श्रीमच्छङ्कराचार्य विरचित
आत्मषट्कं (निर्वाण षट्कं) भावानुवाद
-अरुण मिश्र
न हूँ मैं अहंकार, मन, चित्त, बुद्धि ;
न हूँ कर्ण-जिह्वा, न हूँ नेत्र-नासा।
न हूँ व्योम-भूमि, न हूँ तेज-वायु ;
चिदानन्द का रूप, शिव हूँ, मैं शिव हूँ ।।
न मैं प्राणसंज्ञा, न हूँ पंच-वायु ;
न हूँ सप्तधातु, न हूँ पंचकोश।
न मुख-कर-चरण हूँ , न गुह्यांग कोई ;
चिदानन्द का रूप, शिव हूँ , मैं शिव हूँ ।।
मुझे राग ना द्वेष, ना लोभ-मोह ;
न मद कोई मुझ में, न मात्सर्य का भाव।
नहीं धर्म, ना अर्थ, ना काम-मोक्ष ;
चिदानन्द का रूप, शिव हूँ , मैं शिव हूँ ।।
नहीं हूँ मैं सुख-दुख, नहीं पुण्य या पाप ;
नहीं वेद, ना यज्ञ, ना मन्त्र-तीर्थ।
नहीं हूँ मैं भोजन, न हूँ भोज्य-भोक्ता ;
चिदानन्द का रूप, शिव हूँ , मैं शिव हूँ ।।
नहीं मृत्युभय मुझ को, ना जातिभेद ;
न माता-पिता मेरे, ना जन्म कोई।
न बन्धु, न मित्र, न गुरु कोई, ना शिष्य;
चिदानन्द का रूप, शिव हूँ, मैं शिव हूँ ।।
निराकार हूँ रूप मैं, निर्विकल्प ;
सकल - सृष्टि - सर्वत्र - सर्वांग- व्यापी।
सदा मुझ में सम भाव, बन्धन ना मुक्ति ;
चिदानन्द का रूप, शिव हूँ , मैं शिव हूँ ।।
*
मूल संस्कृत पाठ :
॥ आत्मषट्कम् ॥
मनोबुद्ध्यहङ्कारचित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योमभूमिः न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ १॥
न च प्राणसञ्ज्ञो न वै पञ्चवायुः
न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोशः ।
न वाक् पाणिपादौ न चोपस्थपायू
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ २॥
न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ३॥
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ४॥
न मे मृत्युशङ्का न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ५॥
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुव्या।र्प्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥ ६॥
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं आत्मषट्कं सम्पूर्णम् ॥
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