रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें
राम परम प्रभु तुम्हें नमन है…
(भावानुवाद)
-अरुण मिश्र
आते देव-जन करते वन्दन,
सूर्य-वंश के हो तुम नन्दन ।
तेरे भाल सुशोभित चन्दन,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥१॥
विश्वामित्र-यज्ञ के कारक,
शिला-अहिल्या के उद्धारक ।
महादेव के धनुर्विदारक,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥२॥
पिता-वचन हित आज्ञाकारी,
तप-वन के तुम बने विहारी ।
हे! निज-कर सुन्दर धनु-धारी,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥३॥
मृग को मुक्त किया निज सायक,
हे ! जटायु के मोक्ष-प्रदायक ।
बींधा बालि कीश-कुल-नायक,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥४॥
वानर-जन से संगति-सम्मति,
बाँधा पुल से महा-सरित्पति ।
दशकंधर का किया वंश-क्षति,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥५॥
दीन देव-जन को कर हर्षित,
कपि-जन की इच्छा हित वर्षित ।
स्वजन-शोक को करते कर्षित,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥६॥
कर अरि-हीन राज्य का रक्षण,
प्रजा जनों के भय का भक्षण ।
करते अस्त मोह के लक्षण,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥७॥
अखिल भूमि का भार लिया हर,
ले निज धाम गए सब नागर ।
जगत हेतु हे ! श्रेष्ठ दिवाकर,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥८॥
*
भव-भय उसको नहीं सताये,
जो हो कर एकाग्र-चित्त नर।
रघुवर के इस उत्तम अष्टक
का, करता है पाठ निरन्तर ॥
***
(इति श्री परमहंस स्वामी ब्रह्मानन्द विरचित श्री रामाष्टक का भावानुवाद सम्पूर्ण)
राम परम प्रभु तुम्हें नमन है…
(भावानुवाद)
-अरुण मिश्र
आते देव-जन करते वन्दन,
सूर्य-वंश के हो तुम नन्दन ।
तेरे भाल सुशोभित चन्दन,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥१॥
विश्वामित्र-यज्ञ के कारक,
शिला-अहिल्या के उद्धारक ।
महादेव के धनुर्विदारक,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥२॥
पिता-वचन हित आज्ञाकारी,
तप-वन के तुम बने विहारी ।
हे! निज-कर सुन्दर धनु-धारी,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥३॥
मृग को मुक्त किया निज सायक,
हे ! जटायु के मोक्ष-प्रदायक ।
बींधा बालि कीश-कुल-नायक,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥४॥
वानर-जन से संगति-सम्मति,
बाँधा पुल से महा-सरित्पति ।
दशकंधर का किया वंश-क्षति,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥५॥
दीन देव-जन को कर हर्षित,
कपि-जन की इच्छा हित वर्षित ।
स्वजन-शोक को करते कर्षित,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥६॥
कर अरि-हीन राज्य का रक्षण,
प्रजा जनों के भय का भक्षण ।
करते अस्त मोह के लक्षण,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥७॥
अखिल भूमि का भार लिया हर,
ले निज धाम गए सब नागर ।
जगत हेतु हे ! श्रेष्ठ दिवाकर,
राम परम-प्रभु तुम्हें नमन है ॥८॥
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भव-भय उसको नहीं सताये,
जो हो कर एकाग्र-चित्त नर।
रघुवर के इस उत्तम अष्टक
का, करता है पाठ निरन्तर ॥
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(इति श्री परमहंस स्वामी ब्रह्मानन्द विरचित श्री रामाष्टक का भावानुवाद सम्पूर्ण)