पर, क्या बोलूँ? क्या कहूँ? भ्रान्ति यह देह-भाव। मैं मनोदेश की वायु व्यग्र, व्याकुल, चंचल; अवचेत प्राण की प्रभा, चेतना के जल में मैं रूप-रंग-रस-गन्ध-पूर्ण साकार कमल। मैं नहीं सिन्धु की सुता। तलातल-अतल-वितल-पाताल छोड़, नील समुद्र को फोड़ शुभ्र, झलबल फेनांशकु में प्रदीप्त नाचती ऊर्मियों के सिर पर मैं नहीं महातल से निकली!
शब्दार्थ : भ्रान्ति -भ्रम, धोखा, देहि-भाव-मानव तन (शरीर) धारण करना; मनोदेश-कल्पना का देश व्यग्र -उतावला;अवचेत -अवचेतन मन; प्रभा -प्रकाश;साकार -साक्षात्, प्रत्यक्ष;सुता-पुत्री;शुभ्र -सफेद; फेनांशकु -फेनरूपी वस्त्र,प्रदीप्त -प्रकाशित;उर्मियों -लहरों।
व्याख्या : प्रस्तुत पद्यांश में उर्वशी, पुरुरवा के प्रणय निवेदन का उत्तर देने के पश्चात् अपना परिचय देते हुए कहती हैं कि हे राजन्! मैं अपने मन की बात स्वयं तुमसे कैसे और क्या कहूँ। भावों के आवेश के कारण उन सभी मन की बातों तथा भावों को व्यक्त कर पाना असम्भव है। शारीरिक बाह्य सौन्दर्य दिखावा, छलावा और छलमात्र है। वास्तव में देखा जाए तो इसे उन्माद और पागलपन भी कहा जा सकता है। उर्वशी आगे कहती है कि मैं तो वास्तव में ही काल्पनिक तथा मानसिक देश की उत्कण्ठा और बेचैनी (व्याकुलता) से भरी-पूरी वायु के समान हूँ। मैं अवचेतन मन का प्रकाश हूँ और चेतना के जल में पूर्ण रूप से विकसित होने के साथ रस और सुगन्ध से परिपूर्ण कमल का फूल हूँ। मैं समुद्र की पुत्री (लक्ष्मी) भी नहीं हूँ। मैं पाताल के गर्त को तिरस्कृत करके, समुद्र के नीले रंग को छोड़कर प्रकाशमय फेन के बारीक रेशमी वस्त्र धारण करके, समुद्र की लहरों के मस्तक पर नाचती तथा उत्साहित होती हुई नहीं निकली हूँ। आशय यह है कि उर्वशी स्वयं का परिचय देते हुए पुरूरवा के हृदय में जिज्ञासा उत्पन्न कर देती है।
अर्धनारीश्वर स्तोत्र एक भक्तिपूर्ण स्तुति है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के संयुक्त स्वरूप की आराधना करती है। इसके प्रत्येक श्लोक में शिव और शक्ति के संयुक्त रूप का वर्णन है, जैसे कि वे सृष्टि और संहार के कार्यों में कैसे एक साथ कार्य करते हैं। यह स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचा गया है और इसके पाठ से भक्तों को दीर्घायु, सौभाग्य और सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
श्लोक और अर्थ
श्लोक १.
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय । धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अर्थ: मैं उस शक्ति को प्रणाम करता हूँ जिसका आधा शरीर चम्पे के फूल के समान उज्ज्वल है, और उस शिव को प्रणाम करता हूँ जिसका आधा शरीर कपूर के समान उज्ज्वल है। उस देवी को जो सुंदर केशों वाली है और उस शिव को जो जटाधारी है। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक २.
कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुंजविचर्चिताय । कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अर्थ: उस देवी को जो कस्तूरी और कुमकुम से सजी है, और उस शिव को जो चिता की भस्म से सजे हैं। उस अर्धनारीश्वर को जो कामदेव का कारण है और काम को वश में करने वाले हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक ३.
प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय । जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अर्थ: जो सृष्टि के लिए नटराज के रूप में लास्य नृत्य करती हैं और जो संहार के लिए तांडव नृत्य करते हैं। जो जगत की माता हैं और जो जगत के एकमात्र पिता हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक ४.
प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय । शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अर्थ: जो प्रज्वलित रत्नों के कुंडल धारण करती हैं, और जो भयानक साँपों से सुशोभित हैं। जो शिव से संयुक्त हैं और शिव जो शक्ति से संयुक्त हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक ५.
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय । समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अर्थ: उस देवी को जिसकी आँखें विशाल नीले कमल के समान हैं, और उस शिव को जिनकी आँखें खिले हुए कमल के समान हैं। उस अर्धनारीश्वर को जो दोनों प्रकार की आँखें धारण करते हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक ६.
मन्दारमालाकलितालकाय कपालमालांकितकन्धराय । दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अर्थ: उस देवी को जो मन्दार के फूलों की माला धारण करती हैं और उस शिव को जो मुंडों की माला धारण करते हैं। उस अर्धनारीश्वर को जो दिव्य वस्त्र धारण करते हैं और जो दिगंबर हैं (दिशाओं को ही वस्त्र मानते हैं)। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।
श्लोक ७.
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय । निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय ॥
अर्थ: उस देवी को जिसके केश बादल के समान काले हैं, और उस शिव को जिनकी जटाएँ बिजली के समान लाल हैं। उस अर्धनारीश्वर को जो स्वयं ही ईश्वर और समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं। मैं शिव और शिव (शक्ति) को प्रणाम करता हूँ।