बुधवार, 29 जुलाई 2015
मंगलवार, 28 जुलाई 2015
‘अब्दुल कलाम’
श्रद्धांजलि
‘अब्दुल कलाम’
भारत की प्रतिभा की प्रतिकृति,
भारत की मेधा प्रबल, मुखर।
भारत की आँखों के सपने,
भारतीय कंठ के गौरव-स्वर।।
चेहरे पर थीं सुन्दर आँखें ,
आँखों में थे सुन्दर सपने।
सपनों में था सुन्दर भविष्य,
तेरे संग स्वप्न बुने सब ने।।
सब की आँखों को सपना दे,
सबको दिखला कर नई डगर।
तुम चले गये हे महामना !
तज कर शरीर अपना नश्वर।।
हैं साश्रु नयन, अवरुद्ध गिरा,
नत-शीश समर्पित है सलाम।
युग-युग तक गूँजे भारत में
यह मधुर नाम 'अब्दुल कलाम’।।
*
-अरुण मिश्र
२८/०७/२०१५
सोमवार, 27 जुलाई 2015
कारगिल के वीर .......
श्रद्धांजलि
कारगिल के वीर
-अरुण मिश्र
तुमने बज़्मे-जंग में छलकाये अपने खूँ के जाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
धूर्त दुश्मन जब घुसा, घर में हमारे चोर सा।
बंकरों में जब हमारे ही जमाया मोरचा।
उसपे थीं लंदन की सिगरेट्स, तुम पे जूते तक नहीं।
लात फिर भी खा तुम्हारी, पैर रख सर पर भगा।।
तुम हिमानी चोटियों पर टांक आये अपना नाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
वीरता के आवरण में, शूरता का आचरण।
शत्रुओं के शीश पर, शोभित हुये विजयी चरण।
देख कर पुरुषार्थ, रण में मृत्यु तक मोहित हुई।
डालकर जयमाल, जय का, कर लिया तेरा वरण।।
उन शहीदों पर वतन के, है निछावर ये कलाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
एक-एक, चोटी को तुमने, खून से सींचा जवान।
जान की बाज़ी लगा दी, औ' बचा ली माँ की आन।
है तेरी कुर्बानियों के रंग से रंगी हुई-
आज की ये जश्ने-आज़ादी, तिरंगे की ये शान।।
सज गये गौरव-मुकुट से, भाल-भारत के ललाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
*
(संग्रह 'न जाने किन ज़मीनों से' से साभार )
कारगिल के वीर
-अरुण मिश्र
तुमने बज़्मे-जंग में छलकाये अपने खूँ के जाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
धूर्त दुश्मन जब घुसा, घर में हमारे चोर सा।
बंकरों में जब हमारे ही जमाया मोरचा।
उसपे थीं लंदन की सिगरेट्स, तुम पे जूते तक नहीं।
लात फिर भी खा तुम्हारी, पैर रख सर पर भगा।।
तुम हिमानी चोटियों पर टांक आये अपना नाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
वीरता के आवरण में, शूरता का आचरण।
शत्रुओं के शीश पर, शोभित हुये विजयी चरण।
देख कर पुरुषार्थ, रण में मृत्यु तक मोहित हुई।
डालकर जयमाल, जय का, कर लिया तेरा वरण।।
उन शहीदों पर वतन के, है निछावर ये कलाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
एक-एक, चोटी को तुमने, खून से सींचा जवान।
जान की बाज़ी लगा दी, औ' बचा ली माँ की आन।
है तेरी कुर्बानियों के रंग से रंगी हुई-
आज की ये जश्ने-आज़ादी, तिरंगे की ये शान।।
सज गये गौरव-मुकुट से, भाल-भारत के ललाम।
कारगिल के वीर तुमको, देश का सौ-सौ सलाम।।
*
(संग्रह 'न जाने किन ज़मीनों से' से साभार )
गुरुवार, 23 जुलाई 2015
पुनः धन्यवाद का अवसर
पुनः धन्यवाद का अवसर
rashmi rekh
मित्रों, पिछली बार जुलाई २०१३ में आप सब का आभार व्यक्त किया था।
तब रश्मि रेख के तीन वर्ष पूरे हुए थे और तीन वर्षों में कुल पेज व्यूज १०३०८ हुए थे।
इस लिहाज से आज पांच वर्ष पूरे होने पर १५६९९ पेज व्यूज अर्थात केवल दो वर्षों
में ५३९१पेज व्यूज की वृद्धि आप सब का मेरे प्रति स्नेह दर्शाता है। यह मेरे लिए
भी संतोषप्रद एवं सुखद अनुभूतिकारक है।
एतदर्थ आप सभी का हृदय से पुनः बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूँ।
-अरुण मिश्र
जुलाई २०१३ की पोस्ट सन्दर्भ हेतु अविकल दे रहा हूँ।
Pageviews by Countries
rashmi rekh
तब रश्मि रेख के तीन वर्ष पूरे हुए थे और तीन वर्षों में कुल पेज व्यूज १०३०८ हुए थे।
इस लिहाज से आज पांच वर्ष पूरे होने पर १५६९९ पेज व्यूज अर्थात केवल दो वर्षों
में ५३९१पेज व्यूज की वृद्धि आप सब का मेरे प्रति स्नेह दर्शाता है। यह मेरे लिए
भी संतोषप्रद एवं सुखद अनुभूतिकारक है।
एतदर्थ आप सभी का हृदय से पुनः बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूँ।
-अरुण मिश्र
जुलाई २०१३ की पोस्ट सन्दर्भ हेतु अविकल दे रहा हूँ।
Pageviews by Countries
आभार
'रश्मि-रेख' में पहली पोस्ट 'रश्मि-रेख-आमंत्रण', २३ जुलाई, २०१०, की है।
इस लिहाज से जुलाई, २०१३ में इसके तीन वर्ष पूरे हो गए।
मेरे लिए यह संतोष की बात है कि, ब्लॉगर के स्टैट्स के अनुसार इस अवधि
में आज की तिथि तक १०३०८ पेज व्यूज हुए हैं जो, औसतन १० प्रतिदिन है।
इस अवधि में १७ समर्थक भी मिले हैं, और ४३७ लोगों ने प्रोफाइल में रूचि
ली है।
अपने सहृदय शुभचिंतकों के इस सतत स्नेह से मैं अभिभूत हूँ। मुझे इस
बात की संतुष्टि है कि, आप सब तक पहुँच कर मेरी रचनाएँ सार्थक हुईं।
इनकी स्वीकार्यता के प्रति भी किञ्चित आश्वस्त हो सका हूँ।
अपनी ब्लॉग-यात्रा के इस पड़ाव पर, लगातार साथ दे कर, मेरा
उत्साह वर्धन करते रहने के लिए, मैं आप सब का हृदय से कृतज्ञ हूँ।
मैं विशेष कर अपने उन शुभेच्छुओं का आभारी हूँ जिन्होंने पहले वर्ष में,
समर्थन, मार्गदर्शन एवं टिप्पणियां दे कर कर मुझे उपकृत करने की कृपा की।
आप सभी, जो मेरे ब्लॉग तक पहुंचे, मेरे दिल के बहुत करीब हैं। अनुभूतियों के
इस लेन-देन में धन्यवाद बहुत छोटा शब्द है। अस्तु , मैं पुनः-पुनः सभी को
अपनी विनम्र कृतज्ञता अर्पित करता हूँ।
बहुत-बहुत आभार।
-अरुण मिश्र.
'शाकुन्तलम',
४ /११३, विजयन्त खण्ड, गोमती नगर,
लखनऊ -२२६०१०.
arunk.1411@gmail.com
मोबाइल : ०९९३५२३२७२८
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शनिवार, 18 जुलाई 2015
शनिवार, 11 जुलाई 2015
लॉन में शाम को गुनगुनाते हुए ......
जब भी बारिश में ....
-अरुण मिश्र.
जब भी बारिश में, भीगता है तन।
तेरी यादों में, डूबता है मन॥
बिजलियाँ हैं कि, ये अदायें हैं?
रूप तेरा नया कि, है सावन??
ऐसा लगता है, पास बैठे हो।
बादलों की, किये हुये चिलमन॥
नम हवायें हैं, आँख है मेरी।
तर दिशायें हैं, है तिरा दामन॥
अक्स तेरा, घुला फिज़ाओं में।
आज मौसम है, हो गया दरपन॥
बूँदें गिरती हैं, बज रही पायल।
बर्क लहरायी, है हिली करधन॥
मेघ गरजे, तो और भी लिपटीं।
तेरी यादों ने, धर लिया है तन॥
सूँघता फिरता हूँ, हवाओं में।
मैं वही, खुश्बू-ए-गुलाब-बदन॥
या तो दीवाना, हो गया हूँ 'अरुन'।
या तो फिर, है नहीं गया बचपन॥
*
(पूर्वप्रकाशित)
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