रविवार, 31 दिसंबर 2017



इस नए साल में ये पहली दुआ है मेरी......

-अरुण मिश्र 

‘‘दिल की धरती
  कभी बंजर नहीं होने पाये।
  आँच मन की कभी
  मद्धिम नहीं होवे, या रब!
  चमके उम्मीद का सूरज
  औ’, बरसें प्यार के मेह।।

  मन में गहरे हैं पड़े
  बीज, कितनी सुधियों के-
  गुज़िश्ता बरसों के;
  उनमें नये अँखुए फूटें।।
  फिर से लहरायें
  नई फसलें,
  नई खुशिओं की।।

  इस नये साल में।
  ये पहली दुआ
  है, मेरी।।’’
        *


(पूर्वप्रकाशित)

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