गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

हरे फूलों से मथुरा छाय रही.../ गढ़वाली होली / गायन : वीरू रावत एवं साथी

 https://youtu.be/Wwf_X_TG-Us  

हर फूलों से मथुरा छाय रही हर फूलों से मथुरा छाय रही पूरब झरोखे विष्णु जी बैठे लक्ष्मी झूला झूलाय रही हर फूलों......./ पश्चिम झरोखे से भोले जी बैठे गौरा झूला झूलाय रही हर फूलों......./ उत्तर झरोखे से राम जी बैठे सीता झूला झूलाय रही हर फूलों...../ दक्षिण झरोखे से कृष्णा जी बैठे राधा झूला झूलाय रही हर फूलों....।।

बुधवार, 24 अप्रैल 2024

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय, सखी री बडे भाग से फागुन आयो री.../ होली के रसिया / श्री घनानंद जी / पुष्टिमार्गीय हवेली संगीत

 https://youtu.be/nIumZ50Bz7Y   

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय - घनानंद ग्रंथावली

होरी खेलूँगी श्याम संग जाय,
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [१]
फागुन आयो…फागुन आयो…फागुन आयो री
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री
वो भिजवे मेरी सुरंग चुनरिया,
मैं भिजवूं वाकी पाग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [२]
चोवा चंदन और अरगजा,
रंग की पडत फुहार।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [३]
लाज निगोडी रहे चाहे जावे,
मेरो हियडो भर्यो अनुराग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [४]
आनंद घन जेसो सुघर स्याम सों,
मेरो रहियो भाग सुहाग।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री॥ [५]
-  श्री घनानंद जी / घनानंद ग्रंथावली

हे सखी, बड़े भाग्य से फागुन का यह उत्सव आया है, 
मैं जाकर श्याम के संग होली खेलूंगी। [१]

सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है, 
इसमें श्री कृष्ण सुन्दर रंगों से मेरी चुनरी को भिगो देंगे 
और मैं उनकी पाग को भिगोऊँगी । [२]

इत्र, चन्दन, सुगन्धित उबटन, एवं रंगों की फुहार पड़ रही है, 
सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है। [३]

आज चाहे लाज रहे अथवा जाये मुझे इसकी कोई परवाह नहीं, 
क्योंकि मेरा ह्रदय तो अनुराग से भरा है। सखी, बड़े भाग्य से 
फागुन (होली उत्सव) आया है। [४]

श्री घनानंद जी कहते हैं कि "परमानंद एवं सुंदरता के घर 
श्री कृष्ण से अनंतकाल तक मेरा संबंध ऐसे ही बना रहे। 
सखी, बड़े भाग्य से फागुन (होली उत्सव) आया है।" [५]

रविवार, 21 अप्रैल 2024

मडये में भये हैं बियहवा हो त कोहबर गवन गये.../ अवधी सोहर / पति-पत्नी हास्य-गीत / गीत-संगीत : नितेश उपाध्याय / गायन : अंजू उपाध्याय 'अमृत'

 https://youtu.be/dkDMT6RQ7Pw   


मड़ये में भये हैं वियहवा हो त कोहबर गवन गये हो,
त कोहबर गवन गये हो
मोरी सखियाँ , घुंघटा उठाय पिया झांकें
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो
मोरी सखियाँ , घुंघटा उठाय पिया झांकें
हो त धनि मोरी सुन्दरि हो

जिनि जाइउ हटिया-बजरिया ,
त बर्तन जिनि माजिउ हो
मोरी धना जिनि किउह राम के रसोइया
चुनरिया धुमिलइहैं हो

के जइहैं हटिया-बजरिया
हो त बर्तन के मजिहैं हो
मोरे पियवा के करिहैं राम के रसोइया
त चुनरिया कैसे बचिहैं हो

मइया जइहें हटिया-बजरिया
मोरी बहिनी बर्तन मजिहें हो
मोरी धना भाभी करिहें राम के रसोइया
चुनरिया तोहरी बचिहें हो

तोहरी माई जे बुढ़ानी, बहिन ससुरैतिन हो
मोरे पियवा
भाभी तोहरी हईं पटिअइतिन
चुनरिया नाहीं बचिहैं हो

माई क करू तुही सेवा
हो बहिन जइहें ससुरे हो
मोरी धाना भाभी के भेजबे नइहरवा
चुनरिया तोहरी बचिहैं हो

सासू के करिबे हम सेवा
ननद जइहें ससुरे हो
हो मोरे पियवा
जेठनी क भेजब्या नइहरवा
हो चुनरिया कैसे बचिहैं हो

हम जाबे हटिया-बजरिया
हो त बरतन हम मजबै हो
मोरी धाना
हम करबै राम के रसोइया
चुनरिया तोहरी बचिहैं हो

गुरुवार, 18 अप्रैल 2024

राघव पे जनि रंग डारो री राघव पे...

 https://youtu.be/hc5aCV63cmc 

राघव पे जनि रंग डारो री।।राघव पे।।

कोमलगात बयस अति थोरी।
मूरति मधुर निहारो री।।राघव पे।।

सकुचि सभीत छिपे आँचर महँ।
कुछ तो दया विचारो री।।राघव पे।।

विविध शृङ्गार बिरचि साजो हौं।
दृग अंजन न बिगारो री।।राघव पे।।

बरजोरी भावज रघुवर की।
जनि मारो पिचकारी री।।राघव पे।।

'गिरिधर' प्रभु की ओरी हेरी।
होरी खेल सुधारो री।।राघव पे।।

बुधवार, 17 अप्रैल 2024

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, नगर अयोध्या .../ राम जन्म / चैतावरि / रचना : मैथिल प्रशांत / स्वर : रंजना झा

 https://youtu.be/1XZL4ZDCkCk   

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या। 
ऐला श्री भगवान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

हुलसित दशरथ, पूर मनोरथ,
भेंटल धन-संतान, हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

केलनी तपस्या मातु कोसल्या,
राखल माय क मान हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

बनला बालक , जग प्रतिपालक,
अवधपुरी दिये मान,  हो रामा,
नगर अयोध्या।।

चहुँ दिस मंगल गान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।
ऐला श्री भगवान हो रामा, 
नगर अयोध्या।।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

मैं कांच की गुड़िया.../ नवरात्रि भजन / गीत, संगीत एवं स्वर : डॉ. निधि पाण्डेय

https://youtu.be/ct8BwGsfJ4Q 


मैं काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!
राख ले अपनी शरण में मैया। 
काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!!

जग ले जाल खिलौना तोड़ी 
टुकड़े-टुकड़े कर के छोड़ी 
टुकड़े जोड़ सँवार दे मैया !
काँच की गुड़िया तुम्हारी मैया!!



सोमवार, 8 अप्रैल 2024

वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह.../ कविता एवं वाचन : श्री सोम ठाकुर

https://youtu.be/ZZdozrTf_V0  

सोम ठाकुर (जन्म- ५ मार्च, १९३४आगराउत्तर प्रदेश),
मुक्तकब्रजभाषा के छंद और बेमिसाल लोक गीतों के वरिष्ठ एवं लोकप्रिय 
रचनाकार हैं। वे बड़े ही सहज, सरल व संवेदनशील व्यक्तित्व के कवि है। 
इन्होंने 1959 से 1963 तक 'आगरा क़ोलेज', उत्तर प्रदेश में अध्यापन कार्य 
भी किया। वर्ष 1984 में सोम ठाकुर पहले कनाडा, फिर हिन्दी के प्रसार के लिए 
मॉरिसस भेजे गए। बाद में ये अमेरिका चले गए। वापस लौटने पर इन्हें 
'उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान' का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया और राज्यमंत्री 
का दर्जा दिया गया। इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए इन्हें 2006 में 
'यशभारती सम्मान' और वर्ष 2009 में दुष्यंत कुमार अलंकरण प्रदान किया गया।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

ज़िंदगी की रंगशाला में मुझे 
रोज़ अभिनय के लिए भेजा गया। 
और कुछ आया न आया, पर मुझे,
दर्द से संवाद करना आ गया।
भावना अपराध से नापी गयी,
यक्ष अभिशापित हुआ, मेरी तरह।। 

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

मैं रहा जब तक, अँधेरे चुप रहे;
रात की साज़िश सभी नाक़ाम थी। 
रोशनी मैंने कमाई थी सदा 
पर विरासत जुगनुओं के नाम थी। 
चाँदनी की राजधानी के लिए,
चाँद निर्वाचित हुआ मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

शूल को मैं, फूल से तौला किया,
सिर्फ़ इतनी सी कमी, मुझमें रही। 
रात की, दिन की, सुबह की, शाम की;
जो कही मैंने कहानी, सच कही।।
सामने ही झूठ का पूजन हुआ,
सत्य अपमानित हुआ मेर तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

शब्द के कारागृहों को छोड़ कर, 
अर्थ जब आज़ाद हो कर, आ गया। 
मिल नहीं पायी उसे कोई शरण,
अंत में मेरा तपोवन पा गया। 
बाण बींधे आंसुओं से श्लोक तक,
मौन संवादित हुआ, मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।

मैं उठा तो सिंधु बादल हो गया,
मैं चला तो बिजलियाँ गाने लगीं। 
मैं रुका तो रुक गया, पारस पवन,
खुश्बुएं घर लौट कर जाने लगीं। 
गीत होठों पर, दृगों में जागरण,
प्यार परिभाषित हुआ मेरी तरह।।

वह गया, जा कर कभी लौटा नहीं, 
वक़्त निर्वासित हुआ मेरी तरह ।।