रविवार, 29 मई 2016

श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचित आत्मषट्कं का भावानुवाद

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श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचित 
आत्मषट्कं (निर्वाण षट्कं) भावानुवाद


-अरुण मिश्र 

न    हूँ    मैं  अहंकार,   मन, चित्त, बुद्धि ;  
न   हूँ   कर्ण-जिह्वा,   न    हूँ    नेत्र-नासा।
न    हूँ   व्योम-भूमि,   न    हूँ   तेज-वायु ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ,  मैं शिव  हूँ ।।

न    मैं   प्राणसंज्ञा,    न    हूँ    पंच-वायु ;
न    हूँ    सप्तधातु,   न    हूँ     पंचकोश।
न मुख-कर-चरण   हूँ ,  न  गुह्यांग कोई ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।

मुझे   राग   ना   द्वेष,   ना  लोभ-मोह ;
न मद कोई मुझ में, न मात्सर्य का भाव।
नहीं   धर्म,   ना   अर्थ,  ना  काम-मोक्ष ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।

नहीं  हूँ  मैं सुख-दुख, नहीं पुण्य या पाप ;
नहीं   वेद,   ना   यज्ञ,    ना    मन्त्र-तीर्थ।
नहीं  हूँ  मैं  भोजन,   न  हूँ   भोज्य-भोक्ता ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।

नहीं  मृत्युभय  मुझ को,  ना  जातिभेद ;
न   माता-पिता   मेरे,   ना   जन्म  कोई।
न बन्धु, न मित्र, न गुरु कोई, ना शिष्य;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ,  मैं शिव  हूँ ।।

निराकार    हूँ     रूप   मैं,    निर्विकल्प ;
सकल -  सृष्टि - सर्वत्र  -  सर्वांग- व्यापी।
सदा मुझ में सम भाव, बन्धन ना मुक्ति ;
चिदानन्द का रूप, शिव  हूँ ,  मैं शिव  हूँ ।।
                                 *


मूल संस्कृत पाठ   :
 आत्मषट्कम् 
 
मनोबुद्ध्यहङ्कारचित्तानि नाहं
  श्रोत्रजिह्वे   घ्राणनेत्रे 
  व्योमभूमिः  तेजो  वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  १॥
 
  प्राणसञ्ज्ञो  वै पञ्चवायुः
 वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोशः 
 वाक् पाणिपादौ  चोपस्थपायू
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  २॥
 
 मे द्वेषरागौ  मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः 
 धर्मो  चार्थो  कामो  मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  ३॥
 
 पुण्यं  पापं  सौख्यं  दुःखं
 मन्त्रो  तीर्थं  वेदा  यज्ञाः 
अहं भोजनं नैव भोज्यं  भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  ४॥
 
 मे मृत्युशङ्का  मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता  जन्म 
 बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  ५॥
 
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुव्या।र्प्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् 
सदा मे समत्वं  मुक्तिर्न बन्धः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  ६॥
         
 इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं आत्मषट्कं सम्पूर्णम्