बुधवार, 8 नवंबर 2023

महफ़िल में बार बार किसी पर नज़र गई.../ ग़ज़ल : आग़ा बिस्मिल / गायन : ग़ुलाम अली

https://youtu.be/AfAJC8ioVus.  



महफ़िल में बार-बार किसी पर नज़र गई 
हमने बचाया लाख, मगर फिर उधर गई

उनकी नज़र में कोई तो जादू ज़रूर है
जिस पर पड़ी, उसी के जिगर तक उतर गई...

उस बे-वफ़ा की आंख से आंसू छलक पड़े
हसरत भरी निगाह, बड़ा काम कर गई...

हसरत : इच्छा, लालसा

उनके जमाल-ए-रुख पे उन्हीं का जमाल था 
वो चल दिए, तो रौनक-ए-शाम-ओ-सहर गई...
जमाल: सुंदरता
जमाल-ए-रुख : चमकता चेहरा 
रौनक : ताजगी, रोशनी, चमक
शाम-ओ-सहर : शाम और भोर

उनको खबर करो के है 'बिस्मिल' करीब-ए-मर्ग
वो आएंगे जरूर, जो उन तक खबर गई

खबर : सूचना, 
बिस्मिल : कवि आगा बिस्मिल 
करीब : आसन्न, निकट
मर्ग : मृत्यु
करीब-ए-मर्ग : मौत के करीब, मृत्यु शय्या पर

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