https://youtu.be/Ar7qK7Fn_F0
धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी
रेती पर लिखा नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था
मलियानिल के बहकाने से, बस एक प्रभात निखारना था
गूंगे के मनो-भाव जैसे वाणी स्वीकार न कर पाए
वैसे ही मेरा ह्रदय-कुसुम असमर्पित सूख बिखरना था
कोई प्यासा मरता जैसे जल के अभाव में विष पी ले
मेरे जीवन में भी कोई ऐसी मजबूरी रहनी थी
इच्छाओं से उगते बिरवे, सब के सब सफल नहीं होते
हर कहीं लहर के जूड़े में अरुणारे कमल नहीं होते
माटी का अंतर नहीं मगर अंतर तो रेखाओं का है
हर एक दीप के जलने को शीशे के महल नहीं होते
दर्पण में परछाईं जैसे दीखे तो पर अनछुई रहे
सारे सुख सौरभ की मुझसे, वैसी ही दूरी रहनी थे
शायद मैंने गत जनमों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे
चातक का स्वर सुनने वाले बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध हुआ होगा, फिर जिसकी क्षमा नहीं मिलती
तितली के पर नोचे होंगे, हिरणों के दृग फोड़े होंगे
अनगिनती क़र्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िंदगी भर मेरे
तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी