गुरुवार, 30 नवंबर 2017

हम ने बोलेंगे मगर...



हम ने बोलेंगे मगर..
-अरुण मिश्र 


हम ने बोलेंगे मगर, फिर भी बुलाओ तो सही।
यूँ  कि हम रूठे हुए, हमको मनाओ तो सही।।

नाज़ो - अंदाज़  के,  सुनते हैं  बड़े रसिया हो।
मैं भी तो  जानूँ ,  मेरे नाज़   उठाओ तो सही।।

बात छोटी सी भी,  तुम दिल से लगा लेते हो।
मैं बड़ी चीज न कुछ, दिल से लगाओ तो सही।।

हाँ  हमें  हीरों  के  कंगन  की   तमन्ना  तो  है।
तुम हरे काँच की कुछ चूड़ियाँ लाओ तो सही।।

हम 'अरुन' फूलों को समझेंगे, फ़लक के तारे।
तुम मेरे जूड़े में , इक गजरा सजाओ तो सही।।
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शनिवार, 25 नवंबर 2017

धीरे-धीरे वो मेरे एहसास पे छाने लगे....





धीरे-धीरे वो मेरे एहसास पे छाने लगे....

-अरुण मिश्र 

धीरे - धीरे    वो    मेरे   एहसास   पे    छाने  लगे।
ख़्वाबों में बसने लगे,  ख़्यालों को  महकाने  लगे।।

उनकी सब बेबाकियाँ जब हमको रास आने लगीं।
तब  अचानक  एक दिन,  वो  हमसे शरमाने लगे।।

जिनकी  आमद  के  लिए  थे  मुद्दतों से मुन्तज़िर।
उनका  आना तो  हुआ  पर,  आते ही  जाने लगे।।

देखने  लायक  वो मन्ज़र  था,  जुदाई  की  घड़ी।
अश्क अपने  पोंछ कर, हमको ही समझाने लगे।।

बहकी-बहकी गुफ्तगू थी जब तलक पहलू में थे।
हमसे भी ज्यादा 'अरुन', वो ख़ुद ही दीवाने लगे।।
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बुधवार, 8 नवंबर 2017

ज़िस्म ये रूह है, मिट्टी है, ख़ला है, क्या है ?



ज़िस्म ये रूह है, मिट्टी है, ख़ला है, क्या है ?

-अरुण मिश्र  

ज़िस्म  ये  रूह  है,  मिट्टी  है,  ख़ला  है,  क्या है ?
नूर   है,  आग   है,   पानी  है,  हवा  है,   क्या है ?

साँस   की   बंसरी   को    रोज़    नये  सुर   देता;
कोई  फ़नकार  है,  शायर  है,  ख़ुदा  है,  क्या है ?

कभी  डसती,  कभी  लहराती,  कभी  छा जाती;
कोई  नागिन है,  ज़ुल्फ़  है  कि,  घटा है,  क्या है?

आँखें   इस्रार   करें,   लब  पे  मुसल्सल   इन्कार;
कोई आदत है  कि,  ज़िद है  कि, अदा है,क्या है?

इश्क़ को हुस्न के रखते हो मुक़ाबिल जो, 'अरुन ';
है  ये  ख़ुद्दारी,  जुनूँ   है  कि,  अना  है,   क्या  है ?
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