आओ धरती को बचाएं...
-अरुण मिश्र
ऐसी तहज़ीबो - तरक्की से भला क्या हासिल ?
कि, जो इंसान ही बन जाये ज़मीं का क़ातिल |
तायरो - ज़ानवर बच पायेंगे, न शज़रो - बसर |
अगले सौ साल में होगा ज़मीं पे ये मंज़र -
दिमाग़ जीते भले, रोयेगा, हारेगा दिल |
ऐसी तहज़ीबो - तरक्की से भला क्या हासिल ??
फूल बाग़ों में खिलें, पेड़ों पे पखेरू हों |
सांस तो ले सकें, ताजा हवा हो, खुशबू हो |
नीर नदियों का हो निर्मल कि जिसको पी तो सकें |
आओ धरती को बचाएं कि, इस पे जी तो सकें ||
साफ़ झीलों में सुबह, आफताब मुँह धोये |
ज़ुल्म ऐसा न करो धरती पे, धरती रोये ||
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