शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

पानी में मीन पियासी.../ कबीर / गायन : विद्या राव जी

 https://youtu.be/UyCWhA24e1g

पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी। आतम ज्ञान बिना नर भटके, कोई मथुरा कोई काशी। मिरगा नाभि बसे कस्तूरी, बन बन फिरत उदासी।। पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।।

जल-बिच कमल कमल बिच कलियाँ तां पर भँवर निवासी। सो मन बस त्रैलोक्य भयो हैं, यति सती सन्यासी। पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी।। है हाजिर तेहि दूर बतावें, दूर की बात निरासी। कहै कबीर सुनो भाई साधो, गुरु बिन भरम न जासी।

The Fish are thirsty in the water; this is what makes me laugh.
Without self realization, man wanders from Mathura to Kashi
like the Kasturi deer who does not realize the intoxicating scent
is in its own self and wanders the forest in search of it.
The One resides in your own self, the one to whom all the saints
and seers pray to. Realization is in the moment and not far away.
Kabir says, O brethren, without the Guru Man’s delusion is not
removed.

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