शुक्रवार, 3 नवंबर 2023

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए.../ मिर्ज़ा ग़ालिब / गायन : मीनल जैन

https://youtu.be/YPG6KmpxiNI  

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए 
जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए 

करता हूँ जम्अ' फिर जिगर-ए-लख़्त-लख़्त को 
अर्सा हुआ है दावत-ए-मिज़्गाँ किए हुए 

फिर वज़'-ए-एहतियात से रुकने लगा है दम 
बरसों हुए हैं चाक गरेबाँ किए हुए 

फिर गर्म-नाला-हा-ए-शरर-बार है नफ़स 
मुद्दत हुई है सैर-ए-चराग़ाँ किए हुए 

फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल को चला है इश्क़ 
सामान-ए-सद-हज़ार नमक-दाँ किए हुए 

फिर भर रहा हूँ ख़ामा-ए-मिज़्गाँ ब-ख़ून-ए-दिल 
साज़-ए-चमन तराज़ी-ए-दामाँ किए हुए 

बाहम-दिगर हुए हैं दिल ओ दीदा फिर रक़ीब 
नज़्ज़ारा ओ ख़याल का सामाँ किए हुए 

दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत को जाए है 
पिंदार का सनम-कदा वीराँ किए हुए 

फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब 
अर्ज़-ए-मता-ए-अक़्ल-ओ-दिल-ओ-जाँ किए हुए 

दौड़े है फिर हर एक गुल-ओ-लाला पर ख़याल 
सद-गुलसिताँ निगाह का सामाँ किए हुए 

फिर चाहता हूँ नामा-ए-दिलदार खोलना 
जाँ नज़्र-ए-दिल-फ़रेबी-ए-उनवाँ किए हुए 

माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवस 
ज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशाँ किए हुए 

चाहे है फिर किसी को मुक़ाबिल में आरज़ू 
सुरमे से तेज़ दश्ना-ए-मिज़्गाँ किए हुए 

इक नौ-बहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह 
चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्ताँ किए हुए 

फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें 
सर ज़ेर-बार-ए-मिन्नत-ए-दरबाँ किए हुए 

जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन 
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए 

'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से 
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किए हुए

कुछ शेरों के अर्थ 

मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किये हुए
जोश--क़दह सेबज़्म चराग़ां किये हुए

(मुद्दत = अरसालम्बा समय), 
(जोश--क़दह = शराब का उबालप्यालों का उत्सव), 
(बज़्म = महफ़िल)

माँगे है फिरकिसी को लब--बाम परहवस
ज़ुल्फ़--सियाह रुख़  परीशाँ किये हुए

(लब--बाम = छत के किनारे), 
(हवस = तीव्र लालसा), 
(ज़ुल्फ़--सियाह = कजरारी/ काली जुल्फें), 
(परीशाँ किये हुए = बिखराये हुए)

जी ढूँढता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर--जानाँ किये हुए

(तसव्वुर--जानाँ = माशूक़ के ख़यालों में खोना)

ग़ालिबहमें  छेड़ कि फिर जोश--अश्क से
बैठे हैं हम तहय्य--तूफ़ाँ किये हुए

(जोश--अश्क = आँसुओं का उबाल), 
(तहय्य--तूफ़ाँ = तूफ़ान लाने का दृढ़ निश्चय)

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