रविवार, 3 अगस्त 2025

पार्वतीवल्लभ अष्टकम.../ स्वर : दीपश्री एवं दिव्यश्री

https://youtu.be/BMq1Azeshzg   

नमो भूतनाथं नमो देवदेवं 
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजः। (दिव्यतेजम्) 
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १॥ 


सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं 
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् । 
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २॥ 


श्मशाने शयानं महास्थानवासं (श्मशानं भयानं) 
शरीरं गजानं सदा चर्मवेष्टम् । 
पिशाचादिनाथं पशूनां प्रतिष्ठं (पिशाचं निशोचं पशूनां)
 भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३॥ 


फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं (फणीनागकण्ठं, भुजङ्गाङ्गभूषं) 
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् । 
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४॥ 


शिरश्शुद्धगङ्गा शिवावामभागं 
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिनेत्रम् । (वियद्दीर्घकेशं, बृहद्दिव्यकेशं सहोमं) 
फणीनागकर्णं सदा भालचन्द्रं (बालचन्द्रं) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५॥ 


करे शूलधारं महाकष्टनाशं 
सुरेशं परेशं महेशं जनेशम् । (वरेशं महेशं) 
धनेशस्तुतेशं ध्वजेशं गिरीशं (धने चारु ईशं, धनेशस्य मित्रं) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६॥ 


उदानं सुदासं सुकैलासवासं (उदासं) 
धरा निर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् । (धरानिर्झरे) 
अजं हेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७॥ 


मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं 
द्विजानं पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् । (द्विजा सम्पठन्तं, द्विजैः स्तूयमानं, वेदशात्रैः) 
अहो दीनवत्सं कृपालुं शिवं तं (शिवं हि) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८॥ 


सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं 
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् । 
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं (महातीर्थवासम्) 
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९॥ 


इति पार्वतीवल्लभनीलकण्ठाष्टकं सम्पूर्णम् ।

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