शनिवार, 21 सितंबर 2019

प्रिय पौत्र कुशाग्र के जन्म-दिवस पर....


नवांकुर...

-अरुण मिश्र

यह    नवांकुर    कुक्षि   से,
रुचिरा ऋचा के जो उगा है। 
मिश्र -कुल-वंशावली-मणि-
माल, नव-कौस्तुभ लगा है।

          प्रज्ज्वलित   नव - दीप   सा,
          जो  आज  घर की  देहरी  पर। 
          क्षितिज पर  कुल - व्योम के,
          चमका  नया  नक्षत्र  भास्वर 

लहलहाई वंश की फिर बेल,
फूटी          नई        कोंपल। 
दूध     से     आँचल     भरा ;
कुल-तरु फला है पूत का फल

             पुष्प    जो    अभिनव   खिला,
             परिवार-बगिया में विहंस कर। 
             गोद  दादी   के,  पितामह  के, 
             अजिर     में ,   मोद    दे     भर 

हो 'कुशाग्र', कुशाग्र-मेधायुत,
अपरिमित    बुद्धि - बल    हो। 
मंगलम,  मधुरं,  शुभम,   प्रिय,
प्रोज्ज्वल,  प्रांजल,  प्रबल  हो 
                               *
टिप्पणी :  प्रिय पौत्र चिरंजीव  'कुशाग्र' के जन्म पर, लिखी गई यह कविता, 
उसकी वर्ष-गांठ पर, दुनिया के सभी दादाओं की ओर से दुनिया के सभी 
पोतों को समर्पित है।  
 -अरुण मिश्र    
(पूर्वप्रकाशित)

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