सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

उर्वशी.../ उर्वशी का आत्मालाप / कवि : रामधारी सिंह 'दिनकर' / स्वर : एस. जानकी / संगीत : जय देव / नृत्य : वैजयन्ती माला

https://youtu.be/LeolIMTXSTM  

             

पर, क्या बोलूँ? क्या कहूँ?
भ्रान्ति यह देह-भाव।
मैं मनोदेश की वायु व्यग्र, व्याकुल, चंचल;
अवचेत प्राण की प्रभा, चेतना के जल में
मैं रूप-रंग-रस-गन्ध-पूर्ण साकार कमल।
मैं नहीं सिन्धु की सुता।
तलातल-अतल-वितल-पाताल छोड़,
नील समुद्र को फोड़ शुभ्र, झलबल फेनांशकु में प्रदीप्त
नाचती ऊर्मियों के सिर पर
मैं नहीं महातल से निकली!


शब्दार्थ : भ्रान्ति -भ्रम, धोखा, देहि-भाव-मानव तन (शरीर) धारण करना; मनोदेश-कल्पना का देश व्यग्र -उतावला;अवचेत -अवचेतन मन; प्रभा -प्रकाश;साकार -साक्षात्, प्रत्यक्ष;सुता-पुत्री;शुभ्र -सफेद; फेनांशकु -फेनरूपी वस्त्र,प्रदीप्त -प्रकाशित;उर्मियों -लहरों।

व्याख्या : प्रस्तुत पद्यांश में उर्वशी, पुरुरवा के प्रणय निवेदन का उत्तर देने के पश्चात् अपना परिचय देते हुए कहती हैं कि हे राजन्! मैं अपने मन की बात स्वयं तुमसे कैसे और क्या कहूँ। भावों के आवेश के कारण उन सभी मन की बातों तथा भावों को व्यक्त कर पाना असम्भव है। शारीरिक बाह्य सौन्दर्य दिखावा, छलावा और छलमात्र है। वास्तव में देखा जाए तो इसे उन्माद और पागलपन भी कहा जा सकता है। उर्वशी आगे कहती है कि मैं तो वास्तव में ही काल्पनिक तथा मानसिक देश की उत्कण्ठा और बेचैनी (व्याकुलता) से भरी-पूरी वायु के समान हूँ। मैं अवचेतन मन का प्रकाश हूँ और चेतना के जल में पूर्ण रूप से विकसित होने के साथ रस और सुगन्ध से परिपूर्ण कमल का फूल हूँ। मैं समुद्र की पुत्री (लक्ष्मी) भी नहीं हूँ। मैं पाताल के गर्त को तिरस्कृत करके, समुद्र के नीले रंग को छोड़कर प्रकाशमय फेन के बारीक रेशमी वस्त्र धारण करके, समुद्र की लहरों के मस्तक पर नाचती तथा उत्साहित होती हुई नहीं निकली हूँ। आशय यह है कि उर्वशी स्वयं का परिचय देते हुए पुरूरवा के हृदय में जिज्ञासा उत्पन्न कर देती है।

रविवार, 12 अक्टूबर 2025

अर्धनारीश्वर स्तोत्र.../ आदि शंकराचार्य

https://youtu.be/XTwBaajd0iU  

अर्धनारीश्वर स्तोत्र एक भक्तिपूर्ण स्तुति है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के संयुक्त स्वरूप की आराधना करती है। इसके प्रत्येक श्लोक में शिव और शक्ति के संयुक्त रूप का वर्णन है, जैसे कि वे सृष्टि और संहार के कार्यों में कैसे एक साथ कार्य करते हैं। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचा गया है और इसके पाठ से भक्तों को दीर्घायु, सौभाग्य और सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

श्लोक और अर्थ 

श्लोक १.


चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै 
कर्पूरगौरार्धशरीरकाय । 
धम्मिल्लकायै च जटाधराय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: मैं उस शक्ति को प्रणाम करता हूँ जिसका आधा शरीर चम्पे के फूल के समान उज्ज्वल है, और उस शिव को प्रणाम करता हूँ जिसका आधा शरीर कपूर के समान उज्ज्वल है। 
उस देवी को जो सुंदर केशों वाली है और उस शिव को जो जटाधारी है। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक २.


कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै 
चितारजः पुंजविचर्चिताय । 
कृतस्मरायै विकृतस्मराय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जो कस्तूरी और कुमकुम से सजी है, और उस शिव को जो चिता की भस्म से सजे हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो कामदेव का कारण है और काम को वश में करने वाले हैं। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ३.


प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै 
समस्तसंहारकताण्डवाय । 
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: जो सृष्टि के लिए नटराज के रूप में लास्य नृत्य करती हैं और जो संहार के लिए तांडव नृत्य करते हैं। जो जगत की माता हैं और जो जगत के एकमात्र पिता हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ४.


प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै 
स्फुरन्महापन्नगभूषणाय । 
शिवान्वितायै च शिवान्विताय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: जो प्रज्वलित रत्नों के कुंडल धारण करती हैं, और जो भयानक साँपों से सुशोभित हैं। 
जो शिव से संयुक्त हैं और शिव जो शक्ति से संयुक्त हैं। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ५.


विशालनीलोत्पललोचनायै 
विकासिपंकेरुहलोचनाय । 
समेक्षणायै विषमेक्षणाय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जिसकी आँखें विशाल नीले कमल के समान हैं, और उस शिव को जिनकी आँखें खिले हुए कमल के समान हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो दोनों प्रकार की आँखें धारण करते हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।


श्लोक ६.


मन्दारमालाकलितालकाय 
कपालमालांकितकन्धराय । 
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जो मन्दार के फूलों की माला धारण करती हैं और उस शिव को जो मुंडों की माला धारण करते हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो दिव्य वस्त्र धारण करते हैं और जो दिगंबर हैं (दिशाओं को ही वस्त्र मानते हैं)। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ७.


अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै 
तडित्प्रभाताम्रजटाधराय । 
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: 
शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जिसके केश बादल के समान काले हैं, और उस शिव को जिनकी जटाएँ बिजली के समान लाल हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो स्वयं ही ईश्वर और समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 

शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

उन के अंदाज़-ए-करम उन पे वो आना दिल का.../ कलाम : पीर नसीरुद्दीन नसीर / गायन : हाफ़िज़ा महक बतूल

https://youtu.be/0Dh1_kuMpvs  


उन के अंदाज़-ए-करम उन पे वो आना दिल का
हाय वो वक़्त वो बातें वो ज़माना दिल का

न सुना उस ने तवज्जोह से फ़साना दिल का
ज़िंदगी गुज़री मगर दर्द न जाना दिल का

कुछ नई बात नहीं हुस्न पे आना दिल का
मश्ग़ला है ये निहायत ही पुराना दिल का

वो मोहब्बत की शुरूआ'त वो बे-थाह ख़ुशी
देख कर उन को वो फूले न समाना दिल का

दिल लगी दिल की लगी बन के मिटा देती है
रोग दुश्मन को भी यारब न लगाना दिल का

एक तो मेरे मुक़द्दर को बिगाड़ा उस ने
और फिर उस पे ग़ज़ब हंस के बनाना दिल का

मेरे पहलू में नहीं आप की मुट्ठी में नहीं
बे-ठिकाने है बहुत दिन से ठिकाना दिल का

वो भी अपने न हुए दिल भी गया हाथों से
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना दिल का

ख़ूब हैं आप बहुत ख़ूब मगर याद रहे
ज़ेब देता नहीं ऐसों को सताना दिल का

बे-झिजक आ के मिलो हंस के मिलाओ आँखें
आओ हम तुम को सिखाते हैं मिलाना दिल का

नक़्श-ए-बर आब नहीं वहम नहीं ख़्वाब नहीं
आप क्यूँ खेल समझते हैं मिटाना दिल का

हसरतें ख़ाक हुईं मिट गए अरमाँ सारे
लुट गया कूचा-ए-जानां में ख़ज़ाना दिल का

ले चला है मिरे पहलू से ब-सद शौक़ कोई
अब तो मुम्किन नहीं लौट के आना दिल का

उन की महफ़िल में 'नसीर' उन के तबस्सुम की क़सम
देखते रह गए हम हाथ से जाना दिल का

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए.../ शायर : अनवर मिर्ज़ापुरी / गायन : दीक्षा तूर

https://youtu.be/JTxTb5tqJNw   

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए


मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए


अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए


मिरी ज़िंदगी के मालिक मिरे दिल पे हाथ रखना
तिरे आने की ख़ुशी में मिरा दम निकल न जाए


मुझे फूँकने से पहले मिरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत मिरे साथ जल न जाए

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए.../ शायर : फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' / गायन : आकांक्षा ग्रोवर

https://youtu.be/_R_Z9kxNm8A  


आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए

हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बे-नक़ाब आए

उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए

न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए

इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए

'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए