प्यार के ग़फ़लत में जिसके....
-अरुण मिश्र
प्यार के ग़फ़लत में जिसके, है गुज़ारी ज़िन्दगी।
रंज उसको, मैंने ही, उसकी बिगाड़ी ज़िन्दगी।।
चहचहों से जिसके, मुझको घर सदा गुलशन लगा।
उसको ये ग़म, पिंजरे में, उसने गुज़ारी ज़िन्दगी।।
प्यार में क्या खोया-पाया, इसका भी होगा हिसाब।
यूँ कभी सोचा न था , ऐ प्यारी-प्यारी ज़िन्दगी।।
हँसने-रोने के हुनर ने, है इसे, आसां किया।
रोये जो अक्सर, तो हॅस कर भी गुज़ारी ज़िन्दगी।।
तल्खि़यां , मज्बूरियां , नाकामियां , लाचारियां।
जाने कितने वज़्न हैं , जिनसे है भारी ज़िन्दगी।।
जान भी प्यारी है औ’, जीना भी है मुश्किल मियाँ।
ख़ूब, ये मीठी कटारी है दुधारी, ज़िन्दगी।।
जो बचे इस साल, सूखा - जलजला - सैलाब से।
वहशतो- दहशत ने ग़ारत की, हमारी ज़िन्दगी।।
आस्ताने - कैफ़ो - मस्ती, यूँ तो आलम में हज़ार।
पर फिराती दर-बदर, क़िस्मत की मारी ज़िन्दगी।।
बीतते सावन के बादल भी, न कुछ लाये ख़बर।
आस कोई तो मिरे मन में, जगा री ! ज़िन्दगी।।
आओ साथी बाँट लें, आपस में हर ग़म-ओ-ख़ुशी।
थोड़ा हँस लें साथ कि, ख़ुश हो बिचारी ज़िन्दगी।।
जानो-तन जब तक फँसे हैं, दामे-दुनिया में ‘अरुन’।
क्या गिला, किस जाल में फँस कर गुज़ारी ज़िन्दगी।।
*
-अरुण मिश्र
प्यार के ग़फ़लत में जिसके, है गुज़ारी ज़िन्दगी।
रंज उसको, मैंने ही, उसकी बिगाड़ी ज़िन्दगी।।
चहचहों से जिसके, मुझको घर सदा गुलशन लगा।
उसको ये ग़म, पिंजरे में, उसने गुज़ारी ज़िन्दगी।।
प्यार में क्या खोया-पाया, इसका भी होगा हिसाब।
यूँ कभी सोचा न था , ऐ प्यारी-प्यारी ज़िन्दगी।।
हँसने-रोने के हुनर ने, है इसे, आसां किया।
रोये जो अक्सर, तो हॅस कर भी गुज़ारी ज़िन्दगी।।
तल्खि़यां , मज्बूरियां , नाकामियां , लाचारियां।
जाने कितने वज़्न हैं , जिनसे है भारी ज़िन्दगी।।
जान भी प्यारी है औ’, जीना भी है मुश्किल मियाँ।
ख़ूब, ये मीठी कटारी है दुधारी, ज़िन्दगी।।
जो बचे इस साल, सूखा - जलजला - सैलाब से।
वहशतो- दहशत ने ग़ारत की, हमारी ज़िन्दगी।।
आस्ताने - कैफ़ो - मस्ती, यूँ तो आलम में हज़ार।
पर फिराती दर-बदर, क़िस्मत की मारी ज़िन्दगी।।
बीतते सावन के बादल भी, न कुछ लाये ख़बर।
आस कोई तो मिरे मन में, जगा री ! ज़िन्दगी।।
आओ साथी बाँट लें, आपस में हर ग़म-ओ-ख़ुशी।
थोड़ा हँस लें साथ कि, ख़ुश हो बिचारी ज़िन्दगी।।
जानो-तन जब तक फँसे हैं, दामे-दुनिया में ‘अरुन’।
क्या गिला, किस जाल में फँस कर गुज़ारी ज़िन्दगी।।
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