दिव्य-ज्योति के शत-शत निर्झर...
- अरुण मिश्र
ऑगन , द्वार , देहरी पर शुभ,
शत - शत दीप जलें, शुचि-सुन्दर।
दीप - दीप से, दिव्य - ज्योति के-
फूट रहे हों , शत - शत निर्झर।।
जगर - मगर दीपों की लौ में,
करें लक्ष्मी - मइय्या फेरे।
डगर - डगर से , नगर - नगर से,
भागें सब दारिद्र्य - अँधेरे ।।
हे गजवदन! विनायक! गणपति!
मुदित-मगन हों,सब जन-गण-मन।
निर्मल बुद्धि- विवेक - ज्ञान- युत,
स्वस्थ- सबल हों, भारत के जन।।
पर्व स्वच्छता का, प्रकाश का,
स्वच्छ भित्तियां औ’ घर- ऑगन।
आलोकित हो जीवन का पथ,
तन-मन स्वच्छ, स्वच्छ हो चिंतन।।
धूम - धाम , फुलझड़ी - पटाखे,
ख़ुशियां, खील, बताशे, लइय्या।
बच्चों की किलकारी - ताली,
करे दिवाली ता - ता थइय्या।।
धूप - दीप - नैवेद्य समर्पित,
सजी आरती की है थाली।
ऋद्धि - सिद्धि, श्री सहित विराजें,
शुभ - मंगलमय हो दीवाली।।
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