सोमवार, 23 जून 2025

विल्वमंगल ठाकुर कृत गोविन्द दामोदर स्तोत्रम् / गायन : जाह्नवी हैरिसन

https://youtu.be/PvK0xZvJay4  

विचित्र-वर्णाभरणाभिरामेऽभिधेहि वक्त्राम्बुज-राजहंसि । 
सदा मदीये रसनेऽग्र-रङ्गे गोविन्द दामोदर माधवेति ।।


O my tongue, since my mouth has become like a lotus by dint of the presencethere of these eloquent, ornamental, delightful syllables, you are like theswan that plays there. As your foremost pleasure, always articulate thenames, “Govinda,” “Dāmodara,” and “Mādhava.”


सुखावसाने तु इदमेव सारं दुःखावसाने तु इदमेव गेयम् । 
देहावसाने तु इदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति ।।


This indeed is the essence (found) upon ceasing the affairs of mundanehappiness. And this too is to be sung after the cessation of all sufferings.This alone is to be chanted at the time of death of one’s materialbody–”Govinda, Dāmodara, Mādhava!”

शुक्रवार, 20 जून 2025

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे.../ शायर : शाज़ तमकनत / गायन : वन्दना श्रीनिवासन

https://youtu.be/TXvMTnsZLZ4   

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे
मैं बहुत दूर हूँ नज़दीक बुलाता है मुझे


मैं ने महसूस किया शहर के हंगामे में
कोई सहरा में है, सहरा में बुलाता है मुझे


तू कहाँ है कि तिरी ज़ुल्फ़ का साया साया
हर घनी छाँव में ले जा के बिठाता है मुझे


ऐ मिरे हाल-ए-परेशाँ के निगह-दार ये क्या
किस क़दर दूर से आईना दिखाता है मुझे


ऐ मकीन-ए-दिल-ओ-जाँ मैं तिरा सन्नाटा हूँ
मैं इमारत हूँ तिरी किस लिए ढाता है मुझे


रहम कर मैं तिरी मिज़्गाँ पे हूँ आँसू की तरह
किस क़यामत की बुलंदी से गिराता है मुझे


'शाज़' अब कौन सी तहरीर को तक़दीर कहूँ
कोई लिखता है मुझे कोई मिटाता है मुझे

शनिवार, 14 जून 2025

जो लोग तेरी मुहब्बत में चूर रहते हैं.../ गायन : जगजीत सिंह

https://youtu.be/1UuLJjA_lnQ   

जो लोग तेरी मुहब्बत में चूर रहते हैं
वो दो जहां के अँधेरों से दूर रहते हैं


ख़ता न कर के हम हैं गुनाहगार मगर 
कुसूर कर के भी वो बेकुसूर रहते हैं


ग़म-ए-ज़माना को कैसे मैं दूं जगह दिल में
के इस मकां में तो हर दम हुज़ूर रहते हैं


तेरी घनेरी सियाह काकुलों के पिछवाड़े
गुलों के रंग सितारों के नूर रहते हैं

रविवार, 8 जून 2025

लो फिर बसंत आई.../ शायर : हफ़ीज़ जालंधरी / गायन : मलिका पुखराज एवं ताहिरा सईद

https://youtu.be/wOAhkm5DIaI  

लो फिर बसंत आई

फूलों पे रंग लाई
चलो बे-दरंग

लब-ए-आब-ए-गंग
बजे जल-तरंग

मन पर उमंग छाई
फूलों पे रंग लाई

लो फिर बसंत आई
आफ़त गई ख़िज़ाँ की

क़िस्मत फिरी जहाँ की
चले मय-गुसार

सू-ए-लाला-ज़ार
म-ए-पर्दा-दार

शीशे के दर से झाँकी
क़िस्मत फिरी जहाँ की

आफ़त गई ख़िज़ाँ की
खेतों का हर चरिंदा

बाग़ों का हर परिंदा
कोई गर्म-ख़ेज़

कोई नग़्मा-रेज़
सुबुक और तेज़

फिर हो गया है ज़िंदा
बाग़ों का हर परिंदा

खेतों का हर चरिंदा
धरती के बेल-बूटे

अंदाज़-ए-नौ से फूटे
हुआ बख़्त सब्ज़

मिला रख़्त सब्ज़
हैं दरख़्त सब्ज़

बन बन के सब्ज़ निकले
अनदाज़-ए-नौ से फूटे

धरती के बेल-बूटे
फूली हुई है सरसों

भूली हुई है सरसों
नहीं कुछ भी याद

यूँही बा-मुराद
यूँही शाद शाद

गोया रहेगी बरसों
भूली हुई है सरसों

फूली हुई है सरसों
लड़कों की जंग देखो

डोर और पतंग देखो
कोई मार खाए

कोई खिलखिलाए
कोई मुँह चिढ़ाए

तिफ़्ली के रंग देखो
डोर और पतंग देखो

लड़कों की जंग देखो
है इश्क़ भी जुनूँ भी

मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी
कहीं दिल में दर्द

कहीं आह-ए-सर्द
कहीं रंग-ए-ज़र्द

है यूँ भी और यूँ भी
मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी

है इश्क़ भी जुनूँ भी
इक नाज़नीं ने पहने

फूलों के ज़र्द गहने
है मगर उदास

नहीं पी के पास
ग़म-ओ-रंज-ओ-यास

दिल को पड़े हैं सहने
इक नाज़नीं ने पहने

फूलों के ज़र्द गहने

रविवार, 1 जून 2025

अब उनका क्या भरोसा वो आयें या न आयें.../ शायर : जिगर मुरादाबादी / गायन : मीनू पुरुषोत्तम

https://youtu.be/cF5zOQjUdkU  

अब उनका क्या भरोसा वो आयें या न आयें
आ ऐ ग़म-ए-मोहब्बत तुझ को गले लगायें

उस से भी शोख़तर हैं उस शोख़ की अदाएँ 
कर जायें काम अपना लेकिन नज़र न आयें

आलूदा आब ही में रहने दे इसको नासेह
दामन अगर झटक  दूँ  जलवे कहाँ समायें

इक ज़ाम-ए-आख़िरी तो पीना है और साक़ी 
अब दस्त-ए-शौक़ काँपे या पाँव लड़खड़ायें

गुरुवार, 29 मई 2025

चण्डिकाष्टकम्.../ श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं / स्वर : पण्डित कमल दीक्षित

https://youtu.be/Up_ovBifNkA   

चण्डिकाष्टकम् 

सहस्रचन्द्रनित्दकातिकान्त-चन्द्रिकाचयै-
दिशोऽभिपूरयद् विदूरयद् दुराग्रहं कलेः ।
कृतामलाऽवलाकलेवरं वरं भजामहे
महेशमानसाश्रयन्वहो महो महोदयम् ॥ १॥

विशाल-शैलकन्दरान्तराल-वासशालिनीं
त्रिलोकपालिनीं कपालिनी मनोरमामिमाम् ।
उमामुपासितां सुरैरूपास्महे महेश्वरीं
परां गणेश्वरप्रसू नगेश्वरस्य नन्दिनीम् ॥ २॥

अये महेशि! ते महेन्द्रमुख्यनिर्जराः समे
समानयन्ति मूर्द्धरागत परागमंघ्रिजम् ।
महाविरागिशंकराऽनुरागिणीं नुरागिणी
स्मरामि चेतसाऽतसीमुमामवाससं नुताम् ॥ ३॥

भजेऽमरांगनाकरोच्छलत्सुचाम रोच्चलन्
निचोल-लोलकुन्तलां स्वलोक-शोक-नाशिनीम् ।
अदभ्र-सम्भृतातिसम्भ्रम-प्रभूत-विभ्रम-
प्रवृत-ताण्डव-प्रकाण्ड-पण्डितीकृतेश्वराम् ॥ ४॥

अपीह पामरं विधाय चामरं तथाऽमरं
नुपामरं परेशिदृग्-विभाविता-वितत्रिके ।
प्रवर्तते प्रतोष-रोष-खेलन तव स्वदोष-
मोषहेतवे समृद्धिमेलनं पदन्नुमः ॥ ५॥

भभूव्-भभव्-भभव्-भभाभितो-विभासि भास्वर-
प्रभाभर-प्रभासिताग-गह्वराधिभासिनीम् ।
मिलत्तर-ज्वलत्तरोद्वलत्तर-क्षपाकर
प्रमूत-भाभर-प्रभासि-भालपट्टिकां भजे ॥ ६॥

कपोतकम्बु-काम्यकण्ठ-कण्ठयकंकणांगदा-
दिकान्त-काश्चिकाश्चितां कपालिकामिनीमहम् ।
वरांघ्रिनूपुरध्वनि-प्रवृत्तिसम्भवद् विशेष-
काव्यकल्पकौशलां कपालकुण्डलां भजे ॥ ७॥

भवाभय-प्रभावितद्भवोत्तरप्रभावि भव्य
भूमिभूतिभावन प्रभूतिभावुकं भवे ।
भवानि नेति ते भवानि! पादपंकजं भजे
भवन्ति तत्र शत्रुवो न यत्र तद्विभावनम् ॥ ८॥

दुर्गाग्रतोऽतिगरिमप्रभवां भवान्या
भव्यामिमां स्तुतिमुमापतिना प्रणीताम् ।
यः श्रावयेत् सपुरूहूतपुराधिपत्य
भाग्यं लभेत रिपवश्च तृणानि तस्य ॥ ९॥

रामाष्टांक शशांकेऽब्देऽष्टम्यां शुक्लाश्विने गुरौ ।
शाक्तश्रीजगदानन्दशर्मण्युपहृता स्तुतिः ॥ १०॥

॥ इति कविपत्युपनामक-श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं चण्डिकाष्टकं
सम्पूर्णम् ॥