रविवार, 12 अक्टूबर 2025

अर्धनारीश्वर स्तोत्र.../ आदि शंकराचार्य

https://youtu.be/XTwBaajd0iU  

अर्धनारीश्वर स्तोत्र एक भक्तिपूर्ण स्तुति है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के संयुक्त स्वरूप की आराधना करती है। इसके प्रत्येक श्लोक में शिव और शक्ति के संयुक्त रूप का वर्णन है, जैसे कि वे सृष्टि और संहार के कार्यों में कैसे एक साथ कार्य करते हैं। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचा गया है और इसके पाठ से भक्तों को दीर्घायु, सौभाग्य और सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

श्लोक और अर्थ 

श्लोक १.


चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै 
कर्पूरगौरार्धशरीरकाय । 
धम्मिल्लकायै च जटाधराय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: मैं उस शक्ति को प्रणाम करता हूँ जिसका आधा शरीर चम्पे के फूल के समान उज्ज्वल है, और उस शिव को प्रणाम करता हूँ जिसका आधा शरीर कपूर के समान उज्ज्वल है। 
उस देवी को जो सुंदर केशों वाली है और उस शिव को जो जटाधारी है। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक २.


कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै 
चितारजः पुंजविचर्चिताय । 
कृतस्मरायै विकृतस्मराय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जो कस्तूरी और कुमकुम से सजी है, और उस शिव को जो चिता की भस्म से सजे हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो कामदेव का कारण है और काम को वश में करने वाले हैं। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ३.


प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै 
समस्तसंहारकताण्डवाय । 
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: जो सृष्टि के लिए नटराज के रूप में लास्य नृत्य करती हैं और जो संहार के लिए तांडव नृत्य करते हैं। जो जगत की माता हैं और जो जगत के एकमात्र पिता हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ४.


प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै 
स्फुरन्महापन्नगभूषणाय । 
शिवान्वितायै च शिवान्विताय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: जो प्रज्वलित रत्नों के कुंडल धारण करती हैं, और जो भयानक साँपों से सुशोभित हैं। 
जो शिव से संयुक्त हैं और शिव जो शक्ति से संयुक्त हैं। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ५.


विशालनीलोत्पललोचनायै 
विकासिपंकेरुहलोचनाय । 
समेक्षणायै विषमेक्षणाय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जिसकी आँखें विशाल नीले कमल के समान हैं, और उस शिव को जिनकी आँखें खिले हुए कमल के समान हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो दोनों प्रकार की आँखें धारण करते हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।


श्लोक ६.


मन्दारमालाकलितालकाय 
कपालमालांकितकन्धराय । 
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय 
नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जो मन्दार के फूलों की माला धारण करती हैं और उस शिव को जो मुंडों की माला धारण करते हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो दिव्य वस्त्र धारण करते हैं और जो दिगंबर हैं (दिशाओं को ही वस्त्र मानते हैं)। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 


श्लोक ७.


अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै 
तडित्प्रभाताम्रजटाधराय । 
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: 
शिवायै च नम: शिवाय ॥ 


अर्थ: उस देवी को जिसके केश बादल के समान काले हैं, और उस शिव को जिनकी जटाएँ बिजली के समान लाल हैं। 
उस अर्धनारीश्वर को जो स्वयं ही ईश्वर और समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं। 
मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ। 

शनिवार, 11 अक्टूबर 2025

उन के अंदाज़-ए-करम उन पे वो आना दिल का.../ कलाम : पीर नसीरुद्दीन नसीर / गायन : हाफ़िज़ा महक बतूल

https://youtu.be/0Dh1_kuMpvs  


उन के अंदाज़-ए-करम उन पे वो आना दिल का
हाय वो वक़्त वो बातें वो ज़माना दिल का

न सुना उस ने तवज्जोह से फ़साना दिल का
ज़िंदगी गुज़री मगर दर्द न जाना दिल का

कुछ नई बात नहीं हुस्न पे आना दिल का
मश्ग़ला है ये निहायत ही पुराना दिल का

वो मोहब्बत की शुरूआ'त वो बे-थाह ख़ुशी
देख कर उन को वो फूले न समाना दिल का

दिल लगी दिल की लगी बन के मिटा देती है
रोग दुश्मन को भी यारब न लगाना दिल का

एक तो मेरे मुक़द्दर को बिगाड़ा उस ने
और फिर उस पे ग़ज़ब हंस के बनाना दिल का

मेरे पहलू में नहीं आप की मुट्ठी में नहीं
बे-ठिकाने है बहुत दिन से ठिकाना दिल का

वो भी अपने न हुए दिल भी गया हाथों से
ऐसे आने से तो बेहतर था न आना दिल का

ख़ूब हैं आप बहुत ख़ूब मगर याद रहे
ज़ेब देता नहीं ऐसों को सताना दिल का

बे-झिजक आ के मिलो हंस के मिलाओ आँखें
आओ हम तुम को सिखाते हैं मिलाना दिल का

नक़्श-ए-बर आब नहीं वहम नहीं ख़्वाब नहीं
आप क्यूँ खेल समझते हैं मिटाना दिल का

हसरतें ख़ाक हुईं मिट गए अरमाँ सारे
लुट गया कूचा-ए-जानां में ख़ज़ाना दिल का

ले चला है मिरे पहलू से ब-सद शौक़ कोई
अब तो मुम्किन नहीं लौट के आना दिल का

उन की महफ़िल में 'नसीर' उन के तबस्सुम की क़सम
देखते रह गए हम हाथ से जाना दिल का

रविवार, 5 अक्टूबर 2025

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए.../ शायर : अनवर मिर्ज़ापुरी / गायन : दीक्षा तूर

https://youtu.be/JTxTb5tqJNw   

मैं नज़र से पी रहा हूँ ये समाँ बदल न जाए
न झुकाओ तुम निगाहें कहीं रात ढल न जाए


मिरे अश्क भी हैं इस में ये शराब उबल न जाए
मिरा जाम छूने वाले तिरा हाथ जल न जाए


अभी रात कुछ है बाक़ी न उठा नक़ाब साक़ी
तिरा रिंद गिरते गिरते कहीं फिर सँभल न जाए


मिरी ज़िंदगी के मालिक मिरे दिल पे हाथ रखना
तिरे आने की ख़ुशी में मिरा दम निकल न जाए


मुझे फूँकने से पहले मिरा दिल निकाल लेना
ये किसी की है अमानत मिरे साथ जल न जाए

शनिवार, 4 अक्टूबर 2025

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए.../ शायर : फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' / गायन : आकांक्षा ग्रोवर

https://youtu.be/_R_Z9kxNm8A  


आए कुछ अब्र कुछ शराब आए
इस के बा'द आए जो अज़ाब आए

बाम-ए-मीना से माहताब उतरे
दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आए

हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो
सामने फिर वो बे-नक़ाब आए

उम्र के हर वरक़ पे दिल की नज़र
तेरी मेहर-ओ-वफ़ा के बाब आए

कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए

न गई तेरे ग़म की सरदारी
दिल में यूँ रोज़ इंक़लाब आए

जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम
जब भी हम ख़ानुमाँ-ख़राब आए

इस तरह अपनी ख़ामुशी गूँजी
गोया हर सम्त से जवाब आए

'फ़ैज़' थी राह सर-ब-सर मंज़िल
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए

मंगलवार, 30 सितंबर 2025

नवरत्नमालिका.../ श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ / गायन : सूर्य गायत्री एवं अन्य

https://youtu.be/YzCaZ5J5d4U  

नवरत्नमालिका स्तोत्रम्

हारनूपुरकिरीटकुण्डलविभूषितावयवशोभिनीं
कारणेशवरमौलिकोटिपरिकल्प्यमानपदपीठिकाम् ।
कालकालफणिपाशबाणधनुरङ्कुशामरुणमेखलां
फालभूतिलकलोचनां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ १॥


गन्धसारघनसारचारुनवनागवल्लिरसवासिनीं
सान्ध्यरागमधुराधराभरणसुन्दराननशुचिस्मिताम् ।
मन्धरायतविलोचनाममलबालचन्द्रकृतशेखरीं
इन्दिरारमणसोदरीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ २॥


स्मेरचारुमुखमण्डलां विमलगण्डलम्बिमणिमण्डलां
हारदामपरिशोभमानकुचभारभीरुतनुमध्यमाम् ।
वीरगर्वहरनूपुरां विविधकारणेशवरपीठिकां
मारवैरिसहचारिणीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ३॥


भूरिभारधरकुण्डलीन्द्रमणिबद्धभूवलयपीठिकां
वारिराशिमणिमेखलावलयवह्निमण्डलशरीरिणीम् ।
वारिसारवहकुण्डलां गगनशेखरीं च परमात्मिकां
चारुचन्द्ररविलोचनां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ४॥


कुण्डलत्रिविधकोणमण्डलविहारषड्दलसमुल्लस-
त्पुण्डरीकमुखभेदिनीं च प्रचण्डभानुभासमुज्ज्वलाम् ।
मण्डलेन्दुपरिवाहितामृततरङ्गिणीमरुणरूपिणीं
मण्डलान्तमणिदीपिकां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ५॥


वारणाननमयूरवाहमुखदाहवारणपयोधरां
चारणादिसुरसुन्दरीचिकुरशेकरीकृतपदाम्बुजाम् ।
कारणाधिपतिपञ्चकप्रकृतिकारणप्रथममातृकां
वारणान्तमुखपारणां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ६॥


पद्मकान्तिपदपाणिपल्लवपयोधराननसरोरुहां
पद्मरागमणिमेखलावलयनीविशोभितनितम्बिनीम् ।
पद्मसम्भवसदाशिवान्तमयपञ्चरत्नपदपीठिकां
पद्मिनीं प्रणवरूपिणीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ७॥


आगमप्रणवपीठिकाममलवर्णमङ्गलशरीरिणीं
आगमावयवशोभिनीमखिलवेदसारकृतशेखरीम् ।
मूलमन्त्रमुखमण्डलां मुदितनादबिन्दुनवयौवनां
मातृकां त्रिपुरसुन्दरीं मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ८॥


कालिकातिमिरकुन्तलान्तघनभृङ्गमङ्गलविराजिनीं
चूलिकाशिखरमालिकावलयमल्लिकासुरभिसौरभाम् ।
वालिकामधुरगण्डमण्डलमनोहराननसरोरुहां
बालिकामखिलनायिकां मनसि भावयामि परदेवताम् ॥ ९॥


नित्यमेव नियमेन जल्पतां
भुक्तिमुक्तिफलदामभीष्टदाम् ।
शंकरेण रचितां सदा जपे-
न्नामरत्ननवरत्नमालिकाम् ॥ १०॥ 


॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्रजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ नवरत्नमालिका संपूर्णा ॥

अर्थ

मैं देवी श्री आदिशक्ति/परदेवता का ध्यान करूँगा जो हारम/माला, नूपुरम/पायल, कीरीदम/मुकुट, कुंडलम/रत्नजड़ित कुंडल आदि से सुसज्जित हैं। सभी देवता उनकी पूजा करते हैं, उनके चरण कमलों में देवताओं के भव्य मुकुटों के निरंतर स्पर्श के कारण परम तेज फैल जाता है, वे पाशम, अंगुष्ठ, धनुष, बाण और भाला धारण करती हैं, वे अद्भुत कमरबंद से सुसज्जित हैं और उनकी तीन आँखें हैं। मैं देवी श्री आदिशक्ति/परदेवता का ध्यान करूँगा जो विभिन्न समृद्ध सुगंधों, कपूर, चंदन के लेप और सुपारी की अनोखी गंध से लिपटी हुई हैं, उनके होंठ लाल रंग के हैं और उनके चेहरे पर सुंदर मुस्कान है, उनकी लंबी सुंदर आँखें हैं जो जोश फैलाती हैं, उनकी आकर्षक जटाओं पर अर्धचंद्र सुशोभित है, वे भगवान विष्णु की बहन हैं। मैं देवी श्री आदिशक्ति/परदेवता का ध्यान करूँगा, जिनके चेहरे पर सुंदर मुस्कान है, वे अद्भुत रत्नजड़ित कुण्डलों से सुशोभित हैं जो उनके कमल मुख को छूते रहते हैं, वे विभिन्न बहुमूल्य आभूषणों से सुसज्जित हैं और उनकी छाती पर फूलों की मालाएँ हैं, उनके बड़े ऊँचे उभरे हुए वक्ष हैं जो आगे की ओर थोड़ा झुकते हैं, उनकी आकर्षक पतली कमर है, उनके आकर्षक पायल से भयानक ध्वनि निकलती है जो योद्धाओं के गर्व को चूर कर देती है, वे त्रिदेवों और देवताओं द्वारा पूजी जाती हैं, वे भगवान शिव की पत्नी हैं जो भगवान मन्मथ के शत्रु हैं। मैं देवी श्री आदिशक्ति का ध्यान करूँगा, जो पूरे ब्रह्मांड को अपने गर्भ में धारण करती हैं, उनका शरीर वह्निमंडलम का प्रतिनिधित्व करता है, बादल उनके शानदार कुण्डलों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे आकाश का प्रतिनिधित्व करती हैं, वे परमात्मास्वरूपिणी हैं मैं देवी श्री आदिशक्ति/परदेवता का ध्यान करूँगा जो पवित्र श्री चक्र में निवास करती हैं, जो सहस्रार पद्म/हजार पंखुड़ियों वाले कमल पुष्प में आनंदपूर्वक चमकती हैं, उनमें सहस्त्रों भगवान आदित्य का परम तेज है, उनमें भगवान चंद्र की किरणों की शीतलता है, उनका वर्ण कृष्णमय है, उनका परम तेज संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त है। मैं देवी श्री आदिशक्ति/परदेवता का ध्यान करूँगा जिनके विशाल वक्षस्थल भगवान गणेश और भगवान सुब्रमण्यम की प्यास बुझाने वाले हैं, जिनके चरण कमलों की पूजा सिद्धों, चारणों और अप्सराओं द्वारा की जाती है, वे ब्रह्मांड में आवश्यक तत्वों की कारण हैं, वे आदिमाता/आदि हैं। मैं देवी श्री आदिशक्ति/परदेवता का ध्यान करूँगा जिनके चरण कमलों के समान सुंदर हैं और जिनके अंग आकर्षक हैं, जो अपनी सुंदर पतली कमर में परम दीप्ति प्रदान करने वाली भव्य कमरबंद से सुसज्जित हैं, जिनके पाँच अनमोल रत्न हैं जैसे भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, भगवान रुद्र, भगवान महेश्वर और भगवान सदाशिव, जो पादपीड़िका के रूप में हैं, वे प्रणवस्वरूपिणी/प्रणव की प्रतीक हैं। मैं देवी श्री आदिशक्ति/परदेवता का ध्यान करूँगा जिनके कांतिमय और शुभ शरीर को पवित्र वेदों में प्रणवमंत्र का सार कहा गया है, उनके आकर्षक अंग उपनिषदों के समान चमकते हैं, वे समस्त वेदसारों का सार हैं।उनका मुख मूलमंत्र का प्रतीक है, नादबिन्दु के रूप में उनकी चिर यौवनता का प्रतीक है, और वे त्रिपुरसुंदरी और जगतजननी भी हैं। मैं देवी श्री आदिशक्ति/परादेवता का ध्यान करूँगा जिनके सुंदर घुंघराले बाल मधुमक्खियों के झुंड के समान हैं, जो ताज़े मनमोहक चमेली के फूलों से सुशोभित हैं जो सुगंध फैलाते हैं, उनके कानों में बहुमूल्य रत्नजड़ित कुण्डलियाँ हैं जो उनके कंठ के चारों ओर चमक बिखेरती हैं, उनका मुख कमल के समान भव्य है, उनका रंग नीले कुमुदिनी के समान है, वे ब्रह्माण्ड की सेनापति हैं। 
जो कोई भी श्री आदिशंकराचार्य द्वारा रचित नवरत्नमालिका के नाम से प्रसिद्ध पवित्र श्लोकों को दैनिक आधार पर पढ़ता या सुनता है, उसे भुक्ति और मुक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है, यह एक शुभ श्लोक है जिसका हमेशा पाठ किया जाना चाहिए।

सोमवार, 29 सितंबर 2025

श्यामलादण्डकं कालिदासविरचितम्.../ स्वर : सिवस्री स्कन्दप्रसाद

https://youtu.be/9JeEZu_2NSw  

॥ अथ श्यामला दण्डकम् ॥

 ॥ ध्यानम् ॥ 

माणिक्यवीणामुपलालयन्तीं 
मदालसां मञ्जुलवाग्विलासाम्। 
माहेन्द्रनीलद्युतिकोमलाङ्गीं 
मातङ्गकन्यां मनसा स्मरामि ॥ १॥ 

चतुर्भुजे चन्द्रकलावतंसे 
कुचोन्नते कुङ्कुमरागशोणे। 
पुण्ड्रेक्षुपाशाङ्कुशपुष्पबाण- 
हस्ते नमस्ते जगदेकमातः ॥ २॥ 

॥ विनियोगः ॥ 

माता मरकतश्यामा मातङ्गी मदशालिनी। 
कुर्यात् कटाक्षं कल्याणी कदंबवनवासिनी॥ ३॥ 

॥ स्तुति ॥ 

जय मातङ्गतनये जय नीलोत्पलद्युते। 
जय सङ्गीतरसिके जय लीलाशुकप्रिये॥ ४॥ 

॥ दण्डकम् ॥ 

जय जननि सुधासमुद्रान्तरुद्यन्मणीद्वीपसंरूढ् - बिल्वाटवीमध्यकल्पद्रुमाकल्पकादंबकान्तारवासप्रिये कृत्तिवासप्रिये सर्वलोकप्रिये सादरारब्धसंगीतसंभावनासंभ्रमालोल- नीपस्रगाबद्धचूलीसनाथत्रिके सानुमत्पुत्रिके शेखरीभूतशीतांशुरेखामयूखावलीबद्ध- सुस्निग्धनीलालकश्रेणिश‍ृङ्गारिते लोकसंभाविते कामलीलाधनुस्सन्निभभ्रूलतापुष्पसन्दोहसन्देहकृल्लोचने वाक्सुधासेचने चारुगोरोचनापङ्ककेलीललामाभिरामे सुरामे रमे प्रोल्लसद्ध्वालिकामौक्तिकश्रेणिकाचन्द्रिकामण्डलोद्भासि लावण्यगण्डस्थलन्यस्तकस्तूरिकापत्ररेखासमुद्भूतसौरभ्य- संभ्रान्तभृङ्गाङ्गनागीतसान्द्रीभवन्मन्द्रतन्त्रीस्वरे सुस्वरे भास्वरे वल्लकीवादनप्रक्रियालोलतालीदलाबद्ध- ताटङ्कभूषाविशेषान्विते सिद्धसम्मानिते दिव्यहालामदोद्वेलहेलालसच्चक्षुरान्दोलनश्रीसमाक्षिप्तकर्णैक- नीलोत्पले श्यामले पूरिताशेषलोकाभिवाञ्छाफले श्रीफले स्वेदबिन्दूल्लसद्फाललावण्य निष्यन्दसन्दोहसन्देहकृन्नासिकामौक्तिके सर्वविश्वात्मिके सर्वसिद्ध्यात्मिके कालिके मुग्द्धमन्दस्मितोदारवक्त्र- स्फुरत् पूगताम्बूलकर्पूरखण्डोत्करे ज्ञानमुद्राकरे सर्वसम्पत्करे पद्मभास्वत्करे श्रीकरे कुन्दपुष्पद्युतिस्निग्धदन्तावलीनिर्मलालोलकल्लोलसम्मेलन स्मेरशोणाधरे चारुवीणाधरे पक्वबिंबाधरे सुललित नवयौवनारंभचन्द्रोदयोद्वेललावण्यदुग्धार्णवाविर्भवत् कम्बुबिम्बोकभृत्कन्थरे सत्कलामन्दिरे मन्थरे दिव्यरत्नप्रभाबन्धुरच्छन्नहारादिभूषासमुद्योतमानानवद्याङ्ग- शोभे शुभे रत्नकेयूररश्मिच्छटापल्लवप्रोल्लसद्दोल्लताराजिते योगिभिः पूजिते विश्वदिङ्मण्डलव्याप्तमाणिक्यतेजस्स्फुरत्कङ्कणालंकृते विभ्रमालंकृते साधुभिः पूजिते वासरारंभवेलासमुज्जृम्भ माणारविन्दप्रतिद्वन्द्विपाणिद्वये सन्ततोद्यद्दये अद्वये दिव्यरत्नोर्मिकादीधितिस्तोमसन्ध्यायमानाङ्गुलीपल्लवोद्य न्नखेन्दुप्रभामण्डले सन्नुताखण्डले चित्प्रभामण्डले प्रोल्लसत्कुण्डले तारकाराजिनीकाशहारावलिस्मेर चारुस्तनाभोगभारानमन्मध्य- वल्लीवलिच्छेद वीचीसमुद्यत्समुल्लाससन्दर्शिताकारसौन्दर्यरत्नाकरे वल्लकीभृत्करे किङ्करश्रीकरे हेमकुंभोपमोत्तुङ्ग वक्षोजभारावनम्रे त्रिलोकावनम्रे लसद्वृत्तगंभीर नाभीसरस्तीरशैवालशङ्काकरश्यामरोमावलीभूषणे मञ्जुसंभाषणे चारुशिञ्चत्कटीसूत्रनिर्भत्सितानङ्गलीलधनुश्शिञ्चिनीडंबरे दिव्यरत्नाम्बरे पद्मरागोल्लस न्मेखलामौक्तिकश्रोणिशोभाजितस्वर्णभूभृत्तले चन्द्रिकाशीतले विकसितनवकिंशुकाताम्रदिव्यांशुकच्छन्न चारूरुशोभापराभूतसिन्दूरशोणायमानेन्द्रमातङ्ग हस्मार्ग्गले वैभवानर्ग्गले श्यामले कोमलस्निग्द्ध नीलोत्पलोत्पादितानङ्गतूणीरशङ्काकरोदार जंघालते चारुलीलागते नम्रदिक्पालसीमन्तिनी कुन्तलस्निग्द्धनीलप्रभापुञ्चसञ्जातदुर्वाङ्कुराशङ्क सारंगसंयोगरिंखन्नखेन्दूज्ज्वले प्रोज्ज्वले निर्मले प्रह्व देवेश लक्ष्मीश भूतेश तोयेश वाणीश कीनाश दैत्येश यक्षेश वाय्वग्निकोटीरमाणिक्य संहृष्टबालातपोद्दाम-- लाक्षारसारुण्यतारुण्य लक्ष्मीगृहिताङ्घ्रिपद्म्मे सुपद्मे उमे सुरुचिरनवरत्नपीठस्थिते सुस्थिते रत्नपद्मासने रत्नसिम्हासने शङ्खपद्मद्वयोपाश्रिते विश्रुते तत्र विघ्नेशदुर्गावटुक्षेत्रपालैर्युते मत्तमातङ्ग कन्यासमूहान्विते भैरवैरष्टभिर्वेष्टिते मञ्चुलामेनकाद्यङ्गनामानिते देवि वामादिभिः शक्तिभिस्सेविते धात्रि लक्ष्म्यादिशक्त्यष्टकैः संयुते मातृकामण्डलैर्मण्डिते यक्षगन्धर्वसिद्धाङ्गना मण्डलैरर्चिते भैरवी संवृते पञ्चबाणात्मिके पञ्चबाणेन रत्या च संभाविते प्रीतिभाजा वसन्तेन चानन्दिते भक्तिभाजं परं श्रेयसे कल्पसे योगिनां मानसे द्योतसे छन्दसामोजसा भ्राजसे गीतविद्या विनोदाति तृष्णेन कृष्णेन सम्पूज्यसे भक्तिमच्चेतसा वेधसा स्तूयसे विश्वहृद्येन वाद्येन विद्याधरैर्गीयसे श्रवणहरदक्षिणक्वाणया वीणया किन्नरैर्गीयसे यक्षगन्धर्वसिद्धाङ्गना मण्डलैरर्च्यसे सर्वसौभाग्यवाञ्छावतीभिर् वधूभिस्सुराणां समाराध्यसे सर्वविद्याविशेषत्मकं चाटुगाथा समुच्चारणाकण्ठमूलोल्लसद्- वर्णराजित्रयं कोमलश्यामलोदारपक्षद्वयं तुण्डशोभातिदूरीभवत् किंशुकं तं शुकं लालयन्ती परिक्रीडसे पाणिपद्मद्वयेनाक्षमालामपि स्फाटिकीं ज्ञानसारात्मकं ( variation पाणियुग्मद्वयेनाक्षमालागुण) पुस्तकञ्चाङ्कुशं पाशमाबिभ्रती तेन सञ्चिन्त्यसे तस्य वक्त्रान्तराद् गद्यपद्यात्मिका भारती निस्सरेत् येन वाध्वंसनादा कृतिर्भाव्यसे तस्य वश्या भवन्तिस्तियः पूरुषाः येन वा शातकंबद्युतिर्भाव्यसे सोऽपि लक्ष्मीसहस्रैः परिक्रीडते किन्न सिद्ध्येद्वपुः श्यामलं कोमलं चन्द्रचूडान्वितं तावकं ध्यायतः तस्य लीला सरोवारिधीः तस्य केलीवनं नन्दनं तस्य भद्रासनं भूतलं तस्य गीर्देवता किङ्करि तस्य चाज्ञाकरी श्री स्वयं सर्वतीर्थात्मिके सर्व मन्त्रात्मिके सर्व यन्त्रात्मिके सर्व तन्त्रात्मिके सर्व चक्रात्मिके सर्व शक्त्यात्मिके सर्व पीठात्मिके सर्व वेदात्मिके सर्व विद्यात्मिके सर्व योगात्मिके सर्व वर्णात्मिके सर्वगीतात्मिके सर्व नादात्मिके सर्व शब्दात्मिके सर्व विश्वात्मिके सर्व वर्गात्मिके सर्व सर्वात्मिके सर्वगे सर्व रूपे जगन्मातृके पाहि मां पाहि मां पाहि मां देवि तुभ्यं नमो देवि तुभ्यं नमो देवि तुभ्यं नमो देवि तुभ्यं नमः॥ 

।। इति श्यामला दण्डकं सम्पूर्णम् ॥ 


अर्थ

मैं ऋषि मातंग की पुत्री देवी श्री काली का ध्यान करता हूँ, जो रत्नजड़ित दिव्य तार वाद्य/वीणा बजाती हैं, जिनके चेहरे पर चमक है और जिनकी वाणी अमृत के समान मनमोहक है।  केसर के समान रंग, आकर्षक शारीरिक बनावट और उन्नत वक्षस्थल वाली,  हाथों में पुष्प, गन्ना, रस्सी, बाण, अंकुश धारण करने वाली और सुंदर केशों की चोटी पर अर्धचंद्र धारण करने वाली जगतजननी को मेरा नमस्कार  । हे! कदम्ब वन में निवास करने वाली ऋषि मातंग की प्रिय पुत्री माँ मातंगी, हम पर अपनी कृपा बरसाएँ।   ऋषि मातंग की पुत्री माँ मातंगी की जय हो! नीलोत्पला पुष्प के समान सुंदर माँ की जय हो! सभी संगीत का आनंद लेने वाली माँ की जय हो!  और मनोरंजक तोतों से प्रेम करने वाली माँ की जय हो!

|| दंडकम ||

जय हो भगवान शिव की अर्धांगिनी जननी की, जिनकी पूजा समस्त ब्रह्माण्ड तथा उसके जीव करते हैं, वे  विल्व वृक्षों से आच्छादित कदंब वन में स्थित मणिद्वीप में निवास करती हैं, जिनमें कल्पध्रुमा वृक्ष के समान भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करने की क्षमता है।   हिमवान पर्वत की पुत्री, जो समस्त ब्रह्माण्ड द्वारा पूजनीय हैं, अत्यंत आकर्षक हैं, जिनके केश आभूषणों से सुशोभित हैं, जिनमें नीले-काले घुंघराले बाल हैं, जो भावपूर्ण संगीत की धुनों पर नृत्य करते हैं तथा अर्धचन्द्र की आभा में चमकते हैं, उनकी सुंदर भौहें भगवान कामदेव के पुष्प बाण के समान हैं तथा उनकी मधुर वाणी अमृत के समान समस्त ब्रह्माण्ड को शीतल करने में सक्षम है। समस्त  जगत को सुख प्रदान करने वाली रमा/देवी श्री महालक्ष्मी, अपने मस्तक पर सुंदर कस्तूरी धारण करती हैं, जो समस्त ब्रह्माण्ड को आकर्षित करती है।  उनके पास दिव्य वाद्य/वीणा की मधुर आवाज है, उनकी गर्दन पर लिपटी कस्तूरी की सुगंध से आकर्षित मधुमक्खियों की भिनभिनाहट, उनके शरीर पर रत्नजड़ित आभूषण उनकी शारीरिक विशेषताओं की उत्कृष्ट सुंदरता को प्रकट करते हैं, जो अर्धचंद्र को भी शर्मिंदा करती है।   ब्रह्मांड की मां की पूजा महान ऋषियों और मुनियों द्वारा की जाती है; वह वल्लकी नामक दिव्य संगीत वाद्ययंत्र बजाते समय आभूषण के आकार के ताड़ के पत्ते पहनती हैं, अमृत पीने के कारण चमकदार लाल आंखों के साथ उनका अद्भुत रूप सुख, समृद्धि प्रदान करता है और देवी श्री काली, जो ब्रह्मांड की आत्मा हैं, के उपासकों की सभी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम है। देवी   की सुंदर नाक की अंगूठी उनके माथे से नीचे की ओर बहते पसीने के समान है; उनकी भव्य मुस्कान थम्बूलम/(विभिन्न सुगंधित मसालों के साथ पान/पान का मिश्रण) से भी सुंदर है उनके होंठ बिम्ब फल के समान मनमोहक लाल हैं, उनकी सुंदर मुस्कान चमेली की कलियों के समान चमकदार दांतों से युक्त है; उनके आकर्षक हाथों में दिव्य वाद्य/वीणा है। वे कला की साक्षात मूर्ति हैं, उनकी शारीरिक संरचना अद्भुत है और उनकी सुंदर लंबी शंख के आकार की गर्दन विभिन्न रत्नजड़ित आभूषणों की चमक से चमकती है। योगी उनकी पूजा करते हैं, उनके सुंदर लंबे हाथों में कमल है और उनकी भुजाएँ रत्नजड़ित आभूषणों से सुशोभित हैं जो ब्रह्मांड में चमक बिखेरते हैं, वे अपने उपासकों पर अपार कृपा बरसाती हैं। उनसे निकलने वाली सुंदर प्रभा 'चित' का प्रतीक है, उनके कानों में आकर्षक कुंडल और उंगलियों पर विभिन्न आभूषण चंद्रमा की आभा प्रदान करते हैं।          

   वह अपने हाथ में दिव्य संगीत वाद्ययंत्र रखती हैं, बड़े वक्षस्थल के भारीपन के कारण उनकी पीठ पर झुका हुआ छोटा सा अंगूठा उनकी विनम्रता को प्रकट करता है और उनकी छाती पर विभिन्न चमकदार आभूषण उनकी सुंदरता के सागर को प्रकट करते हैं, वह अपने भक्तों को प्रचुर धन का आशीर्वाद देती हैं।   तीनों लोकों में उनकी पूजा की जाती है।   वह हर समय शांत रहती हैं, उनकी तेजस्वी शारीरिक विशेषताएं काम भावना जगाने में भगवान मन्मथ को परास्त करती हैं,  रत्नजड़ित उनकी मनमोहक कमर पेटी और छोटी घंटियां मेरु पर्वत की हरी-भरी घाटी की सुंदरता को परास्त करती हैं,   उनके सुंदर लंबे पैर पलाश वृक्ष के तने के समान हैं और आकर्षक स्त्रियोचित चाल है।   वह दिव्य और शुद्ध हैं। देवी श्री पार्वती अपने हाथ में कमल का फूल रखती हैं और उनके कमल के चरण भगवान इंद्र, भगवान विष्णु, भगवान शिव, भगवान वरुण, भगवान ब्रह्मा, वह रत्नजटित कमल के पुष्प पर विराजमान हैं, तथा नौ बहुमूल्य रत्नों से जड़ित राजसी सिंहासन पर विराजमान हैं। वह भगवान गणेश, देवी दुर्गा और आठ भगवान भैरव से घिरी हुई चिर यौवन से चमक रही हैं। वह देवियों मंजुला और मेनका द्वारा पूजनीय हैं, भगवान वामदेव और देवी दुर्गा उनकी सेवा करती हैं, वह आठ दिव्य माताओं/सप्तमठों से घिरी हुई हैं, यक्ष, गंधर्व और सिद्ध, भगवान मन्मथ और देवी श्री रथीदेवी उनकी पूजा करते हैं, और वह भगवान मन्मथ के पुष्प बाणों की आत्मा हैं। सृष्टि के आरंभ से ही ऋषियों द्वारा उनकी पूजा की जाती रही है; वे वैदिक मंत्रों से अत्यंत प्रसन्न होती हैं, वे अपने भक्तों को यश प्रदान करती हैं, भगवान कृष्ण, भगवान ब्रह्मा और विद्याधरों द्वारा उनकी पूजा की जाती है। किन्नर अपनी वीणा की भावपूर्ण संगीत से उनकी स्तुति करते हैं वे ज्ञान की साक्षात् मूर्ति हैं, एक हाथ में स्फटिक की माला और दूसरे हाथ में पवित्र शास्त्र लिए ध्यान करती हैं, उनके हाथ में अंकुश और रस्सी है जो उनके उपासक को धन और सुख प्रदान करती है। देवी श्री पार्वती अपनी जटाओं में सुंदर अर्धचंद्र धारण किए ध्यान मुद्रा में विराजमान हैं, देवी श्री सरस्वती और देवी श्री महालक्ष्मी उनके आदेशों का पालन करने के लिए उनके पार्श्व में खड़ी हैं। 


        ब्रह्मांड की माता, देवी श्री पार्वती को मेरा नमस्कार, जो पवित्र जल, वैदिक मंत्रों, पवित्र प्रतीकों, स्त्री ऊर्जा, पवित्र मंच पर विराजमान, विश्वासों, ज्ञान/बुद्धि, योगिक प्रथाओं, दिव्य संगीत ध्वनियों, सर्वव्यापी ध्वनियों, ब्रह्मांड और उसके विभाजन के रूप में उपस्थित हैं, वे सभी आत्माओं की सर्वोच्च आत्मा हैं जो सर्वव्यापी, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान हैं।           

रविवार, 28 सितंबर 2025

जयति जयति जगत्जननी.../ गुजराती / रचना : रमण द्विवेदी / गायन : आदित्य गढ़वी

https://youtu.be/50SB49UtsbE  

विश्वंभरी अखिल विश्व तनी जनेता

विद्या धरी वदन मा वस जो विधाता

दुर्बुद्धि ने दूर करी सदबुद्धि आपो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


भूलो पड़ी भवर ने भटकू भवानी

सूझे नहीं लगिर कोई दिशा जवानी

भासे भयंकर वाली मन ना उतापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


आ रंकने उगरवा नथी कोई आरो

जन्मांड छू जननी हु ग्रही बाल तारो

ना शु सुनो भगवती शिशु ना विलापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


माँ कर्म जन्मा कथनी करता विचारू

आ स्रुष्टिमा तुज विना नथी कोई मारू

कोने कहू कथन योग तनो बलापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


हूँ काम क्रोध मद मोह थकी छकेलो

आदम्बरे अति घनो मदथी बकेलो

दोषों थकी दूषित ना करी माफ़ पापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


ना शाश्त्रना श्रवण नु पयपान किधू

ना मंत्र के स्तुति कथा नथी काई किधू

श्रद्धा धरी नथी करा तव नाम जापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


रे रे भवानी बहु भूल थई छे मारी

आ ज़िन्दगी थई मने अतिशे अकारि

दोषों प्रजाली सगला तवा छाप छापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


खाली न कोई स्थल छे विण आप धारो

ब्रह्माण्ड मा अणु-अणु महि वास तारो

शक्तिन माप गणवा अगणीत मापों

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


पापे प्रपंच करवा बधी वाते पुरो

खोटो खरो भगवती पण हूँ तमारो

जद्यान्धकार दूर करी सदबुध्ही आपो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


शीखे सुने रसिक चंदज एक चित्ते

तेना थकी विविधः ताप तळेक चिते

वाधे विशेष वली अंबा तना प्रतापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


श्री सदगुरु शरण मा रहीने भजु छू

रात्री दिने भगवती तुज ने भजु छू

सदभक्त सेवक तना परिताप छापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो


अंतर विशे अधिक उर्मी तता भवानी

गाऊँ स्तुति तव बले नमिने मृगानी

संसारना सकळ रोग समूळ कापो

माम पाहि ॐ भगवती भव दुःख कापो