rashmi rekh
सोमवार, 31 मार्च 2025
इन्तज़ार-ए-सबा रहा बरसों.../ शायर : क़ैसर-उल-जाफ़री / गायन : काव्या लिमये
इन्तज़ार-ए-सबा रहा बरसों
एक दिन उनका प्यार बरसा था
उनकी आँखों के ज़ाम याद रहे
फ़ासले कम न हो सके कैसर
शनिवार, 29 मार्च 2025
शुभ नव संवत्सर....
नव-संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें।
पुण्य-पंथ पर, नव-प्रयाण हो,
धवल कीर्ति के नवल हों शिखर।
जीवन का, नूतन प्रभात हो,
मंगलमय हो, नव - संवत्सर।।
-अरुण मिश्र
शुक्रवार, 28 मार्च 2025
शब-ए-ग़म मुझ से मिल कर ऐसे रोई.../ शायर : सईद गिलानी / गायन : नाहीद अख़्तर
मिला हो जैसे सदियों बाद कोई
हमें अपनी समझ आती नहीं खुद
हमें क्या ख़ाक समझायेगा कोई
क़रीब मंज़िल के आ के दम है टूटा
कहाँ आ कर मेरी तक़दीर सोई
कुछ ऐसे आज उन की याद आई
मिली हो जैसे दौलत एक खोई
सजा रक्खा क़फ़स है खून-ओ-पर से
के अब तो बिजलियाँ ले आये कोई
Lyricist MAHSOOR.
The poetry of the ghazal portrays the agony of a woman who is living alone after being abandoned by her love.
Shab e gham mujh se mil kar aise roii
(The night-of-grief hugged me crying ...
Mila ho jaisey sadiyyun baad koi
As if someone has met me after centuries!)
Hamain apni samaj aati nahein khud
(I cannot even comprehend myself...
Hamain kiya khak samjhaye ga koi
How anyone can make me understand?)
Qareeb manzil ke aa ke dam hai toota
(I lost my breath as I got close to my destination,...
Kahan aa kar meri taqdeer soii
Alas! At what point my destiny has dozed off!)
Kuchh aisey aaj unki yaad aaii
(Tonight His memoirs flashed in my mind..
Mili ho jaisey doulat ek khoi
As if I have got the lost treasure!)
Sajja rakha hai qafas khoon-o-par se
(I have decorated the cage (house) with my blood and feathers..
Keh ab to bijilian ley aiey koi
Let someone fetch the lightning and destroy it..
गुरुवार, 27 मार्च 2025
निरर्थकं जन्मगता नलिन्या.../ बिल्हण / प्रस्तुति : नवनीत गलगली
https://youtu.be/rpYxWvk4oJ4
निरर्थकं जन्मगता नलिन्या
यया न दृष्टं तुहिनांशुविम्बं।
उत्पत्तिरिन्दोरपि निष्फलैव
कृता विनिद्रा नलिनी न येन।।
बुधवार, 26 मार्च 2025
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो.../ गीतकार : शम्स लखनवी एवं बेहज़ाद लखनवी / गायन : पद्मश्री पुष्पा हंस
https://youtu.be/Vuy4ShsxDNk
गीतकार : शम्स लखनवी एवं बेहज़ाद लखनवीसंगीतकार: वसंत देसाई
फिल्म: शीशमहल 1950
इस गीत को पद्मश्री पुष्पा हंस ने गाया है
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो-2
कोई मुश्किल नहीं ऐसी के जो आसान ना हो-2
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो
ये हमेशा से है तक़दीर की गर्दिश का चालन-2
चाँद सूरज को भी लग जाता है एक बार ग्रहण
वक़्त की देख के तब्दीलियां हैरान ना हो- 2
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो
ये है दुनियां यहाँ दिन ढलता है शाम आती है- 2
सुबह हर रोज नया ले के पयाम आती है
जानी बूझी हुई बातों से तू अन्ज़ान ना हो
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो
कोई मुश्किल नहीं ऐसी के जो आसान ना हो
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो
मंगलवार, 25 मार्च 2025
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है.../ मिर्ज़ा ग़ालिब / गायन : आबिदा परवीन
https://youtu.be/Pz1j01JkM8c
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
सीना जूया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लाला-कारी है
क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अमारी है
चश्म दल्लाल-ए-जिंस-ए-रुस्वाई
दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्वारी है
वही सद-रंग नाला-फ़रसाई
वही सद-गोना अश्क-बारी है
दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर
महशरिस्तान-ए-सितान-ए-बेक़रारी है
जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है
रोज़ बाज़ार-ए-जाँ-सिपारी है
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िंदगी हमारी है
फिर खुला है दर-ए-अदालत-ए-नाज़
गर्म-बाज़ार-ए-फ़ौजदारी है
हो रहा है जहान में अंधेर
ज़ुल्फ़ की फिर सिरिश्ता-दारी है
फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवाल
एक फ़रियाद ओ आह-ओ-ज़ारी है
फिर हुए हैं गवाह-ए-इश्क़ तलब
अश्क-बारी का हुक्म-जारी है
दिल ओ मिज़्गाँ का जो मुक़द्दमा था
आज फिर उस की रू-बकारी है
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है
बुधवार, 19 मार्च 2025
हटो काहे को झूठी बनाओ बतिया.../ फिल्म : मंज़िल (1960) / मजरुह सुल्तानपुरी / मन्ना डे
https://youtu.be/DoNOYo7fupU