..ले फुर उरांदी
घुगुती ..}
त्वेन तौल नी जाण घुगुती ..अखोड खिसायु
घुगुती ..
वो बारह मैनों की घुगुती ..एगे ऋतू बोडी
की घुघूती ..
तेल तोल नी जान घुगुती ..अखोड खिसायु
घुगुती ..
वो बारह मैनों की घुगुती ..एगे ऋतू बोडी
की घुघूती ..
धारु मा फूली गे..होए ..होए ..
धारु मा फूली गे घुगुती ..धर वालू बुरांस घुघूती
..
पतालू फूली गे घुगुती ..फूल सेतु सेल्बाड़ी
घुगुती ..
{किंगर का झाला घुघूती ..पंगर का डाला घुघूती ..
ले घुर घुरन्दी घुघूती ..ले फुर उरांदी
घुगुती ..}

घुघुती क्या है? 
हिमालयी क्षेत्रों में पायी जाने वाली घुघुती वास्तव में कबूतर 
परिवार का ही पक्षी है, जो प्रायः भारतवर्ष ही नहीं पाकिस्तान 
के हिमालयी क्षेत्रों में भी पाया जाता है।  
हम इसे पहाड़ी कबूतर भी कह सकते हैं।  परन्तु पहाड़ी कह 
देने से यह मतलब नहीं कि यह पहाड़ों के अलावा और कहीं 
नहीं पायी जाती. इसे भारतवर्ष के अनेकों प्रान्तों में देखा 
गया है। नाम भले ही अलग हो सकता है। 
पंजाब में इसे ‘फाख्ता’ कहते हैं। कबूतर जहाँ प्रायः सफेद व 
सलेटी रंग के होते हैं, वहीं घुघुती उससे एकदम भिन्न 
‘मटमैले’ रंग की होती है। यह प्रायः आबादी क्षेत्र के आस-पास 
ही पायी जाती है, परन्तु यह घोसला घरों में नहीं प्रायः पेड़ों की 
डाल पर या छोटी झाड़ियों के ऊपर बनाती है। पेड़ की शाखाओं पर 
या छत की मुण्डेर पर या किसी तार पर पर जब यह अकेली 
उदास सी बैठी होकर कुछ गाती है तो, उसका उच्चारण ‘घु-घू-ती’ 
प्रतीत होता है, जिससे इसका नाम ही पड़ गया है ‘घुघूती’।
उत्तराखंड में घुघुती यानी फाख्ते की एक मार्मिक कथा प्रचलित है- 
"भै भुकी, मैं सिती", मतलब भाई भूखा रहा, मैं सोती रह गई। वहां 
चैत माह में भाई दूर ब्याही बहिनों को कपड़े, रूपए, पैसे और 
पकवानों की भेंट देने के लिए जाते हैं। इस माह बहिनें भाइयों का 
इंतजार करती हैं। यह परंपरा भिटौली कहलाती है। कहते है, 
प्राचीनकाल में एक भाई इसी तरह अपनी बड़ी बहिन को भिटौली 
देने गया। नदी, घाटियां, पहाड़ और जंगल पार करके वह बहिन 
के ससुराल पहुंचा तो देखा, उसकी प्यारी दीदी सोई हुई है। घर 
में बूढ़ी मां अकेली थी, इसलिए वह भिटौली की टोकरी बहिन के 
पास रख कर चुपचाप वापस लौट आया। 
सुबह बहिन की नींद खुली तो उसने भिटौली देखी। भाई को वहां न 
पाकर वह परेशान हो गई। पता लगा, वह तो रात में ही वापस लौट 
गया था। बहिन रो-रो कर कहने लगी- “भै भुकी, मैं सिती ! भै भुकी 
मैं सिती!” (भाई भूखा रहा मैं सोती रह गई)। और, एक दिन यही 
कहते-कहते उसके प्राण पखेरू उड़ गए. वह घुघुती चिड़िया बन 
गई और यही कहती रही- “भै भुकी मैं सिती! कुकु…कू…कू…कू!”
किशन महिपाल (1 जनवरी 1979) उत्तराखंड की दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र से एक लोकगायक। 
उत्तराखण्ड के पारंपरिक स्थानीय लोकगीतों को अपनी आवाज की मधुरता दे कर आज 
उत्तराखंड-सिनेमा के गायकों में अपनी एक अलग पहचान बनाई। गायक, गीतकार, 
निर्देशक, प्रतिभाशाली कलाकार किशन महिपाल... युवाओं की पहली पंसद, पिछले 
कुछ वर्षों में उत्तराखण्डी संगीत की ऊँचाइयों पर उभरकर आया है। 

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