मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

पत्र, उत्तर एवं प्रत्युत्तर

      मित्रों, आज आपको लगभग 44 वर्ष पूर्व लिखी कविता 
प्रस्तुत कर रहा हूँ। सोलह-सत्रह साल के किशोर वय की यह 
कविता पत्र -उत्तर शैली में है। इतने वर्षों बाद जब मैंने स्वयं 
इसका पुनर्पाठ किया तो मुझे लगा कि, अनगढ़पन के बावजूद 
इसमें कच्ची उम्र का एक भावुक सलोनापन है, जो आकर्षक है।
      अस्तु,  इसके माध्यम से आज आपको कैशोर्य के उस 
कालखण्ड में ले चल रहा हूँ जो मेरी कविताओं का प्रारंभिक 
दौर है।
       इस कविता के प्रत्युत्तर का एक प्रति-उत्तर भी है जो फिर 
कभी अगली पोस्ट में।   -अरुण मिश्र.


Pen_and_paper : Old paper with a candle and a quill pen.

पत्र, उत्तर एवं प्रत्युत्तर 

-अरुण मिश्र.


                            :  पत्र  :

हेमन्ती    रात     और    अनजानी   प्रीति;
अनचाहे   मुखर   हुआ,   अनगाया   गीत।
जाने  कौन  आकर्षण, बाँधता  अकारण है;
अनाघ्रात,    अस्पर्शित,    मेरे    मनमीत??

                            :  उत्तर  :

शब्द  नहीं  मिलते  हैं,   कैसे करूँ  धन्यवाद?
आखि़र  निर्मोही   को  आई   तो  मेरी  याद।
तुमको  क्या  कह कर   मैं   सम्बोधित करूँ?
तुम तो, मेरे सब सम्बोधन तोड़ोगे निर्विवाद।।

                        :  प्रत्युत्तर  :

शोर  दिन का,  ज्यों  चरण-नूपुर हो  तेरा।
केश,  ज्यों   निस्पन्द  रजनी  का  अँधेरा।
रात-दिन  की   व्यस्तता  में   डूब कर  यूँ ; 
और  लघु  होता  है,   स्मृतियों  का   घेरा।।

याद   फिर,   कैसे   भला,   आये    न   तेरी;

रात में,   दिन में,   कि   चारों ओर   तुम हो।
प्राण   की   मेरे   तुम्हीं   अस्तित्व,  रूपसि!
और   मेरी   कल्पना   की   छोर,   तुम   हो।।

विगत की स्मृति, भविष्यत का सपन स्वर्णिम,
और  इस  प्रत्यक्ष  की  अनुभूतियाँ  मधुतम,
मूल   में    इनके,    तुम्हारा   रूपशाली   मन;
बाँधती     सस्नेह,      रेशम-डोर     तुम    हो।।

कह   गया   शायद   बहुत   मैं   भेद  की   बातें;

प्यार   रह  कर  मूक  है   ख़ुद  ही  मुखर  होता।
दूर    तक     फैले     हुये     काले     अँधेरे    में, 
टिमटिमाता  दीप   है,    कितना   प्रखर   होता।।

और स्वीकृति ही है शाश्वत प्रीति की प्रतिध्वनि;
गिन  रही   है  ज़िंदगी   फिर,   साँस  की   सीढ़ी।
मैं   विवश  था,   मौन  को   यूँ   शब्द  देने  हेतु,
पत्थरों   को   तोड़,   ज्यों  जाता  बिखर   सोता।।

हम  नियति  के   हाथ  के,   मोमी  खिलौने  हैं,

काल की  जो  आँच से,  गल जायेंगे  इक  दिन।
प्रीति-तरु  के    हेतु  है,   दावाग्नि  यह  संसार;
नीड़धर्मी  विहग   सब,   जल जायेंगे इक दिन।।

बहुत  सम्भव   सृष्टि  में,   भूकम्प   वह  आये;

प्रलय   छाये,    और   जग    अःशेष  हो  जाये।
पर  हमारा प्यार यह  लौकिक,  अलौकिक  हो;
हो  अमर,  ताजा  रहेगा,   हर  घड़ी,  हर  छिन।।

                                      *


शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

याद आयेगी तुम्हें आतिश-फि़शां मेरी ज़बान....

ग़ज़ल 

याद आयेगी तुम्हें आतिश-फि़शां मेरी ज़बान....

-अरुण मिश्र.


अब क़फ़स की तीलियां टूटी हैं,  अब होगी उड़ान।
अब तेरे परवाज़ की ताइर, अलग  ही  होगी शान।।

हसरतें  अब  भी  जवां हैं,  हौसले अब भी बुलन्द।
जुम्बिशे-पर  चीर  कर रख देगी,  सारा आसमान।।

मैं   उफ़ुक़  के  पार  होता  हूँ ,   ख़यालो-फि़क्र  में।
दीद  की   हद  में   हमारे,   होते   हैं  दोनो  जहान।।

ख़ामुशी  छा  जायेगी,   जब  भी  कभी  माहौल में।
याद  आयेगी  तुम्हें,  आतिश-फि़शां  मेरी  ज़बान।।

हैं ‘अरुन’ आज़ाद-ख़ू,कब कर सकीं हम को असीर। 
ज़ुल्फ की  ज़जीर,   या  तीरे-नज़र,   भौंहें-कमान।।

                                          * 



शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

श्रीमद् शंकराचार्यकृत चर्पटपञ्जरिकास्तोत्रम् का भावानुवाद






श्रीमद् शंकराचार्यकृत चर्पटपञ्जरिकास्तोत्रम् 
                     का भावानुवाद

-अरुण मिश्र.


भज गोविन्द  मूढ़मते,  भज  गोविंद  के  चरण।
मृत्यु के  समीप,   साथ   देता  नहीं  व्याकरण।।

रात्रि-दिवस, प्रात-साँझ,  शेष हुई  जाती  आयु।
क्रीड़ा करे कालचक्र,   छूटे  पर  न  आशा-वायु।।

जागे,  सहे अग्नि-भानु;  सोये, धरे चिबुक जानु।
भिक्षा-भोग, तरु-निवास; छूटे पर न आशा-पाश।।

कमा  सकेगा  जब तक,   देगा   परिवार  स्नेह।
जर्जर  जब   हुई   देह,   पूछे  नहीं   कोई   गेह।।

जटा बढ़ा,  केश घुटा,  भगवा   धरे   नाना-वेष।
देख के न देखा;  सहे,   उदर के निमित्त  क्लेश।।

किंचित   भगवद्गीता,   बूँद    मात्र    गंगाजल।
जिसपे  हरि-चर्चा-बल,  उसको यम है निर्बल।।

गलित अंग, पलित  मुंड;  दशनहीन हुआ तुंड।
हुआ वृद्ध,  गहा दंड;   छूटा पर  न  आशा-पिंड।।

क्रीड़ा  में  बाल्यकाल;   तरुणाई   तरुणी  संग।
वृद्ध  तदपि चिंतामग्न;  प्रभु का  ना  चढ़ा रंग।।

पुनः-पुनः  जन्म-मरण;   गर्भ-शयन  बार-बार।
ले कर हरि-शरण,   करो,   दुस्तर  संसार  पार।।

रात्रि-दिवस-पक्ष-मास-अयन-वर्ष    बार-बार।
साथ   पर   नहीं   छोड़े    आशा-ईर्ष्या-विकार।।

नष्ट-आयु,  कैसा काम?   शुष्क-नीर-सर,   न अर्थ।
नष्ट-द्रव्य, परिजन कहाँ ? तत्व-ज्ञान,जगत, व्यर्थ।।

नारीस्तन-नाभि   हैं,    माँस-मेद   के   विकार।
मिथ्या  ये  माया-मोह,    सोचो  मन  बार-बार।।

कौन तुम?  कहाँ  से हो?   सबको   असार   जान।
जननी औ’ तात कौन?  तजो विश्व,  स्वप्न मान।।

पढ़ो गीता-सहस्त्रनाम;   श्री-पति का धरो ध्यान।
चित्त  लहे   सत्संगति;   दीनजनों  को   दो  दान।।

जब तक तन बसें प्राण, तब तक सब पूँछें  कुशल।
होती,   मृत-देह  देख,   भार्या भी   भय से  विकल।।

पहले    तो    सुःख-भोग;   पीछे,  रोगमय  शरीर।
नश्वर   संसार    तदपि,    मन   पाप  को   अधीर।।

चिथड़ों से रचा कंथ;   पुण्यापुण्य  विचलित  पंथ।
‘मैं, तू औ’ विश्व शून्य’  जान के भी,   शोक? हंत!!

गंगासागर-गमन,      व्रत-पालन    तथा      दान।
मुक्ति    नहीं   सौ जन्मों तक  होगी,  बिना  ज्ञान।।

                      *

                   इति श्री शंकराचार्य-विरचित चर्पटपञ्जरिकास्तोत्रम् 
                                           का भावानुवाद संपूर्ण।

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

मेरा गहरा रिश्ता ख़ारों से......

ग़ज़ल 

मेरा गहरा रिश्ता ख़ारों से.....

- अरुण मिश्र.



मेरा         गहरा        रिश्ता      ख़ारों    से।
मैं      क्यूँ      माँगूँ      भीख    बहारों    से।।

मेरे   जख़्म  हरे  हैं,   जिन पर   खिले हुये।
फूल     लहू       के     सुर्ख़     फुहारों    से।।

देखें   किसकी   प्यास  बुझाता  कौन यहाँ।
आज      उफनती      नदी     किनारों   से।।

बिन पैसे, दिन स्याह-स्याह सा बीत गया।
रात      रखूँ     क्या    आस    सितारों   से??

‘अरुन’  बहुत   मासूम   तुम्हारी  उम्मीदें।
इन्क़लाब      कब      आता      नारों    से??

                                     *

रविवार, 2 दिसंबर 2012

दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ तारी है.....

ग़ज़ल 
indian paintings

दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ  तारी है.....

-अरुण मिश्र.


दिल पे हर लहज़ा जु़नूँ  तारी है।
आज-कल  उनकी इन्तज़ारी है।।

लम्हे  सदियों से क्यूँ  गुजरते हैं?
क्या न  रफ़्तारे-वक़्त   जारी है??

कट गई  उम्र  इक,  तमन्ना में।
अब क्यूँ  दो-चार घड़ी,  भारी है??

एक आहट सी,  हुई  है  दर  पर।
क्या ये  किस्मत खुली हमारी है??

तुम ‘अरुन’ हो अबस भुलावे में।
ऐसी  तक़दीर,  क्या  तुम्हारी है??

                           *


शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

तुम परीशां हो कि आखि़र धातु का मैं किस ढला हूँ ........

ग़ज़ल 

तुम परीशां हो कि आखि़र धातु का मैं किस ढला हूँ ........

-अरुण मिश्र. 


तुम परीशां हो कि आखि़र धातु का मैं किस ढला हूँ ।
यातनाओं के  शिविर में  साँस   ले-ले  कर  पला हूँ ।।

हाँ   यही कारण है,  सह जाता हूँ   हर  तकलीफ मैं।
हॅसते-हॅसते इस तरह, जैसे  हिमालय की शिला हूँ ।।

आज  है  साहित्य  में   कुंठा,   निराशा   पर   बहस।
मैं  अभी  तक  नाज़नीं  की  कल्पना में  मुब्तिला हूँ ।।

सुनते  हैं   इस  दौर  में,  इन्सान  है  गुम   हो  गया।
भाई   मेरे  मुझको  देखो,  मैं  पुराना  सिलसिला  हूँ ।।

मेरे  संग  आये  न  कोई,   मुझको  है   परवा’  नहीं।
मेरी  है  बुनियाद  माज़ी,  मैं  स्वयं  ही  क़ाफि़ला हूँ ।।
                                          *



शनिवार, 24 नवंबर 2012

हम तो यां आये हैं अश्क़ों का उतर के दरिया......

ग़ज़ल 

हम तो यां आये हैं अश्क़ों का उतर के दरिया......

-अरुण मिश्र.



हम तो यां आये हैं,  अश्क़ों का, उतर के दरिया।
हमसे क्या माँगेगा,  बारिश में उभर के दरिया??


जितनी  ही  दूरी,  समन्दर  से  है,  घटती  जाये।
उतना ही, और भी, थम-थम के है, सरके दरिया।।


है  जिन्हें  जाना,  उन्हें  फि़क्र  क्यूँ  तुम्हारी  हो?
घाट  का  हाल,  कब  पूछे  है,  ठहर  के  दरिया??


क्या कहूँ,  ऐसी मुहब्बत को,  और कि़स्मत को?
है   उनका   हर्फ़े - वफ़ा,  और   है   वर्के़ - दरिया।।


जो  बदज़ुबान  है,  औ’  बदगु़मान भी है  ‘अरुन’।
नेकि़याँ   उससे  भी   करके,  करो  ग़र्के - दरिया।।
                                           *

रविवार, 18 नवंबर 2012

मेरी ग़ज़ल को तनहा नहीं गुनगुनाइये ......

ग़ज़ल 

मेरी ग़ज़ल को तन्हा नहीं गुनगुनाइये ......

-अरुण मिश्र . 


मेरी   ग़ज़ल   को    तन्हा  नहीं    गुनगुनाइये।
खुलिये  भी  ज़रा,  सुर  से  मेरे  सुर मिलाइये।।


अब  इतना  भी  नादान  नहीं, ये भी न समझूँ।
ग़ुंचा,  लबो  -रुख़सार   पे  क्यूँ  कर  फिराइये।।


खि़रमन हैं,  खेतियां हैं,  नशेमन हैं,  चमन हैं।
जल्वे  के    इन्तज़ार  में,   बिजली   गिराइये।।


सैय्याद  कौन,  कैसा  क़फ़स, तीलियाँ  कैसी?
बुलबुल  को   है  आराम  बहुत,  आप  जाइये।।


होती  न  पस्तियां  मिरी,  उसकी  बुलन्दियां।
तो   कौन   पूछता   उसे,   यह   तो    बताइये??


हर शै  में  नुमायां भी  है,  परदे  में  भी  निहां।
आँखों  पे,  भरम  का  है,  जो  परदा,  हटाइये।।


वो मिस्ले-मुश्क़ हो, या ‘अरुन’ इश्क़ की तरह।
तब तक  तलाशिये उसे,  जब  तक  न  पाइये।।
                                         *

सोमवार, 12 नवंबर 2012

श्री लक्ष्मी-गणेश जी की आरती


 शुभ दीपावली
 

                  * आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की *

गत वर्ष दीपावली पर क्रमशः 27 एवं 29 अक्तूबर, 2011 की पोस्ट में  श्री लक्ष्मी -गणेश जी की यह संयुक्त आरती प्रस्तुत की गई थी। मेरे संगीतकार मित्र श्री केवल कुमार ने उस आरती को , इस दीपावली पर संगीतबद्ध  किया है जो, सभी भक्त जनों को दीपावली-पूजन हेतु सस्नेह भेंट की जा रही है। आरती को स्वर, सुश्री प्राची चंद्रा एवं सखियों ने दिया है। एतदर्थ, मैं इन सबका आभारी हूँ। 
माँ लक्ष्मी एवं भगवान गणेश की आप सब पर अशेष कृपा बरसे।
दीपावली की असंख्य शुभकामनायें। -अरुण मिश्र .  




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शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......

ग़ज़ल 

तुम्हारा काँधा हमें आज फिर रुलावेगा.......

-अरुण मिश्र.

तुम्हारा  काँधा   हमें,  आज  फिर   रुलावेगा ।
हाल   पूछोगे   तो ,   आजार   याद   आवेगा ।।

न  वज्हे-तर्के-तअल्लुक़,  बयां करो  सब  से ।  
कि इससे  मुझको,  तेरा प्यार,  याद आवेगा ।।

ये क़फ़स सोने का, मैंने है,  खुद पसंद किया ।
मुझे  पता था,  वो ज़ालिम,  बहुत  सतावेगा ।।

दिल मेरा चीर के,  ख़ुद देखेगा  अपनी सूरत ।
मेरे  कहे  से  भला,   क्यूँ  वो   मान  जावेगा ।।

हस्ती-ए-हुस्न   तो,   यूँ   ही  हुबाब  जैसी  है ।
ख़ूब  पर  दावा  है,   हस्ती   मेरी   मिटावेगा ।।

'अरुन' सुलावे; पिला चाँद, चाँदनी की शराब ।
अब  हमें   भोर   में,    ख़ुर्शीद   ही    उठावेगा ।। 
                                       * 









बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना......




ग़ज़ल  

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना........
  
-अरुण मिश्र

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना,  कहीं दीखते वो बशर नहीं।
जो मिरे कलाम में था असर,  मुझे  अब लगे  वो असर नहीं॥

सभी  ग़ुल  हैं सूखते शाख़  पर, सभी हीरे  लिपटे हैं  धूल में।
न वो क़द्रदां,  न वे पारखी,  हैं वो पहले से  अहले-नज़र नहीं॥

हैं  बदलते  वक़्त के  संग-संग,  सभी  रूप-रंग   बदल  गये।
है ज़माना पहुँचा  कहाँ तलक, तुझे  इसकी  कोई ख़बर नहीं॥

अभी भी  बचे  हैं  दरख़्त  कुछ,   मेरे  शह्र में , मिरे  लान में।
पर थीं जिसपे  कूकती कोयलें,  कहीं दूर तक वो  शज़र नहीं॥

तेरे नग़मों में अभी ताजगी,  तेरी  ऑखों में  अभी  ख़्वाब  हैं।
तेरी जुस्तजू है  अथाह की,   कहीं  थक के  जाना  ठहर नहीं॥
                                                      *
(टिप्पणी : 31.08.2012 की पोस्ट में बिना वीडियो के पूर्वप्रकाशित।)


बुधवार, 24 अक्टूबर 2012

हे! राम राम जय राम राम....

 हे!  राम राम जय राम राम....




 हे!  राम राम जय राम राम....

  - अरुण मिश्र

 जय  राम,  राम,  जय  रामचन्द्र।
 शोषित- जन- मन-विश्राम,चन्द्र।
 दशरथ -  हृत्व्योम - बिहारी    हे!
 रघुकुल  के  चिर-अभिराम चन्द्र।।

               शुचि, जीवन-मूल्यों के  मापक।
               हे पूर्ण-पुरुष! अग-जग-व्यापक।
               यश-वाहक,   संस्कृति-संवाहक। 
               मर्यादाओं       के       संस्थापक।।

    हे!   दीन - हीन   के   मन  के   बल।
    मुनि-हृदय-मीन, तव-भक्ति सुजल।
    हे!    चिर-नवीन- शुभ-आस-रश्मि।
    हे!  आर्त - दुखी- जन    के    संबल।।

               भारत-भुवि  के   गौरव   ललाम।
               हे! संत- सरल- चित- परमधाम।
               निष्काम !  करो  लीला- सकाम।
               हे!  राम,  राम,   जय   राम-राम।।
                                         *
(17 अक्टूबर , 2010 की पोस्ट में पूर्वप्रकाशित।)

                                      *विजय दशमी की शुभकामनायें *




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रविवार, 30 सितंबर 2012

आप मेरे हुज़ूर भी रहिये.....




ग़ज़ल

आप मेरे हुज़ूर भी रहिये.....

-अरुण मिश्र.

आप     मेरे     हुज़ूर    भी    रहिये।
बा-अदब,   बा-शऊर    भी   रहिये।।

कुछ अज़ब सी हैं ख़्वाहिशें उसकी।       
पास  भी  रहिये,   दूर   भी   रहिये।।

जाम   नज़रों  के,  पीजिये  हरदम।
और   फिर,    बेसुरूर   भी   रहिये।।

मिस्ले-काजल भी रहिये आँखों में।
हो  के  आँखों  का  नूर,  भी  रहिये।।

आप    बेशक़    गुनाह   भी   कीजे।
ज़ाहिरा     बेकुसूर      भी     रहिये।।
                               *

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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

प्रिय पौत्र कुशाग्र के तीसरी वर्ष-गाँठ पर विशेष......












चिड़िया रानी आईं हैं...........

-अरुण मिश्र.

"चिड़िया  रानी  आईं   हैं,  मुन्ने  को  बुलाने।
 आओ  चलें  मुन्ने  राजा  बारिश  में  नहाने। 
 मुन्ना मुश्किल में,  भीगूँ तो  मम्मी डांटेंगी।
 बोलो चिड़िया फिर क्या  मैं बनाऊंगा बहाने।।"

         *                      *                    *

"नन्ही  चिड़िया  रानी  हैं,  मुन्ने  की  सहेली।
 मुन्ने  बिना  कहीं भी  न  जातीं  वो  अकेली।
 पर  जिस दिन  न आयें वो,  बनायें ये बहाना।
 'मुन्ना,  मैं  तो  सुरमा  लेने  गई  थी  बरेली'।।"

          *                     *                     *

"मुन्ने से दूनी  बढ़ती  मुन्ने की  कारस्तानी।
 मम्मी-पापा  आठों  पहर,   करते  निगरानी।
 मुन्ना  मुश्किल  में,  क्या बोले,  करे,  खेले।
 मुन्ने  की  हर  बात  ही   कहलाती  शैतानी।।"

           *                     *                    *   



टिप्पणी : मेरा बेटा जब दो-तीन वर्ष का था तब उसके लिए लिखी गई 
लोरियों में से तीन लोरियां, उसके बेटे (मेरे पोते) की तीसरी वर्ष-गाँठ 
पर आशीर्वाद एवं मंगलकामनाओं के साथ पोस्ट कर रहा हूँ।-अरुण मिश्र.    

रविवार, 16 सितंबर 2012

ये घर के सामने जो गुलमुहर है........


ये घर के सामने जो गुलमुहर है........ 



















ग़ज़ल 

ये घर के सामने जो गुलमुहर है........

-अरुण मिश्र.

ये   घर  के   सामने   जो   गुलमुहर  है।
मेरे    शे'रो-सुख़न    का   हमसफ़र   है॥

है सुब्हो-शाम हर सुख-दुख में शामिल।     
क़रीबी    है,   बहुत    ही    मो'तबर    है॥

हैं     बालो-पर     ख़याल-आराइयों   के।
हरी    जो     पत्तियां     ओढ़े   शजर   है॥

मैं   ख़ुश  होता  तो   ये  भी   झूमता  है।
इसे   दिल   की   हमारे    हर   ख़बर  है॥

टंके    हैं    सुर्ख़   फूलों   के   जो  गुच्छे।
भरा    उनमें     मेरा    ख़ूने-जिगर    है॥

है    परवाज़े-सुख़न   में    जोश   भरता।
ये   मेरी   ख़ाक    में    भरता  शरर   है॥

'अरुन'  है साथ  जब तक गुलमुहर का।
नहीं   तनहाइयों   का     कोई    डर   है॥

                                   *

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे.........

ग़ज़ल 

*हिंदी दिवस पर विशेष *
संबंधित ब्लाग से साभार 













बीसियों हिंदी-दिवस आते रहे जाते रहे......... 

-अरुण मिश्र 

इस  तरह  हम  इश्क़  दोनों  ही  से  फरमाते  रहे ।
एक   की   खाते   रहे  और   दूजे   की   गाते  रहे ।।

सिर्फ़  दो सौ  साल में,  नस  कौन सी जाने  दबी ।
बाँध  टाई  ख़ुश  हुए,  गिट-पिट  पे  इतराते  रहे ।।

इससे बढ़ कर और क्या ज़ेह्नी ग़ुलामी का  सबूत ।
हिंदी को,  हिंदी में  लिखने में  भी,  शरमाते  रहे ।।

हर तरक्क़ी का सबब है,  अपनी भाषा का उरुज ।
मंत्र  से  'हरिचंद'  के,  हम  मन को बहलाते  रहे ।।

बाद  आज़ादी  'अरुन ',  हिंदी  वहीं  की   है  वहीं ।
बीसियों    हिंदी-दिवस,   आते   रहे,   जाते   रहे ।।
                                             *  


रविवार, 9 सितंबर 2012

ऐसी बारिश..........

beautiful rain 3 If all this snow was rain... (27 photos)

ऐसी बारिश.........

-अरुण मिश्र. 

ऐसी बारिश, कभी सोचा था कि, जम कर होगी ?
बूँदें   बाहर ,   औ'   घटायें   मेरे   भीतर    होंगी ??

करती  मासूम  कलेजे  को  चाक-चाक  निगाह।
वो  नज़र, सिर्फ़ नज़र   ही  नहीं,  नश्तर  होगी॥

जो  आबशार  सा    दिन-रात   झरा   करती  है।

संगदिल   कैसे   पठारों   की,  चश्मे-तर   होगी ??

पीर    पैदा   हुई,  नाज़ों   पली,    परवान   चढ़ी।

इश्क़  के  घर  की  बड़ी  लाड़ली   दुख्तर   होगी॥

खुले  दिलों में,  खुले दिल से   मैं  घुल  जाता था।

कैसे   कुछ   तंग   दिलों   में,  मेरी   बसर  होगी ??

चाँदनी  रातें,  जो लगती थीं ,  गुलों  का  बिस्तर।

वे  ही  रातें,  कभी  सोचा  था   कि   खंज़र  होंगी ??

आइनाख़ाना-ए-दुनिया में,  देख  लीं   जो 'अरुन'।

सूरतें   ऐसी,    न   जन्नत  में   मयस्सर   होंगी ??
                                            *

शनिवार, 1 सितंबर 2012

*नन्हें शिशु को आशीर्वाद*

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Giant Teddy Happy Cuddles Soft and Huggable Sky Blue Teddy Bear 38in*नन्हें शिशु को आशीर्वाद*       Giant Teddy Happy Cuddles Soft and Huggable Sky Blue Teddy Bear 38in
Giant Teddy Happy Cuddles Soft and Huggable Sky Blue Teddy Bear 38in देव, पितृ , परिवार, पुर, सबका पुण्य प्रसाद।     Giant Teddy Happy Cuddles Soft and Huggable Sky Blue Teddy Bear 38in
                       नन्हें शिशु पर  कोटि-शत,  बरसें  आशीर्वाद।। 
Giant Teddy Happy Cuddles Soft and Huggable Sky Blue Teddy Bear 38in बाल न बाँका कर सकें, कभी विलेन या वैम्प।    Giant Teddy Happy Cuddles Soft and Huggable Sky Blue Teddy Bear 38in
                       जीवन  के  हर  क्षेत्र  में,  आजीवन  हो  चैम्प।।                            
                                                                         
                                                                                           -अरुण मिश्र.                                                           
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Giant Huge Jumbo 63" Brown Teddy Bear Stuffed Plush Toy Giant Huge Big 30" White Teddy Bear Heart Stuffed Plush                                                          
(टिप्पणी : मित्र के सुपौत्र  'चैम्प'  के जन्मोत्सव पर आशीर्वाद स्वरुप लिखे गए 
 ये दोहे, दुनिया के सभी नवजात शिशुओं को सस्नेह समर्पित हैं। -अरुण मिश्र।)  

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना........


अभी भी बचे हैं दरख़्त कुछ .....


ग़ज़ल  

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना........
  
-अरुण मिश्र

वो जो इल्मो-फ़न के थे आशना,  कहीं दीखते वो बशर नहीं।
जो मिरे कलाम में था असर,  मुझे  अब लगे  वो असर नहीं॥

सभी  ग़ुल  हैं सूखते शाख़  पर, सभी हीरे  लिपटे हैं  धूल में।
न वो क़द्रदां,  न वे पारखी,  हैं वो पहले से  अहले-नज़र नहीं॥

हैं  बदलते  वक़्त के  संग-संग,  सभी  रूप-रंग   बदल  गये।
है ज़माना पहुँचा  कहाँ तलक, तुझे  इसकी  कोई ख़बर नहीं॥

अभी भी  बचे  हैं  दरख़्त  कुछ,   मेरे  शह्र में , मिरे  लान में।

पर थीं जिसपे  कूकती कोयलें,  कहीं दूर तक वो  शज़र नहीं॥

तेरे नग़मों में अभी ताजगी,  तेरी  ऑखों में  अभी  ख़्वाब  हैं।
तेरी जुस्तजू है  अथाह की,   कहीं  थक के  जाना  ठहर नहीं॥
                                                      *
....मेरे शह्र  में, मेरे लान में।





रविवार, 26 अगस्त 2012

वो शज़र याद हो अगर तुमको.....





नज़्म

वो शज़र याद हो अगर तुमको.....  

-अरुण मिश्र. 

हम थे भीगे 
किसी कदम के तले।
वो शज़र, 
याद हो अगर तुमको,
सिर्फ तुम इतना ही 
किया करना,
जब कभी 
उसकी राह से गुजरो,
उसको हौले से 
छू लिया करना।।

मैं भी 
हर बार, 
ऐसा करता हूँ।।
              *
Kadam


NAZM

VO SHAZAR YAAD HO AGAR TUMKO.....  

-Arun Mishra. 

Hum the bheege 
Kisee kadam ke tale.
Vo shazar, 
Yaad ho agar tumko,
Sirf tum itna hee 
Kiya karna,
Jab kabhee 
Uskee raah se gujro,
Usko haule se 
Chhoo liya karna.

MaiN bhee 
Har baar, 
Aisaa karta hooN.
              *

रविवार, 19 अगस्त 2012

मेरे अक़ीदे ने तुझको किया है ईद का चॉद......

आपको एवं आप के परिवार को ईद की शुभकामनायें !





















ईद पर विशेष 

मेरे अक़ीदे ने तुझको किया है ईद का चॉद......

-अरुण मिश्र.


है  लबे&बाम  तेरे  हुस्न की  ताईद का  चाँद।
हो मुबारक सभी को आज बज़्मे&ईद का चाँद।।    


उफ़क पे  उभरी  हुई  यूँ  तो  इक  लकीर  है  बस।
मेरे  अक़ीदे   ने   तुझको  किया  है ईद का  चॉद॥

मुझे   यक़ीन   है   ख़ुशियों   से    भरेगा   दामन।
मैंने  बरसों  से   इसे  जाना  है  उम्मीद का  चॉद॥

गले  मिलो  सभी  आपस  में  भूल  कर  नफ़रत।
झलक  रहा है  फ़लक पे  इसी  ताकीद  का  चॉद॥

सभी  का   एक  ही  मालिक  है  जान  लो  लोगों।
'अरुन' के  वास्ते  चमका  है  ये  तौहीद का  चॉद॥
                                            *

मंगलवार, 14 अगस्त 2012


Indian_flag : flag of India with flag pole waving in the wind over blue sky Stock Photo
हिन्दोस्तां की अज़्मत का चाँद मुबारक़ हो !


















नज़्म 

चाँद मुबारक़........

-अरुण मिश्र.



( स्वतंत्रता दिवस पर वर्ष 2010 एवं 2011 में क्रमशः  नज़्म तथा विडियो पूर्व प्रकाशित / प्रसारित )