शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

वारी मेरे लटकन पग धरो छतियाँ.../ रचना : परमानन्द दास / गायन : मुदिता एवं रुचिता जमरिया

https://youtu.be/zzG0FGLkA3c   

वारी मेरे लटकन पग धरो छतियाँ ।

कमलनयन बलि जाऊ वदनकी,
शोभित नन्ही नन्ही दूधकी द्वे दतियाँ॥१॥

यह मेरी यह तेरी यह बाबा नन्दजूकी,
यह बलभद्र भैया की।
यह ताकि जो झूलावे तेरो पलना॥

इहां ते चली खर खात पीवत जल,
परिहरो रुदन हंसो मेरे ललना॥२॥

रुनक झूनक बाजत पैजनियाँ,
अलबल कलबल, बोलो मृदु बनियाँ।

परमानंद प्रभु त्रिभुवन ठाकुर,
जाय झूलावे बाबा नंद्जू की रनियाँ॥३॥

भावार्थ 

ये पद भगवान के नामकरण से पहले का है। भगवान का कोई नाम नहीं है अतः स्वभाव से माता उन्हें 'लटकन' बुला रही हैं।
यशोदा कहती हैं - हे मेरे लटकन तुझपे वारी जाऊं!
भगवान पालने में रहते हैं ; हाथ-पैर फेंकते हैं ; तो माता के छाती पर पैरों से स्पर्श होता है।चलना सीखे नहीं हैं तो - यशोदा कहतीं हैं तुम जमीन पर चलना मत सीखो मेरे सीने पर पैर रखकर चलना सीखो।
पहली पंक्ति में लटकन कहा दूसरी में कमलनयन कहा है। माता कहतीं हैं - रे कमलनयन! तेरे मुख पे वारी जाऊं जिसमें दूध के दो छोटे-छोटे दाँत सुशोभित हो रहे हैं।
गिरिधर लालजी रो रहे हैं तो उन्हें चुप कराने के लिये माता को गिनती सूझी। यशोदा उन्हें हाथ पकड़कर उनकी ऊंगली गिना रही हैं । उनके घर में जो ग‌उऐं हैं उसे निर्दिष्ट कर माता उंगलियों को पकड़कर कहती हैं... यह मेरी, यह तेरी , यह बाबा नंद जूं की , यह बलभद्र भैया की, और पाँचवी उसकी जो तेरा पलना झुला रही है....।

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