चन्द्रशेखराष्टकं (महर्षि मार्कण्डेय कृत)
भावानुवाद - अरुण मिश्र
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर तुम मेरे संकट हरो।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर तुम मेरी रक्षा करो।।
रजत शृङ्गों का निकेतन, रत्न शिखरों का धनुष।
बने वासुकि शिंजिनी, सायक बने श्रीहरि स्वयं।
त्रिपुर दग्धक क्षिप्र गति, त्रैलोक्य अभिवन्दित, सदा
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा ॥१॥
शोभित पदाम्बुजद्वय, सुगन्धित पञ्चपादपपुष्प से;
भाल-लोचन-ज्वाल से है जल गया मन्मथ शरीर;
भस्म भूषित, भव-विनाशक, नित्य अविनाशी स्वयं;
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा ॥२॥
मत्त गज के चर्म का जिसका मनोहर उत्तरीय;
और ब्रह्मा-विष्णु-पूजित पद-कमल जिसके सदा;
सुर-सरित की लहर-सिञ्चित, शुभ्र है जिसकी जटा,
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा॥३॥
यक्ष-मित्र, भुजंग-भूषित, दोष-मोचक इंद्र के;
शैलराज-सुता-सुशोभित वाम अंग शरीर का;
परशु औ' मृगछाल-धारी , नील जिसका कंठ है;
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा॥४॥
पुष्ट वृष वाहन, सु-कुण्डल कुण्डलीकृत वासुकी।
भुवन-पति वैभव बखानें, नारदादि मुनीश-गण;
आश्रय में अन्धकासुर, अमरपादप रूप में;
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा॥५॥
भेषज सकल भव-रोग के, हर्ता समस्त विपत्ति के;
तीन लोचन, त्रिगुण धारक, यज्ञ-ध्वंशक दक्ष के;
जो सकल अघ-ताप-नाशी, भुक्ति-मुक्ति-सुफलप्रदा
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा॥६॥
पुण्य अक्षयनिधि, दिगम्बर, भक्तवत्सल पूज्य जो,
सर्व भूताधीश, सबसे श्रेष्ठ जो हैं अप्रमेय।
सोम-वारिद आदि आठों तत्त्व में जो व्याप्त हैं,
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा॥७॥
विश्व-सृष्टि के रचयिता, पुनः पालनहार भी,
और सारे लोक के संहार का रचते प्रपञ्च।
ले गणों को संग, खेलें प्राणियों से रात-दिन
उस चन्द्रशेखर के समाश्रित, क्या करेगा यम मेरा॥८॥
॥ इति श्रीचन्द्रशेखराष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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