बुधवार, 27 मार्च 2013
मंगलवार, 26 मार्च 2013
रविवार, 24 मार्च 2013
गुरुवार, 21 मार्च 2013
जल...
About World Water Day
The United Nations
General Assembly adopted resolution A/RES/47/193
of 22
December 1992 by which 22 March of each year was declared
World Day for Water,
to be observed starting in 1993, in conformity
with the recommendations of the
United Nations Conference on
Environment and Development (UNCED) contained
in Chapter 18
(Fresh
Water Resources) of Agenda 21.
States were invited to devote
the Day, as appropriate in the national context,
to concrete activities
such as the promotion of public awareness through the
publication
and diffusion of documentaries and the organization of conferences,
round tables, seminars and expositions related to the conservation
and
development of water resources and the implementation of the
recommendations of
Agenda 21.
Water Cooperation, within the framework of the United Nations
International Year of Water Cooperation 2013, coordinated by
रविवार, 10 मार्च 2013
गंग की धारा जटा में औ’ ज़बीं पे है हिलाल.......
भगवान शिव समस्त लोक का कल्याण करें
महाशिवरात्रि पर विशेष
गंग की धारा जटा में औ’ ज़बीं पे है हिलाल.......
- अरुण मिश्र.
गंग की धारा जटा में, औ’ ज़बीं पे है हिलाल।
कंठ नीला है ज़हर से, है गले सर्पों की माल।।
तन भभूती हैं रमाये, हाथ में डमरू, त्रिशूल।
देख ये भोले की छवि, हैं पार्वती माता निहाल।।
है बदन काफूर सा, दरक़ार है कब पैरहन।
खाल ओढ़े फ़ील का, औ’ शेर की बाँधे हैं छाल।।
रात-दिन खि़दमत में हैं,सब भूतो-जि़न्न,प्रेतो-पिशाच।
भक्त को तेरे छुयें, इनमें भला किसकी मज़ाल।।
जो तिरे नज़दीक, उससे दूर भागे हर बला।
पास फटकेगी तो नन्दी, सींग से देगा उछाल।।
गंग के औ’ चन्द्र के, ठंढक का ही है आसरा।
आँख से ग़र तीसरे, निकले कहीं विकराल ज्वाल।।
बान फूलों के चला के, काम ने तोड़ी समाधि।
जल गया ज़ुर्रत पे अपनी, जग में ज़ाहिर सारा हाल।।
भस्म हो जाये न दुनिया, ताप से, संताप से।
बर्फ के मस्क़न हिमालय, तू सदा शिव को सॅभाल।।
*
महाशिवरात्रि पर विशेष
गंग की धारा जटा में औ’ ज़बीं पे है हिलाल.......
- अरुण मिश्र.
गंग की धारा जटा में, औ’ ज़बीं पे है हिलाल।
कंठ नीला है ज़हर से, है गले सर्पों की माल।।
तन भभूती हैं रमाये, हाथ में डमरू, त्रिशूल।
देख ये भोले की छवि, हैं पार्वती माता निहाल।।
है बदन काफूर सा, दरक़ार है कब पैरहन।
खाल ओढ़े फ़ील का, औ’ शेर की बाँधे हैं छाल।।
रात-दिन खि़दमत में हैं,सब भूतो-जि़न्न,प्रेतो-पिशाच।
भक्त को तेरे छुयें, इनमें भला किसकी मज़ाल।।
जो तिरे नज़दीक, उससे दूर भागे हर बला।
पास फटकेगी तो नन्दी, सींग से देगा उछाल।।
गंग के औ’ चन्द्र के, ठंढक का ही है आसरा।
आँख से ग़र तीसरे, निकले कहीं विकराल ज्वाल।।
बान फूलों के चला के, काम ने तोड़ी समाधि।
जल गया ज़ुर्रत पे अपनी, जग में ज़ाहिर सारा हाल।।
भस्म हो जाये न दुनिया, ताप से, संताप से।
बर्फ के मस्क़न हिमालय, तू सदा शिव को सॅभाल।।
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शनिवार, 9 मार्च 2013
मंगलवार, 5 मार्च 2013
आज की शाम तेरे नाम कर रहा हूँ मैं.....
ग़ज़ल
आज की शाम तेरे नाम कर रहा हूँ मैं.....
-अरुण मिश्र.
तुम्हारे नाम का, इक ज़ाम भर रहा हूँ मैं।
आज की शाम, तेरे नाम कर रहा हूँ मैं।।
फूल की पंखुरी को चूम कर, तेरे आगे।
अपने बूते से बड़ा काम, कर रहा हूँ मैं।।
तुम्हारे ज़ुल्फों से खेलेगी, रिझाएगी तुम्हें।
हवा के हाथों में, पैग़ाम धर रहा हूँ मैं।।
तुम्हारे ख़्याल के पंछी जो बहुत चंचल हैं।
तो अपने फि़क्र को भी, दाम कर रहा हूँ मैं।।
शम्आ-परवाने का यूँ जिक़्र बार-बार ‘अरुन’।
कुछ तो है राज़, जिसे आम कर रहा हूँ मैं।।
*
आज की शाम तेरे नाम कर रहा हूँ मैं.....
-अरुण मिश्र.
तुम्हारे नाम का, इक ज़ाम भर रहा हूँ मैं।
आज की शाम, तेरे नाम कर रहा हूँ मैं।।
फूल की पंखुरी को चूम कर, तेरे आगे।
अपने बूते से बड़ा काम, कर रहा हूँ मैं।।
तुम्हारे ज़ुल्फों से खेलेगी, रिझाएगी तुम्हें।
हवा के हाथों में, पैग़ाम धर रहा हूँ मैं।।
तुम्हारे ख़्याल के पंछी जो बहुत चंचल हैं।
तो अपने फि़क्र को भी, दाम कर रहा हूँ मैं।।
शम्आ-परवाने का यूँ जिक़्र बार-बार ‘अरुन’।
कुछ तो है राज़, जिसे आम कर रहा हूँ मैं।।
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