बुधवार, 30 अप्रैल 2025

तू मन अनमना न कर अपना.../ गीतकार भारत भूषण अपने स्वर में..

https://youtu.be/Ar7qK7Fn_F0  

तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी 

रेती पर लिखा नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था 
मलियानिल के बहकाने से, बस एक प्रभात निखारना था 
गूंगे के मनो-भाव जैसे वाणी स्वीकार न कर पाए 
वैसे ही मेरा ह्रदय-कुसुम असमर्पित सूख बिखरना था 

कोई प्यासा मरता जैसे जल के अभाव में विष पी ले 
मेरे जीवन में भी कोई ऐसी मजबूरी रहनी थी

इच्छाओं से उगते बिरवे, सब के सब सफल नहीं होते 
हर कहीं लहर के जूड़े में अरुणारे कमल नहीं होते 
माटी का अंतर नहीं मगर अंतर तो रेखाओं का है 
हर एक दीप के जलने को शीशे के महल नहीं होते 

दर्पण में परछाईं जैसे दीखे तो पर अनछुई रहे 
सारे सुख सौरभ की मुझसे, वैसी ही दूरी रहनी थे
 
शायद मैंने गत जनमों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे 
चातक का स्वर सुनने वाले बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध हुआ होगा, फिर जिसकी क्षमा नहीं मिलती  
तितली के पर नोचे होंगे, हिरणों के दृग फोड़े होंगे 

अनगिनती क़र्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िंदगी भर मेरे 
तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी

सोमवार, 28 अप्रैल 2025

हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई.../ महाकवि विद्यापति / गायन : रजनी पल्लवी

https://youtu.be/nqxQ3-Uz1Ss  


हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई।

एक त बइरि भेला बीध बिधाता दोसरे धिया कर बाप॥
तीसरे बइरि भेला नारद बाभन जै बूढ़ आनल जमाई, गे माई॥

पहिलुक बाजन डोमरु तोरब दोसरे तोरब रुँडमाला।
बरद हाँकि बरियात वेलाइब धिआ लेजाइब पराइ, गे माई॥

धोती लोटा पतरा पोथी एहो सभ लेबन्हि छिनाई।
जो किछु बजता नारद बाभन दाढ़ी दे धिसिआएब, गे माई॥

भन विद्यापति सुनु हे मनाइन दृढ़ कर अपन गेआन।
सुभ सुभ कए सिरी गौरी बियाहू गौरी हर एक समान, गे माई॥

*व्याख्या*

हे सखी! यदि इस वृद्ध शिव को मेरा जामाता बनाया गया तो फिर मैं इस घर में नहीं रहूँगी। मेरी इस कन्या के तीन शत्रु हो गए। एक तो ब्राह्मण ही शत्रु हुआ जिसने मेरी कन्या का इस बूढ़े से विवाह का संयोग-विधान किया। दूसरे इसके पिता हिमालय ने ऐसे वृद्ध एवं सुरुचिहीन वर का चयन कर शत्रुता का व्यवहार किया है। तीसरा शत्रु ब्राह्मण नारद है जो मेरी कन्या की विधि मिलाकर इस वृद्ध दामाद को मेरे द्वार पर ले आया। मैना कहती है कि मैं शिव के डमरु और रुंडमाला को तोड़ डालूँगी। मैं इसके बैल को खदेड़ दूँगी और बरात को भगा दूँगी और फिर अपनी पुत्री को भगाकर कहीं दूर ले जाऊँगी। हे सखी! मैं इस ब्राह्मण नारद का धोती, लोटा, पोथी-पत्रा सब छिनवा लूँगी और यदि इसने अनाकानी की तो मैं स्वयं उसकी दाढ़ी पकड़ कर घसीटूँगी। मैना के इन बचनों को सुनकर विद्यापति के शब्दों में ही उसकी सखी कहती है कि मैना! सुनो, तू जो शिव के वरत्व के संबंध में अनर्गल प्रलाप कर रही है वह अज्ञान के कारण ही है। तू शिव एवं पार्वती के विवाह का मंगल विधि के साथ विवाह कर, क्योंकि ये दोनों एक समान अर्थात् एक दूसरे के सर्वथा उपयुक्त हैं।

शनिवार, 26 अप्रैल 2025

पाप.../ कविता / कवि : भारत भूषण

https://youtu.be/skitjHRld0A?si=F9LlDiqWL9gm1zfI


न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मसान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती

लिए सुमिरनी डरे हुए से
बुला रहे हैं मुझे पुजेरी
जला रहे हैं पवित्र दीये
न राह मेरी रहे अन्धेरी
हजार सजदे करें नमाजी
न किंतु मेरा जलाल घटता
पनाह मेरी यही शिवाला
महान गिरजा सराय मेरी
मुझे मिटा के न धर्म रहता
न आरती में कपूर जलता
न पर्व पर ये नहान होता
न ये बुतों की दुकान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं...

मुझे सुलाते रहे मसीहा
मुझे मिटाने रसूल आये
कभी सुनी मोहनी मुरलिया
कभी अयोध्या बजे बधाये
मुझे दुआ दो बुला रहा हूं
हजार गौतम, हजार गान्धी
बना दिये देवता अनेकों
मगर मुझे तुम ना पूज पाये
मुझे रुला के न सृष्टि हँसती
न सूर, तुलसी, कबीर आते
न क्रास का ये निशान होता
न ये आयते कुरान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं....

बुरा बता दे मुझे मौलवी
या दे पुरोहित हजार गाली
सभी चितेरे शकल बना दें
बहुत भयानक, कुरूप, काली
मगर यही जब मिलें अकेले
सवाल पूछो, यही कहेंगे कि;
पाप ही जिन्दगी हमारी
वही ईद है वही दिवाली
न सींचता मैं अगर जडों को
तो न जहां मे यूं पुण्य खिलता
न रूप का यूं बखान होता
न प्यास इतनी जवान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मशान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश.../ शायर : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/d0f-HS93lbs  


न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया

मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो
जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया

जो रुके तो कोह-ए-गिराँ थे हम जो चले तो जाँ से गुज़र गए
रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम तुझे यादगार बना दिया

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है.../ मजरूह सुल्तानपुरी / गायन : मोहम्मद रफ़ी

https://youtu.be/nc8wYuZyMdU  

तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है
तिरी इक निगाह की बात है मिरी ज़िंदगी का सवाल है


मिरी हर ख़ुशी तिरे दम से है मिरी ज़िंदगी तिरे ग़म से है
तिरे दर्द से रहे बे-ख़बर मिरे दिल की कब ये मजाल है


तिरे हुस्न पर है मिरी नज़र मुझे सुब्ह शाम की क्या ख़बर
मिरी शाम है तिरी जुस्तुजू मेरी सुब्ह तेरा ख़याल है


मिरे दिल जिगर में समा भी जा रहे क्यों नज़र का भी फ़ासला
कि तिरे बग़ैर तो जान-ए-जाँ मुझे ज़िंदगी भी मुहाल है

रविवार, 13 अप्रैल 2025

दुआ.../ शायर : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / गायन : नय्यरा नूर

https://youtu.be/JR8SuFjkKw0  

आइए हाथ उठाएँ हम भी
हम जिन्हें रस्म-ए-दुआ याद नहीं
हम जिन्हें सोज़-ए-मोहब्बत के सिवा
कोई बुत कोई ख़ुदा याद नहीं


आइए अर्ज़ गुज़ारें कि निगार-ए-हस्ती
ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दा भर दे


वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे
जिन की आँखों को रुख़-ए-सुब्ह का यारा भी नहीं
उन की रातों में कोई शम्अ मुनव्वर कर दे
जिन के क़दमों को किसी रह का सहारा भी नहीं
उन की नज़रों पे कोई राह उजागर कर दे


जिन का दीं पैरवी-ए-किज़्ब-ओ-रिया है उन को
हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले जुरअत-ए-तहक़ीक़ मिले
जिन के सर मुंतज़िर-ए-तेग़-ए-जफ़ा हैं उन को
दस्त-ए-क़ातिल को झटक देने की तौफ़ीक़ मिले


इश्क़ का सिर्र-ए-निहाँ जान-ए-तपाँ है जिस से
आज इक़रार करें और तपिश मिट जाए
हर्फ़-ए-हक़ दिल में खटकता है जो काँटे की तरह
आज इज़हार करें और ख़लिश मिट जाए

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए.../ शायर : अज़ीज़ हामिद मदनी / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/TFXOCmuwFTo   

सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
वो ज़ुल्फ़ खुल गई तो हवाओं के ख़म गए

अब जिन के ग़म का तेरा तबस्सुम है पर्दा-दार
आख़िर वो कौन थे कि ब-मिज़गान-ए-नम गए

वहशत सी एक लाला-ए-ख़ूनीं कफ़न से थी
अब के बहार आई तो समझो कि हम गए

ऐसी कोई ख़बर तो नहीं साकिनान-ए-शहर
दरिया मोहब्बतों के जो बहते थे थम गए

मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

तू मन अनमना न कर अपना.../ गीत एवं स्वर : स्वर्गीय भारत भूषण

https://youtu.be/Ar7qK7Fn_F0?si=qFL9Aioh6Kqu0EaO

तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी 

रेती पर लिखा नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था 
मलियानिल के बहकाने से, बस एक प्रभात निखरना था 
गूंगे के मनो-भाव जैसे वाणी स्वीकार न कर पाए 
वैसे ही मेरा ह्रदय-कुसुम असमर्पित सूख बिखरना था 
कोई प्यासा मरता जैसे जल के अभाव में विष पी ले 
मेरे जीवन में भी कोई ऐसी मजबूरी रहनी थी

इच्छाओं से उगते बिरवे, सब के सब सफल नहीं होते 
हर कहीं लहर के जूड़े में अरुणारे कमल नहीं होते 
माटी का अंतर नहीं मगर अंतर तो रेखाओं का है 
हर एक दीप के जलने को शीशे के महल नहीं होते 
दर्पण में परछाईं जैसे दीखे तो पर अनछुई रहे 
सारे सुख सौरभ की मुझसे, वैसी ही दूरी रहनी थी
 
शायद मैंने गत जनमों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे 
चातक का स्वर सुनने वाले बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध हुआ होगा, फिर जिसकी क्षमा नहीं मिलती  
तितली के पर नोचे होंगे, हिरणों के दृग फोड़े होंगे 
अनगिनती क़र्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िंदगी भर मेरे 
तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी

रविवार, 6 अप्रैल 2025

उल्फ़त की नई मंज़िल को चला.../ शायर : क़तील शिफ़ाई / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/KzkZ3922bD8?si=i0XgJGyUoV0eV8dT

उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू बाँहें डाल के बाँहों में
दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े हैं राहों में


क्या क्या न जफ़ाएँ दिल पे सहीं पर तुम से कोई शिकवा न किया
इस जुर्म को भी शामिल कर लो मेरे मासूम गुनाहों में


जब चाँदनी रातों में तुम ने ख़ुद हम से किया इक़रार-ए-वफ़ा
फिर आज हैं हम क्यों बेगाने तेरी बे-रहम निगाहों में


हम भी हैं वही तुम भी हो वही ये अपनी अपनी क़िस्मत है
तुम खेल रहे हो ख़ुशियों से हम डूब गए हैं आहों में

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

कुछ उनकी ज़फाओं ने लूटा.../ गीत : फराज़ / गायन : नाहीद अख़्तर

https://youtu.be/fbpRtTuYGn4   


कुछ उनकी ज़फाओं ने लूटा कुछ उनकी इनायत मार गई 
हम राज़-ए-मोहब्बत कह न सके चुप रहने की आदत मार गई
 
वो कौन हैं जिन को जीने का पैग़ाम मोहब्बत देती है
हम को तो ज़माने में ऐ दिल, बेदर्द मोहब्बत मार गई 

दिल ने भी बहुत मजबूर किया मिलने को भी लाखों बार मिले
जी भर के उन्हें न देखा न गया आँखों की शराफत मार गई 

दोनों से शिकायत है लेकिन, इल्ज़ाम लगायें हम किस पर 
कुछ दिल ने हमें बरबाद किया और कुछ हमें किस्मत मार गई