शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी.../ रचना : महाकवि विद्यापति / गायन : अरुणिता झा

https://youtu.be/a_R4GaTGR7M  

कुंज भवन सएँ निकसलि रे रोकल गिरिधारी।
एकहि नगर बसु माधव हे जनि करु बटमारी।।
छोरू कान्ह मोर आंचर रे फाटत नब सारी।
अपजस होएत जगत भरि हे जानि करिअ उघारी।।
संगक सखि अगुआइलि रे हम एकसरि नारी।
दामिनि आय तुलायति हे एक राति अन्हारी।।
भनहि विद्यापति गाओल रे सुनु गुनमति नारी।
हरिक संग कछु डर नहि हे तोंहे परम गमारी।।

नागार्जुन का अनुवाद : कुंज भवन से निकली ही थी कि गिरधारी ने रोक लिया। माधव, बटमारी मत करो, हम एक ही नगर के रहने वाले हैं। कान्‍हा, आंचल छोड़ दो। मेरी साड़ी अभी नयी नयी है, फट जाएगी। छोड़ दो। दुनिया में बदनामी फैलेगी। मुझे नंगी मत करो। साथ की सहेलियां आगे बढ़ गयी हैं। मैं अकेली हूं। एक तो रात ही अंधेरी है, उस पर बिजली भी कौंधने लगी - हाय, अब मैं क्‍या करूं? विद्यापति ने कहा, तुम तो बड़ी गुणवती हो। हरि से भला क्‍या डरना। तुम गंवार हो। गंवार न होती तो हरि से भला क्‍यों डरती...

सोमवार, 21 जुलाई 2025

नटराज स्तोत्रं (पतंजलि कृतम्) / गायन : सूर्य गायत्री

https://youtu.be/aopCCxY2UBA   


अथ चरणशृंगरहित श्री नटराज स्तोत्रं

सदंचित-मुदंचित निकुंचित पदं झलझलं-चलित मंजु कटकम् ।
पतंजलि दृगंजन-मनंजन-मचंचलपदं जनन भंजन करम् ।
कदंबरुचिमंबरवसं परममंबुद कदंब कविडंबक गलम्
चिदंबुधि मणिं बुध हृदंबुज रविं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 1 ॥

हरं त्रिपुर भंजन-मनंतकृतकंकण-मखंडदय-मंतरहितं
विरिंचिसुरसंहतिपुरंधर विचिंतितपदं तरुणचंद्रमकुटम् ।
परं पद विखंडितयमं भसित मंडिततनुं मदनवंचन परं
चिरंतनममुं प्रणवसंचितनिधिं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 2 ॥

अवंतमखिलं जगदभंग गुणतुंगममतं धृतविधुं सुरसरित्-
तरंग निकुरुंब धृति लंपट जटं शमनदंभसुहरं भवहरम् ।
शिवं दशदिगंतर विजृंभितकरं करलसन्मृगशिशुं पशुपतिं
हरं शशिधनंजयपतंगनयनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 3 ॥

अनंतनवरत्नविलसत्कटककिंकिणिझलं झलझलं झलरवं
मुकुंदविधि हस्तगतमद्दल लयध्वनिधिमिद्धिमित नर्तन पदम् ।
शकुंतरथ बर्हिरथ नंदिमुख भृंगिरिटिसंघनिकटं भयहरम्
सनंद सनक प्रमुख वंदित पदं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 4 ॥

अनंतमहसं त्रिदशवंद्य चरणं मुनि हृदंतर वसंतममलम्
कबंध वियदिंद्ववनि गंधवह वह्निमख बंधुरविमंजु वपुषम् ।
अनंतविभवं त्रिजगदंतर मणिं त्रिनयनं त्रिपुर खंडन परम्
सनंद मुनि वंदित पदं सकरुणं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 5 ॥

अचिंत्यमलिवृंद रुचि बंधुरगलं कुरित कुंद निकुरुंब धवलम्
मुकुंद सुर वृंद बल हंतृ कृत वंदन लसंतमहिकुंडल धरम् ।
अकंपमनुकंपित रतिं सुजन मंगलनिधिं गजहरं पशुपतिम्
धनंजय नुतं प्रणत रंजनपरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 6 ॥

परं सुरवरं पुरहरं पशुपतिं जनित दंतिमुख षण्मुखममुं
मृडं कनक पिंगल जटं सनक पंकज रविं सुमनसं हिमरुचिम् ।
असंघमनसं जलधि जन्मगरलं कवलयंत मतुलं गुणनिधिम्
सनंद वरदं शमितमिंदु वदनं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥7॥

अजं क्षितिरथं भुजगपुंगवगुणं कनक शृंगि धनुषं करलसत्
कुरंग पृथु टंक परशुं रुचिर कुंकुम रुचिं डमरुकं च दधतम् ।
मुकुंद विशिखं नमदवंध्य फलदं निगम वृंद तुरगं निरुपमं
स चंडिकममुं झटिति संहृतपुरं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 8 ॥

अनंगपरिपंथिनमजं क्षिति धुरंधरमलं करुणयंतमखिलं
ज्वलंतमनलं दधतमंतकरिपुं सततमिंद्र सुरवंदितपदम् ।
उदंचदरविंदकुल बंधुशत बिंबरुचि संहति सुगंधि वपुषं
पतंजलि नुतं प्रणव पंजर शुकं पर चिदंबर नटं हृदि भज ॥ 9 ॥

इति स्तवममुं भुजगपुंगव कृतं प्रतिदिनं पठति यः कृतमुखः
सदः प्रभुपद द्वितयदर्शनपदं सुललितं चरण शृंग रहितम् ।
सरः प्रभव संभव हरित्पति हरिप्रमुख दिव्यनुत शंकरपदं
स गच्छति परं न तु जनुर्जलनिधिं परमदुःखजनकं दुरितदम् ॥ 10 ॥

इति श्री पतंजलिमुनि प्रणीतं चरणशृंगरहित नटराज स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

बुधवार, 16 जुलाई 2025

धोबिया, मेरा मैल छुड़ा दे.../ गायन : संदीप ढाँढरिया

https://youtu.be/nHYSIFdFccE  


धोबिया,  मेरा  मैल  छुड़ा  दे,
जनम-जनम की मैली  चादर,
उजली     कर      पहना    दे,
धोबिया,  मेरा  मैल   छुड़ा दे,
धोबिया,  मेरा  मैल   छुड़ा दे।

ऐसा     धोबी    पाट    लगना,
धूल   जाये   मेरा   ताना-बाना,
ध्यान की साबुन, प्रेम का पानी,
अपने  करुणा कर से  लगाना,
ऐसी    निर्मल   करना   इसको,
जो     इसे    राम     मिला   दे।

सारे    दाग    मिटाना     इसकी,
परत-परत    इसकी    सुलझाना,
तार-तार    को    शीतल   करना,
लौट   कर  फिर   पड़े   न आना,
धीरज   की   इसे   धुप  लगाकर,
ज्यो     की     त्यों      लौटा    दे।

रविवार, 13 जुलाई 2025

हरदम बोला शिव बम-बम-बम.../ रचना : भिखारी ठाकुर / गायन : चन्दन तिवारी

https://youtu.be/VtEfKFTeSjY?si=55sVsddTrvEacokd

प्रसंग
शिव-विवाह में शिव की बारात में 
द्वार-पूजा के पूर्व का दृश्य है, जब 
पार्वती के द्वार पर नगर के पुरवासी 
दूल्हे को देखने के लिए भारी संख्या 
में आ रहे हैं।


हरदम बोलऽ शिव, बम-बम बम-बम॥टेक॥

कर त्रिशुल बँसहा पर शंकर। 
डमरु बाजत बाटे, डम-डम डम-डम॥ हरदम...

मुख में पान न भांग चबावत। 
दसन बिराजत बा चम-चम चम-चम॥ हरदम...

पुरबासी निरखन बर लागे। 
नारी-पुरुष सब खम-खम खम-खम॥ हरदम...

नाई ‘भिखारी’ कहब कब तक ले। 
जब तक रही तन दम-दम दम-दम॥ हरदम...

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

सखिया सावन बहुत सुहावन.../ कजरी / रचना : भिखारी ठाकुर / गायन : चन्दन तिवारी

https://youtu.be/ogVrsO0i-AU  


सखिया सावन बहुत सुहावन, 
ना मनभावन अइलन मोर।

एक त पावस खास अमावस, 
काली घाटा चहुँओर॥ सखिया॥

पानी बरसत जिअरा तरसत, 
दादुर मचावन सोर॥ सखिया॥

ठनका ठनकत झिंगुर झनकत, 
चमकत बिजली ताबरतोर॥ सखिया॥

कहत ‘भिखारी’ बिहारी पियारी से, 
होई गइलन चित्त रे चोर॥ सखिया॥

गुरुवार, 10 जुलाई 2025

निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा.../ रचना : सन्त कबीर / मुख्य स्वर : आस्था मान्डले

https://youtu.be/_G5lsK8hEiA  


निर्भय निर्गुण गुण रे गाऊंगा
मूल-कमल दृढ़-आसन बांधूं जी
उल्‍टी पवन चढ़ाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।। 


मन-ममता को थिर कर लाऊं जी 
पांचों तत्व मिलाऊंगा 
निर्भय निर्गुण ।। 


इंगला-पिंगला-सुखमन नाड़ी
त्रिवेणी पे हां नहाऊंगा
निर्भय-निर्गुण ।।  


पांच-पचीसों पकड़ मंगाऊं-जी 
एक ही डोर लगाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।


शून्‍य-शिखर पर अनहद बाजे जी
राग छत्‍तीस सुनाऊंगा
निर्भय निर्गुण ।।

कहत कबीरा सुनो भई साधो जी
जीत निशान घुराऊंगा ।
निर्भय-निर्गुण ।।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

फ़र्ज़ करो.../ शायर : इब्न-ए-इंशा / गायन : छाया गांगुली

https://youtu.be/sN77sCYjXNI  


फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों

फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो

फ़र्ज़ करो तुम्हें ख़ुश करने के ढूँढे हम ने बहाने हों
फ़र्ज़ करो ये नैन तुम्हारे सच-मुच के मय-ख़ाने हों

फ़र्ज़ करो ये रोग हो झूटा झूटी पीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस पीत के रोग में साँस भी हम पर भारी हो

फ़र्ज़ करो ये जोग-बिजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो