सोमवार, 27 नवंबर 2023

महर्षि वाल्मीकि विरचित गंगाष्टक का भावानुवाद / कार्तिक पूर्णिमा / गंगास्नान के पुण्य पर्व पर विशेष...

https://youtu.be/UKUpawzDdY8?si=OYKc3EuLMcJdTaWm

महर्षि वाल्मीकि विरचित गंगाष्टक का भावानुवाद ...
( टिप्पणी  :  यह भावानुवाद , पवित्र  श्रृंगवेर पुर घाट ,
जनपद प्रयाग की सीढ़ियों पर  जुलाई 1995 में हुआ था।
इस गंगाष्टक में आदिकवि महर्षि वाल्मीकि ने गंगा को
लेकर बड़ी ही मनोहारी, लालित्यपूर्ण एवं  भावमयी  
कल्पनायें की हैं, जिनका कृतज्ञतापूर्वक अनुवाद कर
पुण्यलाभ लेते हुये धन्य होने के लोभ का संवरण
मेरा कवि-मन न कर सका।
मैं इसके लिये उन अनाम पंडित जी का भी कृतज्ञ हूँ,
जिन्हें गंगास्नान करते हुये इसका पाठ करते सुन कर,
मेरे मन में इस भावानुवाद की प्रेरणा जाग्रत हुई।)


अथ श्री गंगाष्टक भावानुवाद
- अरुण मिश्र
माता    शैलपुत्री    की   सहज   सपत्नी   तुम,
धरती  का   कंठहार  बन  कर  सुशोभित हो।
स्वर्ग-मार्ग  की  हो तुम  ध्वज-वैजयन्ती मॉ-
भागीरथी !  बस   तुमसे   इतनी   है   प्रार्थना-

बसते   हुये   तेरे  तीर,  पीते  हुये   तेरा  नीर,
होते     तरंगित     गंग ,    तेरे   तरंगों   संग।
जपते तव नाम, किये तुझ पर समर्पित दृष्टि,
व्यय   होवे   मॉं !    मेरे   नश्वर    शरीर   का।।

मत्त   गजराजों    के    घंटा - रव   से   सभीत -
शत्रु - वनिताओं   से    वन्दित   भूपतियों  से -
श्रेष्ठ ,    तव     तीर-तरु-कोटर-विहंग ,    गंग ;
तव  नर्क-नाशी-नीर-वासी ,  मछली-कछुआ ||

कंकण स्वर युक्त, व्यजन  झलती बालाओं से -
शोभित   भूपाल   अन्यत्र  का ,  न  अच्छा है |
सहूँ   जन्म-मरण-क्लेश,  रहूँ   तेरे  आर-पार ,
भले  गज,  अश्व,  वृषभ,  पक्षी  या  सर्प   बनूँ  ||

नोचें  भले   काक - गीध ,   खाएं  भले  श्वान-वृन्द ,
देव  -  बालाएं      भले ,     चामर      झलें    नहीं |
धारा-चलित, तटजल-शिथिल, लहरों से आन्दोलित,
भागीरथि !    देखूँगा   कब   अपना   मृत   शरीर।।

हरि  के  चरण कमलों  की   नूतन  मृणाल सी है;
माला,  मालती   की   है   मन्मथ  के   भाल  पर।
जय  हो    हे !  विजय-पताका  मोक्ष-लक्ष्मी  की;
कलि-कलंक-नाशिनि,  जाह्नवी ! कर पवित्र हमें।।

साल,  सरल,  तरु-तमाल,  वल्लरी-लताच्छादित,
सूर्यताप-रहित, शंख,  कुन्द,  इन्दु  सम उज्ज्वल।
देव -  गंधर्व -  सिद्ध -   किन्नर -   वधू -  स्पर्शित,
स्नान   हेतु   मेरे   नित्य,  निर्मल   गंगा-जल  हो।।

चरणों    से   मुरारी    के,   निःसृत   है   मनोहारी,
गंगा  -  वारि ,  शोभित   है   शीश   त्रिपुरारी   के।
ऐसी    पापहारी    मॉ - गंगा   का ,   पुनीत   जल,
तारे   मुझे   और   मेरा  तन - मन   पवित्र   करे।।
 
करती     विदीर्ण     गिरिराज  -   कंदराओं    को ,
बहती  शिलाखंडों  पर  अविरल  गति  से  है  जो;
पाप    हरे ,    सारे     कुकर्मों    का    नाश    करे ,
ऐसी      तरंगमयी      धारा ,     माँ - गंगा     की ||
 
कल-कल   रव   करते,   हरि- पद-रज  धोते हुए ,
सतत   शुभकारी,   गंग-वारि   कर   पवित्र  मुझे ||
                                *
वाल्मीकि - विरचित  यह  शुभप्रद  जो नर नित्य-
गंगाष्टक    पढ़ता    है    ध्यान    धर    प्रभात   में |
कलि-कलुष-रूपी   पंक ,  धो  कर  निज  गात्र  की ,
पाता   है   मोक्ष ;   नहीं  गिरता   भव - सागर   में ||
                            ***
" इति श्री वाल्मीकि -विरचित गंगाष्टक का भावानुवाद संपूर्ण |"
(पूर्वप्रकाशित)

मूल संस्कृत पाठ 
॥ गङ्गाष्टकं श्रीवाल्मिकिविरचितम् ॥
मातः शैलसुता-सपत्नि वसुधा-शृङ्गारहारावलि
स्वर्गारोहण-वैजयन्ति भवतीं भागीरथीं प्रार्थये ।
त्वत्तीरे वसतः त्वदम्बु पिबतस्त्वद्वीचिषु प्रेङ्खतः
त्वन्नाम स्मरतस्त्वदर्पितदृशः स्यान्मे शरीरव्ययः ॥ १॥
त्वत्तीरे तरुकोटरान्तरगतो गङ्गे विहङ्गो परं
त्वन्नीरे नरकान्तकारिणि वरं मत्स्योऽथवा कच्छपः ।
नैवान्यत्र मदान्धसिन्धुरघटासङ्घट्टघण्टारण-
त्कारस्तत्र समस्तवैरिवनिता-लब्धस्तुतिर्भूपतिः ॥ २॥
उक्षा पक्षी तुरग उरगः कोऽपि वा वारणो वाऽ-
वारीणः स्यां जनन-मरण-क्लेशदुःखासहिष्णुः ।
न त्वन्यत्र प्रविरल-रणत्किङ्किणी-क्वाणमित्रं
वारस्त्रीभिश्चमरमरुता वीजितो भूमिपालः ॥ ३॥
काकैर्निष्कुषितं श्वभिः कवलितं गोमायुभिर्लुण्टितं
स्रोतोभिश्चलितं तटाम्बु-लुलितं वीचीभिरान्दोलितम् ।
दिव्यस्त्री-कर-चारुचामर-मरुत्संवीज्यमानः कदा
द्रक्ष्येऽहं परमेश्वरि त्रिपथगे भागीरथी स्वं वपुः ॥ ४॥
अभिनव-बिसवल्ली-पादपद्मस्य विष्णोः
मदन-मथन-मौलेर्मालती-पुष्पमाला ।
जयति जयपताका काप्यसौ मोक्षलक्ष्म्याः
क्षपित-कलिकलङ्का जाह्नवी नः पुनातु ॥ ५॥
एतत्ताल-तमाल-साल-सरलव्यालोल-वल्लीलता-
च्छत्रं सूर्यकर-प्रतापरहितं शङ्खेन्दु-कुन्दोज्ज्वलम् ।
गन्धर्वामर-सिद्ध-किन्नरवधू-तुङ्गस्तनास्पालितं
स्नानाय प्रतिवासरं भवतु मे गाङ्गं जलं निर्मलम् ॥ ६॥
गाङ्गं वारि मनोहारि मुरारि-चरणच्युतम् ।
त्रिपुरारि-शिरश्चारि पापहारि पुनातु माम् ॥ ७॥
पापापहारि दुरितारि तरङ्गधारि
शैलप्रचारि गिरिराज-गुहाविदारि ।
झङ्कारकारि हरिपाद-रजोपहारि
गाङ्गं पुनातु सततं शुभकारि वारि ॥ ८॥
गङ्गाष्टकं पठति यः प्रयतः प्रभाते
वाल्मीकिना विरचितं शुभदं मनुष्यः ।
प्रक्षाल्य गात्र-कलिकल्मष-पङ्क-माशु
मोक्षं लभेत् पतति नैव नरो भवाब्धौ ॥ ९॥
॥ इति वाल्मीकिविरचितं गङ्गाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

शनिवार, 18 नवंबर 2023

दीपांजलि.../ गीत : दिव्या अनिल कुमार / गायन : सूर्यगायत्री अन्य

 https://youtu.be/6GNEvNTiwYU  

Lyrics with Meaning

Anupamamathi Sukha Bhaavam
Amruthamatheetha Sumodam
Shruthilayavirachithamathulitha Geethika
Thavakara Veenayilathirasa Cheethalamaay
Devi Bhagyam Saayuujyam

You are the supreme feel of happiness, it is tastier than nectar.
The song which is flowing from the Veena’ in your hand is so
peaceful. Getting your blessing is luck and salvation.
(Musical offerings to Sangeetha Devatha)

Chandana Raavithilindu Kalebara Deepam Sumavadana Komalam Manthramanohara Gandha Sumelitha Haaram Nava Nalina Mrudula Vedasaara Sama Lalithagunam Thava Kanakadhaara Vinodam Vasudha Deeptha Vara Kamaladevi Mama Janani Harini Surabhi

This night is appearing like the colour of sandal because of
the moon like body of Deepam (Mahalakshmi itself). It is equally
beautiful as face of flower. You are the garland of beautiful hymns
with sweet smell. It is like fresh and soft lotus. Your simplicity and
elegant qualities are parallel to Vedas. Spreading prosperity is your
joy. You are mother earth like an ivory coloured glowing lotus, with
full of affection.

Hariguna Bhava Sevithe Athivimale
Anaghamoraathma Deepamaniyukanee
Thava Modaavesha Jaalam Indrajaalam Shreyam
Suravaadya Ghoshapriye
Varadaana Bhagyaprade
Praramakaruna bhava duritha nivaarini
Bhuvanamakhila sukha naamam

You have adorned the qualities of Hari; you are so pure.
Like a shining lamp, I offer my pure mind as a garland to you.
You do magic with your enthusiasm and brings prosperity.
You get pleased with the musical offerings; you are munificent
in giving boon and luck. You are so kind and removes the grief.
Your name reflects everywhere in the universe.

Priyakara Vesha Bhooshithe Hari Nilaye Asulabhamaathma Bodhageethamarulukanee Thava Leelalola Bhaavam Jeeva Bhaavam Moham Sthira Sidhi Budhiprade Jaya Namaghoshapriye Prakrithi Vikrithi Varamahathi Mahanidhi Charana Kamalamathi Bhaagyam

You are dressed attractively and stays with Hari, the supreme God.
Bless me with the rare self-awareness of consciousness. Because of
your Maya, I get into the world of desires in my mind. You are giving
siddhi (Talent) & wisdom and making me able. You are pleased with
chanting of names; you are the supreme power and touching your
lotus feet my fortune!!!

शनिवार, 11 नवंबर 2023

देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो.../ शायर : अंदलीब शादानी /गायन : अमृता दत्त

https://youtu.be/uNk33RmB_Sw  

देर लगी आने में तुम को शुक्र है फिर भी आए तो 
आस ने दिल का साथ न छोड़ा वैसे हम घबराए तो

शफ़क़ धनक महताब घटाएँ तारे नग़्मे बिजली फूल 
इस दामन में क्या क्या कुछ है दामन हाथ में आए तो 

चाहत के बदले में हम तो बेच दें अपनी मर्ज़ी तक 
कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो 

क्यूँ ये मेहर-अंगेज़ तबस्सुम मद्द-ए-नज़र जब कुछ भी नहीं 
हाए कोई अंजान अगर इस धोके में आ जाए तो 

सुनी-सुनाई बात नहीं ये अपने ऊपर बीती है 
फूल निकलते हैं शो'लों से चाहत आग लगाए तो 

झूट है सब तारीख़ हमेशा अपने को दोहराती है 
अच्छा मेरा ख़्वाब-ए-जवानी थोड़ा सा दोहराए तो 

नादानी और मजबूरी में यारो कुछ तो फ़र्क़ करो 
इक बे-बस इंसान करे क्या टूट के दिल आ जाए तो

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

पानी में मीन पियासी.../ कबीर / गायन : विद्या राव जी

 https://youtu.be/UyCWhA24e1g

पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी। आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी। मिरगा नाभि बसे कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।। पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।

जल-बिच कमल कमल बिच कलियाँ तां पर भँवर निवासी। सो मन बस त्रैलोक्य भयो हैं, यति सती सन्यासी। पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।। है हाजिर तेहि दूर बतावें, दूर की बात निरासी। कहै कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।

The Fish are thirsty in the water; this is what makes me laugh.
Without self realization, man wanders from Mathura to Kashi
like the Kasturi deer who does not realize the intoxicating scent
is in its own self and wanders the forest in search of it.
The One resides in your own self, the one to whom all the saints
and seers pray to. Realization is in the moment and not far away.
Kabir says, O brethren, without the Guru Man’s delusion is not
removed.

गुरुवार, 9 नवंबर 2023

श्री कृष्ण स्तुति.../ स्वर : डा. विश्वास शर्मा

 https://youtu.be/zi9h12sxu6k

श्री कृष्ण चंद्र मुकुंद आनंद कंद द्वन्द विमोचनम् 
करुणाकरं कमलापतिं कंजारुणायत लोचनम् 
कालिंदी कूल कदम्ब तरु तल वेणु वादन तत्परम् 
बल दायिनं वर दायिनं जय दायिनं राधा वरम् 

श्री कृष्ण चंद्र मुकुंद आनंद कंद द्वन्द विमोचनम् 
श्री कृष्ण श्री कृष्ण 

सद्धर्म ध्वंशक दैत्य कंस नृशंश दर्प विभंजनम् 
भय भंजनं खल गंजनं सुर सिद्ध मुनि मन रंजनम् 

श्री कृष्ण चंद्र मुकुंद आनंद कंद द्वन्द विमोचनम् 
श्री कृष्ण श्री कृष्ण 

प्रणमामि शोभा धाम श्याम ललाम कुञ्ज विहारिणम् 
रुज हारिणं सुख कारिणं गोपाल गिरिवर धारिणम्   

श्री कृष्ण चंद्र मुकुंद आनंद कंद द्वन्द विमोचनम् 
करुणाकरं कमलापतिं कंजारुणायत लोचनम् 

श्री कृष्ण चंद्र मुकुंद आनंद कंद द्वन्द विमोचनम् 
श्री कृष्ण श्री कृष्ण 
श्री कृष्ण श्री कृष्ण 
श्री कृष्ण श्री कृष्ण 

बुधवार, 8 नवंबर 2023

महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गई.../ ग़ज़ल : आग़ा बिस्मिल / गायन : ग़ुलाम अली

https://youtu.be/AfAJC8ioVus.  



महफ़िल में बार-बार किसी पर नज़र गई 
हमने बचाया लाख, मगर फिर उधर गई

उनकी नज़र में कोई तो जादू ज़रूर है
जिस पर पड़ी, उसी के जिगर तक उतर गई...

उस बे-वफ़ा की आंख से आंसू छलक पड़े
हसरत भरी निगाह, बड़ा काम कर गई...

हसरत : इच्छा, लालसा

उनके जमाल-ए-रुख पे उन्हीं का जमाल था 
वो चल दिए, तो रौनक-ए-शाम-ओ-सहर गई...
जमाल: सुंदरता
जमाल-ए-रुख : चमकता चेहरा 
रौनक : ताजगी, रोशनी, चमक
शाम-ओ-सहर : शाम और भोर

उनको खबर करो के है 'बिस्मिल' करीब-ए-मर्ग
वो आएंगे जरूर, जो उन तक खबर गई

खबर : सूचना, 
बिस्मिल : कवि आगा बिस्मिल 
करीब : आसन्न, निकट
मर्ग : मृत्यु
करीब-ए-मर्ग : मौत के करीब, मृत्यु शय्या पर

सोमवार, 6 नवंबर 2023

उल्टी हो गयीं सब तदबीरें.../ शायर : मीर तक़ी मीर / गायन : अमृता दत्ता

 https://youtu.be/tSgtyG-d318

उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ दवा ने काम किया देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया हर्फ़ नहीं जाँ-बख़्शी में उस की ख़ूबी अपनी क़िस्मत की हम से जो पहले कह भेजा सो मरने का पैग़ाम किया नाहक़ हम मजबूरों पर ये तोहमत है मुख़्तारी की चाहते हैं सो आप करें हैं हम को अबस बदनाम किया सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया सरज़द हम से बे-अदबी तो वहशत में भी कम ही हुई कोसों उस की ओर गए पर सज्दा हर हर गाम किया किस का काबा कैसा क़िबला कौन हरम है क्या एहराम कूचे के उस के बाशिंदों ने सब को यहीं से सलाम किया शैख़ जो है मस्जिद में नंगा रात को था मय-ख़ाने में जुब्बा ख़िर्क़ा कुर्ता टोपी मस्ती में इनआ'म किया काश अब बुर्क़ा मुँह से उठा दे वर्ना फिर क्या हासिल है आँख मुँदे पर उन ने गो दीदार को अपने आम किया याँ के सपीद सियह में हम को दख़्ल जो है सो इतना है रात को रो रो सुब्ह किया या दिन को जूँ तूँ शाम किया सुब्ह चमन में उस को कहीं तकलीफ़-ए-हवा ले आई थी रुख़ से गुल को मोल लिया क़ामत से सर्व ग़ुलाम किया साअद-ए-सीमीं दोनों उस के हाथ में ला कर छोड़ दिए भूले उस के क़ौल-ओ-क़सम पर हाए ख़याल-ए-ख़ाम किया काम हुए हैं सारे ज़ाएअ' हर साअ'त की समाजत से इस्तिग़्ना की चौगुनी उन ने जूँ जूँ मैं इबराम किया ऐसे आहु-ए-रम-ख़ुर्दा की वहशत खोनी मुश्किल थी सेहर किया ए'जाज़ किया जिन लोगों ने तुझ को राम किया 'मीर' के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया