शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

बहे निरन्तर अनन्त आनन्दधारा.../ रवीन्द्र नाथ टैगोर / गायन : पण्डित अजय चक्रवर्ती

https://youtu.be/1IZwVjfBSeg  

बहे निरन्तर अनन्त आनन्दधारा ॥
बाजे असीम नभोमाझे अनादि रब,
जागे अगण्य रबिचन्द्रतारा ॥
एकक अखण्ड ब्रह्माण्डराज्ये
परम-एक सेइ राजराजेन्द्र राजे।
बिस्मित निमेषहत   बिश्ब चरणे बिनत,
लक्षशत भक्तचित बाक्यहारा ॥

English Translation 

Eternally flows the never-ending 
stream of happiness 
Resonates in the infinite space the primal sound 
Awakens the innumerable suns, moons and stars, 
In the unified unbroken universe 
Reigns supreme the one King of Kings 
In amazement the world bows in humility And millions of devotees in speechless wonderment.

-Translated by Ratna De.

बुधवार, 20 नवंबर 2024

माई म्हने सुपणां में परणी गोपाल.../ मीराबाई / प्रस्तुति : विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे

https://youtu.be/c_BwrU2hCO4 


माई म्हने सुपणां में परणी गोपाल।

मत करो म्हारी ब्याव सगाई,
क्यूं बांधो जंजाल??

झूठा मात पिता सुत बन्धु 
बँध्यो अबध्या ताल।।

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर 
सांचो पति नंदलाल।।

नमस्ते, 'बतियां दौरावत' के सुननेवालों का 
आज मीराबाई की सफर में एक बार फिर स्वागत।
मीराबाई ने उठते-बैठते, सोते-जागते, गिरिधर गोपाल 
को ही अपने पति के रूप में देखा, इतना ही नहीं, 
बल्कि ईश्वर से खुद की शादी भी रचते हुए देखी.. 
उन्होंने इस घटना को एकबार नहीं, बल्कि बारबार 
जिया।

“माई म्हने सुपणां में परणी गोपाल...”

आम तौर से इस पद के काव्य के जो शब्द पाये 
जाते हैं, उनमें यह उल्लेख मिलता है, कि 
“छप्पन कोटां जणां पधार्या, दूल्हो सिरी बृजराज” 
इत्यादि । परंतु, मेरे पद को काव्य कुछ अलग है, 
इसमें मीराबाई कहतीं हैं,

“मत करो म्हारी ब्याव सगाई,
क्यूं बांधो जंजाल?”

यह काव्य मुझे कुछ समय पहले प्राप्त हुआ, जब मैंने मीराबाई के जन्मस्थल मेड़ता में रचाये जा रहे एक दृक्‌श्राव्य प्रस्तुति (light and Sound show) 
के लिए गाया। इस तरह से एक ही पद के पाठभेद 
प्राप्त होते हैं यह घटना केवल मीराबाई के पदों के 
बारे में ही नहीं, बल्कि अन्य मध्ययुगीन संतकवियों 
की रचनाओं के बारे में भी पाई जाती है।

पाठभेद जो भी हो, घटना एकही है, मीराबाई ने 
देखा हुआ सपना - जिसमें वे अपने खुद के 
परिणय का वर्णन करती हैं।

आइए, सुनते हैं
“परणी गोपाल ।”
- अश्विनी भिड़े देशपाण्डे

मंगलवार, 19 नवंबर 2024

मा रा ब-ग़म्ज़ा कुश्त-ओ-कज़ा रा बहाना सख़्त.../ निज़ामी गंजवी / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/MxVfvYvWGVA  


Iqbal Bano presents a famous ghazal by Nizami Ganjavi (a.d 1141)
who lived in Ganja in presnt day Azarbaijan during the Seljuq empire.
He was the greatest romantic epic poet in Persian literature, who
brought a colloquial and realistic style to the Persian epic.

मा रा ब-गम्ज़ा कुश्त-ओ-कज़ा रा बहाना सख़्त 
ख़ुद सू-ए-मा ना-दीद-ओ-हया रा बहाना सख़्त 

जाहिद न दश्त ताब-ए-जमाल-ए-परी रुखां
कुंज-ए-गिरिफ़्त-ओ-याद-ए-खुदा रा बहाना सख़्त 

रफ्तम ब मस्जिद-ए-के, ब-बीनम जमाल-ए-दोस्त
दस्त-ए-ब-रू काशिद-ओ-दुआ रा बहाना सख़्त 

दश्त-ए-ब-दोश-ए-ग़ैर निहाद-ए-बर-ए-क़रम
मा रा चूं दीद लग्ज़िश-ए-पा रा बहाना सख़्त

रविवार, 17 नवंबर 2024

हरिनाम माला स्त्रोत.../ राजा महाबलि के द्वारा रचित / स्वर : स्नीति मिश्रा

https://youtu.be/4HIFTQSyDtI?si=Z05ZLizBCmEAHFeX

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् ।
गोवर्धनोद्धरं धीरं तं वन्दे गोमतीप्रियम् ॥१॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् ।
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥२॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् ।
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परपरमेश्वरम्॥३॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
राघवं रामचन्द्रं च रावणारिं रमापतिम् ।
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥४॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥५॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् ।
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥६॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् ।
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥७॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् ।
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौकौरवान्तकम्॥८॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भूधरं भुवनानन्दं भूतेशं भूतनायकम् ।
भावनैकं भुजंगेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥९॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् ।
जामदग्न्यं परं ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥१०॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
चतुर्भुजं चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् ।
चराचरगतं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥११॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदम् ।
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥१२॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् ।
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुयदुनायकम् ॥१३॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
शालिग्रामशिलाशुद्धं शंखचक्रोपशोभितम् ।
सुरासुरैः सदा सेव्यं तं वन्दे सासाधुवल्लभम् ॥१४॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 
त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् ।
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥१५॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अनन्तमादिपुरुषं अच्युतं च वरप्रदम् ।
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥१६॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् ।
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्षमणप्रियम् ॥१७॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियम् ।
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥१८॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरिनामकृतामाला पवित्रा पापनाशिनी ।
बलिराजेन्द्रेण चोक्त्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥१९॥

सोमवार, 11 नवंबर 2024

श्री पार्वतीवल्लभ अष्टकम.../ श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/ehd2G7x3EwU?si=Px2VUVwa8p-pStXN


नमो भूतनाथं नमो देवदेवं
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १ ॥

सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २ ॥

श्मशानं शयानं महास्थानवासं
शरीरं गजानां सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३ ॥

फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४ ॥

शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिणेत्रम् ।
फणीनागकर्णं सदा फालचन्द्रं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५ ॥

करे शूलधारं महाकष्टनाशं
सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशामरेशं ध्वजेशं गिरीशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६ ॥

उदासं सुदासं सुकैलासवासं
धरानिर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजाहेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७ ॥

मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं
द्विजैस्सम्पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालं महेशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८ ॥

सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९ ॥

इति श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं पार्वतीवल्लभाष्टकम् ॥

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या.../ मजाज़ लखनवी / मजाज़ की अपनी आवाज में

https://youtu.be/53IBg_8llxY  


कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या ऐ शोरिश-ए-दौराँ भूल गए
वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ भूल गए वो दीदा-ए-गिर्यां भूल गए

ऐ शौक़-ए-नज़ारा क्या कहिए नज़रों में कोई सूरत ही नहीं
ऐ ज़ौक़-ए-तसव्वुर क्या कीजे हम सूरत-ए-जानाँ भूल गए

अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ रुख़्सत हो हम लुत्फ़-ए-बहाराँ भूल गए

सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके
सब के तो गरेबाँ सी डाले अपना ही गरेबाँ भूल गए

ये अपनी वफ़ा का आलम है अब उन की जफ़ा को क्या कहिए
इक निश्तर-ए-ज़हर-आगीं रख कर नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ भूल गए 

बुधवार, 6 नवंबर 2024

दुखवा मिटाईं छठी मइया.../ विनम्र श्रद्धांजलि शारदा सिन्हा जी

https://youtu.be/NkDiSj9c1EA  

दुखवा मिटाईं छठी मइया...
दुखवा मिटाईं छठी मैया, 
रउए असरा हमार- 
रऊए असरा हमार... 


सब के पुरावे लीं मनसा, 
हमरो सुन लीं पुकार- 
हमरो सुन लीं पुकार 


ससुरा में अईनी कईनी बरतिया, 
हिवआ जुड़ाई दीहिं पिया के पीरीतिया 
अचल सुहाग दीह मईया, 
कईनी बरत तोहार, 
कईनी बरत तोहार... 


गोदिया भराई दीहीं धियवा अव पुतवा, 
अंचरा में भरी दीहीं ममता दुलरवा 
ममता दुलरवा, 
सूपवा चढ़ाईब छठी मईया, 
देहब अरघ तोहार, 
देहब अरघ तोहार... 


सास-ससुर के रोगवा मिटईह, 
उनकर कयवा के कंचन बनईह, 
कंचन बनईह लऊके अन्हार छठी मईया, 
कर दीहिं घर ऊजियार, 
कर दीहीं घर ऊजियार... 


देवरा-ननदिया के दीहीं वरदनवा, 
परिजन पुरजन पुराई सपनवा, 
पुराई सपनवा घाटे सबे मिली छठी मईया, 
गावे ली महिमा तोहार, 
गावे ली महिमा तोहार... 


दुखवा मिटाईं छठी मईया..
रउए असरा हमार- 
रऊए असरा हमार... 


सब के पुरावे लीं मनसा, 
हमरो सुन लीं पुकार- 
हमरो सुन लीं पुकार।।

सोमवार, 4 नवंबर 2024

विश्वेश्वर दर्शन कर चल मन तुम काशी.../ स्वर : सिवस्री स्कन्द प्रसाद

https://youtu.be/cwnxY864jDM  


विश्वेश्वर दर्शन कर चल
मन तुम काशी ।।

विश्वेश्वर दर्शन जब कीन्हो
बहु प्रेम सहित
काटे करुणा निधान जनन मरण फांसी।।

बहती जिनकी पुरी मो गंगा
पय कॆ समान
वा कॆ तट घाट घाट
भर रहे संन्यासी।।

भस्म अंग भुज त्रिशूल
और मे लसे नाग
मायि गिरिजा अर्धांग धरे
त्रिभुवन जिन दासी।।

पद्मनाभ कमलनयन
त्रिनयन शंभू महेश
भज ले ये दो स्वरूप
रह ले अविनाशी।।

रविवार, 3 नवंबर 2024

हम्मै दुनिया करेला बदनाम बलमवा तोहरे बगैइर.../ गायन : दीपाली सहाय

https://youtu.be/ieOoGWUSEC0  


हम्मै दुनिया करेला बदनाम
बलमवा तोहरे बगैइर
हाय हो गइली निंदिया हराम
बलमवा तोहरे बगैइर

मीठी बतियन से जियरा लुभउलऽ
हँसि के जादू नजर से चलउलऽ
लिहलऽ ख़रीद हम्मई भरली बजरिया में
गइली बिकाय बिना दाम
बलमवा तोहरे बगैइर

पहिले तऽ छुप छुप के खिचड़ी पकउलऽ
अब हमरा पतझड़ के पतवा बनउलऽ
धोका कइलऽ कवन फल पउलऽ
तड़पू सबेरे और साम
बलमवा तोहरे बगैइर

चैन नही आवे पिया दिनवा औ रतिया
छाती पे मूँग दरै बैरन सौवतिया
सासू के बतिया सहीला आउर उपर से
ननदो के भइली गुलाम
बलमवा तोहरे बगैइर