कभी मीरा कभी तुलसी कभी रसखान बन जाओ,किसी आनन्द घन का बन्धु चतुर सुजान बन जाओ,
बनो तुम सूर का नटखट मनोहर और घट-पनघट,
मिलन के गीत बन जाओ विरह के गान बन जाओ।।
( सुजान घनानंद कवि की नायिका का नाम है)
यशोदा नंद के घर चल बनो तुम नेह की नगरी,
किसी के होंठ की मुरली किसी के हाथ की गगरी,
हृदय की ओखली में प्रीति की मृदु डोर से बंध, बन,
किसी के नैन की पुतरी किसी के चैन की चुनरी।।
किसी प्रेमी पनेड़ी की सुपारी बन सरौता बन,
किसी भूखे भिखारी के लिए मांगल्य-न्योता बन,
उतरने पार तेरे द्वार तारनहार आयें जब,
किसी केवट की नौका और पानी का कठौता बन।।
किसी चातक का स्वाती-घन किसी हारिल की लकड़ी बन,
किसी दूल्हन की चूनर बन किसी दूल्हे की पगड़ी बन,
हृदय दो बाँधने के हेतु बन अनुराग का बंधन,
नहीं कल्पांत तक छूटे वही दृढ़ ग्रंथि तगड़ी बन।।
(हारिल एक पक्षी है जिसके विषय में कहा जाता है कि
ह लकड़ी पर ही बैठता है।
"हमारे हरि हारिल की लकड़ी"-सूरदास)
ह लकड़ी पर ही बैठता है।
"हमारे हरि हारिल की लकड़ी"-सूरदास)
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