मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

गोमती-आरती



गोमती-आरती

-अरुण मिश्र 

जयति जय-जय,
जयति जय-जय,
जयति जय-जय,     
जयति जय।
जय गोमती, जय गोमती,
जय गोमती, जय गोमती।।


           तुम  आदि गंगा हो  रुचिर,
           दुहिता  महर्षि वशिष्ठ की।
           जलदायिनी,  फलदायिनी,
           वरदायिनी हो  अभीष्ट की।।


छू चरण नैमिष तीर्थ का,
पुर लक्ष्मण मुख  चूमती।
जय गोमती, जय गोमती,
जय गोमती, जय गोमती।।


           जय पुण्यसलिला, सदानीरा,
           निर्मला,      रुचिरा      नदी।
           कलि-कलुष नाशिनि,   माँ-
           सुहासिनि चन्द्रिका की कौमुदी।।


हो अवध का हिय-हार, निज   
रस-धार से भू सींचती।
जय गोमती, जय गोमती,
जय गोमती, जय गोमती।।


           चित्रित  अवध का  भू-पटल
           कर,  शस्य-श्यामल  रंग में।
           लहती  परम  विश्रान्ति  माँ,
           हो  कर   समाहित  गंग  में।।


करतीं तरंगित हर हृदय,
तेरी    तरंगें   झूमती।
जय गोमती, जय गोमती,
जय गोमती, जय गोमती।।


           शोभित मनोहर घाट हों  सब;
           स्वच्छ,    सुन्दर    कूल   हो।
           माँ ! नित्य मज्जन-पान हित,
           जल     सर्वथा   अनुकूल   हो।।


तव तीर-वासी-जन सदा,
गाते   सुमंगल   आरती।
जय गोमती, जय गोमती,
जय गोमती, जय गोमती।।


जयति जय-जय,
जयति जय-जय
जयति जय-जय,     
जयति जय।
जय गोमती, जय गोमती,
जय गोमती, जय गोमती।।

                                   *

 

शनिवार, 29 नवंबर 2014

लक्ष्मणपुर (लखनऊ को समर्पित एक कविता)

लक्ष्मणपुर

-अरुण मिश्र 

(लखनऊ को समर्पित एक कविता)







































 'अंजलि भर भाव के प्रसून ' काव्य-संग्रह से साभार  

सोमवार, 17 नवंबर 2014

महर्षि वाल्मीकि विरचित गङ्गाष्टक का काव्य-भावानुवाद

 महर्षि वाल्मीकि विरचित गङ्गाष्टक का
काव्य-भावानुवाद 




अनुवाद गत वर्षों में पूर्व प्रकाशित  
 
                               -अरुण मिश्र 
 
 
 
 
 
 
 

बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी....




अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी.......

-अरुण मिश्र.

अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी ||

दे रहीं असंख्य अर्घ्य,
गंगा की ऊर्मियाँ |
धरती पर जीवन के -
छंद , रचें रश्मियाँ ||


चम्पई उजाला भी , रेशमी अंधेरा भी |
अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी ||


ऊर्जित कर कण-कण ;
शांत, शमित तेज प्रखर |
विहंगों के कलरव में ,
स्तुति के गीत मुखर ||


ढलता तो रात और उगे तो सवेरा भी |
अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी ||


उदय-अस्त की माला
को अविरल फेरता |
सृष्टि - चक्र - मर्यादा -
मंत्र , नित्य टेरता ||


जीवन उत्थान-पतन, सुख-दुख का फेरा भी |
अस्तंगत सूर्य को एक अर्घ्य मेरा भी ||


                                 *
(पूर्वप्रकाशित)

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

अंकुश-पाश- कमल कर....

काव्यभावानुवाद  :
 
-अरुण मिश्र 
 
 
श्वेत  अंग  हैं,  श्वेत  वस्त्र  हैं,   श्वेत   पुष्प- चन्दन   से  पूजित ।
रत्नसिंहासन    क्षीरसिंधु-तट,   रत्नदीप   से    सुर-नर   अर्चित । 
चंद्रमौलि,   त्रिनेत्र,   अभय-वर दाता,    अंकुश-पाश- कमल  कर ;
शुभ-लक्ष्मी, गणपति-प्रसन्न का, शांति हेतु निज ध्यान सदा धर । । 
                                                    *
  
 

मूल संस्कृत  : 
 
श्वेताङ्गम्  श्वेतवस्त्रम्  सितकुसुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः 
क्षीराब्धौ     रत्नदीपैः    सुरनरतिलकं    रत्नसिंहासनस्थम् ।
दोर्भिः    पाशाङ्कुशाब्जाभयवरमनसं    चन्द्रमौलिं    त्रिनेत्रं 
ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं   गणपतिममलं   श्रीसमेतं   प्रसन्नम् ।। 
                                                * 
 
    

रविवार, 19 अक्टूबर 2014

आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की....



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आरति श्री लक्ष्मी-गणेश की....


अक्टूबर ,२०११ में, दीवाली-पूजन के समय मन में यह विचार आया कि,  इस अवसर पर  जब 
लक्ष्मी-गणेश की साथ-साथ पूजा होती है तो, एक संयुक्त आरती भी होनी चाहिए। पर, घर में 
उपलब्ध आरती सग्रहों में ऐसी कोई संयुक्त आरती  नहीं  मिली।  गणेश जी की जहाँ  कई 
आरती मिली, वहीँ लक्ष्मी जी की केवल एक आरती ही मिल पाई। ऐसा शायद सरस्वती-
पुत्रों के लक्ष्मी मैय्या के प्रति सहज पौराणिक अरुचि के कारण हो, जो  अनावश्यक  ही,  
"लक्ष्मी समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम......"  का दुराग्रह पाले रहते हैं और इसी कारण प्रायः 
 उन की विशेष कृपा से वंचित रह जाते हैं।

अस्तु, अगले दिन प्रातः एक संयुक्त आरती लिखने का प्रयास  किया।
ऐसी लक्ष्मी-गणेश की संयुक्त आरती मेरी जानकारी में पहले कहीं अन्यत्र उपलब्ध नहीं है।   
यह सयुंक्त आरती, दीपावली-पूजन के उपयोगार्थ, समस्त भक्त-जनों को सादर-सप्रेम प्रस्तुत हैं |

आशा है तीन छंदों की यह आरती लक्ष्मी-गणेश भक्तों को रुचिकर लगेगी तथा उन्हें सुख एवं  
संतुष्टि देगी |

अब की दीवाली-पूजन पर इस आरती का  सपरिवार सोल्लास  सदुपयोग  करें । इसे इष्ट- मित्रों 
तक भी पहुँचायें ।  

-अरुण मिश्र.  

श्री लक्ष्मी-गणेश जी की उक्त आरती को मेरे मित्र श्री केवल कुमार जी के संगीत निर्देशन में सुश्री प्राची चन्द्रा जी एवं सखियों ने स्वर दिया है। एतदर्थ मैं उन सब का आभारी हूँ। यह संगीतमय प्रस्तुति मेरे और श्री केवल कुमार के यू-ट्यूब पृष्ठ पर भी उपलब्ध है। आशा है इस बार दीपावली-पूजन पर यह उपयोगी होगी। श्री लक्ष्मी-गणेश सभी का कल्याण करें।       

-अरुण मिश्र. 

 

      *आरती* 


आरति   श्री  लक्ष्मी-गणेश   की | 

धन-वर्षणि की,शमन-क्लेश की ||

             
             दीपावलि     में     संग     विराजें |
             कमलासन - मूषक     पर    राजें |
             शुभ  अरु  लाभ,   बाजने    बाजें |
           
ऋद्धि-सिद्धि-दायक -  अशेष  की || 
 
             मुक्त - हस्त    माँ,   द्रव्य    लुटावें |
             एकदन्त,    दुःख      दूर    भगावें |  
             सुर-नर-मुनि सब जेहि जस  गावें |
             
बंदउं,  सोइ  महिमा विशेष  की ||

             विष्णु-प्रिया, सुखदायिनि  माता |
             गणपति,  विमल  बुद्धि  के  दाता |
             श्री-समृद्धि,  धन-धान्य    प्रदाता |
 
मृदुल  हास  की, रुचिर  वेश की ||
माँ लक्ष्मी, गणपति  गणेश  की ||

                                 * 
                                                                       -अरुण मिश्र  

 
(रश्मिरेख में पूर्वप्रकाशित )
 
 
 
 

शनिवार, 18 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम्



विगत कई पोस्ट में क्रमशः प्रकाशित काव्य-भावानुवाद पूरा हो गया है। 
संपूर्ण अनुवाद और मूल संस्कृत पाठ एक साथ प्रस्तुत है।
इस दीपावली पर माँ लक्ष्मी सभी पर कृपालु होवें।
शुभ-मंगलकामनायें।

   

इन्द्रकृत महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद

-अरुण मिश्र. 

तुम्हें प्रणाम महामाया हे ! श्रीपीठ-स्थित, सुरगण-पूजित।
शंख, चक्र औ’ गदा लिये कर,   महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

नमन तुम्हें  हे गरुड़ारूढ़ा !  कोलासुर के हेतु   भयङ्करि !
देवि !  समस्त पाप  हरती हो;  महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

हे सर्वज्ञ !  सर्व-वरदे माँ !  सर्व  दुष्ट-जन को  भय  देतीं।
सर्व  दुःख   हर  लेतीं   देवी;    महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

सिद्धि-बुद्धि सब देने वाली, भोग अरु मोक्ष प्रदायिनि! माता।
मन्त्र-पूत   हे   देवि   सर्वदा !  महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

तुम आद्यन्त-रहित हो देवी,  आदिशक्ति हो महेश्वरी हो।
प्रकट  और सम्भूत  योग  से;   महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

स्थूल, सूक्ष्म हो, महारौद्र हो,  महाशक्ति हो, महोदरा हो।
महापापहारिणि    हे   देवी !    महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

तुम पद्मासन पर संस्थित हो,  हे परब्रह्मस्वरूपिणि देवी!
हे परमेश्वरि !   हे जग-माता !  महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

श्वेताम्बर   धारे   हो   देवी,     नानालङ्कारों    से   भूषित।
जगत-मात हो, जगत-व्याप्त हो,महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

                                                *
                                (इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् )

महात्म्य एवं पाठ-फल  :

महालक्ष्मी-अष्टक स्तुति  यह, जो भी नर पढ़े भक्ति से। 
सर्व सिद्धि उस को मिलती है; सदा राज्य-वैभव है पाता।।

प्रति दिन एक बार जो पढ़ता, महापाप उस के धुल जाते।
जो दो बार नित्य पढ़ता है, होता है धन-धान्य समन्वित।।

तीन बार जो पढ़ता,  उस के   महाशत्रु तक का विनाश हो।
नित्य महालक्ष्मी प्रसन्न हों, वरदायिनि, कल्याणकारिणी।। 

                                               *       



मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

नमस्तेस्तु  महामाये  श्रीपीठे    सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

नमस्ते   गरुडारूढे       कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे   देवि     महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

सर्वज्ञे       सर्ववरदे        सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदुःखहरे   देवि    महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रपूते  सदा  देवि  महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

आद्यन्तरहिते देवि   आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते   महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे          महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे     देवि     महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

पद्मासनस्थिते   देवि     परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि       जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

श्वेताम्बरधरे   देवि        नानालङ्कार् भूषिते।
जगतिस्थते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

                                   *
      (इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् )

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति   राज्यं प्राप्नोति  सर्वदा॥

एककाले     पठेन्नित्यं       महापापविनाशनम्।
द्विकालं  यः  पठेन्नित्यं  धनधान्यसमन्वितः॥

त्रिकालं   यः   पठेन्नित्यं     महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं    प्रसन्ना   वरदा    शुभा॥
                           
                                    *
 

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम् (क्रमशः ८)














महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद (क्रमशः ८)


-अरुण मिश्र.


श्वेताम्बर   धारे   हो   देवी,     नानालङ्कारों    से   भूषित।
जगत-मात हो, जगत-व्याप्त हो,महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।

                                               *
               (इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् )

 
 
मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

श्वेताम्बरधरे   देवि        नानालङ्कार् भूषिते।
जगतिस्थते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥

                                   *
      (इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् )

  
                                  


गुरुवार, 16 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम् (क्रमशः ७)











महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद (क्रमशः ७)


-अरुण मिश्र.


तुम पद्मासन पर संस्थित हो,  हे परब्रह्मस्वरूपिणि देवी!
हे परमेश्वरि !   हे जग-माता !  महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।७।।  

                                                             *

मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

पद्मासनस्थिते   देवि     परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि       जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥७॥ 
  
                                   *

बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम् (क्रमशः ६)
















महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद (क्रमशः ६  )


-अरुण मिश्र.


स्थूल, सूक्ष्म हो, महारौद्र हो,  महाशक्ति हो, महोदरा हो।
महापापहारिणि    हे   देवी !    महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।६।। 

                                                              *

मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे          महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे     देवि     महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥६॥  

                                   *

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम् (क्रमशः ५ )













महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद (क्रमशः ५ )


-अरुण मिश्र.


तुम आद्यन्त-रहित हो देवी,  आदिशक्ति हो महेश्वरी हो।
प्रकट  और सम्भूत  योग  से;   महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।५।।


                                                                *

मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

आद्यन्तरहिते देवि   आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते   महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥५ ॥
 
                                   *

सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम् (क्रमशः ४)










महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद (क्रमशः ४)


-अरुण मिश्र.


सिद्धि-बुद्धि सब देने वाली, भोग अरु मोक्ष प्रदायिनि! माता।
मन्त्र-पूत    हे    देवि     सर्वदा !    महालक्ष्मी  तुम्हें  नमन है।।४ ।।


                                                                  *

मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी।
मन्त्रपूते  सदा  देवि  महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥४॥  

                                   *

रविवार, 12 अक्टूबर 2014

अक्टूबर में आम्र-मंजरी

अक्टूबर में आम्र-मंजरी














अक्टूबर में आम्र-मंजरी

-अरुण  मिश्र 

पेड़  आम  का   मेरे लॉन  में,
यूँ  तो  आम    आम  जैसा है । 
पर  इस में  कुछ ख़ास बात है,
यह भी  मनमौजी  मुझ सा है ॥ 

वर्षा, ग्रीष्म, शरद सब में सम,
जब जी आये  फगुआ,  कजरी ।
नव-पल्लव  हैं  मध्य शरद में, 
अक्टूबर    में      आम्र-मंजरी ॥ 

                            *    




महालक्ष्मी अष्टकम् ( क्रमशः ३)











महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद ( क्रमशः ३)

-अरुण मिश्र.


हे सर्वज्ञ !  सर्व-वरदे माँ !  सर्व  दुष्ट-जन को  भय  देतीं।
सर्व  दुःख   हर  लेतीं   देवी;    महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।३ ॥

                                      *

मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

सर्वज्ञे       सर्ववरदे        सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदुःखहरे   देवि    महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥३॥ 


                                   *

शनिवार, 11 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम् ( क्रमशः २)

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महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद ( क्रमशः २ )

-अरुण मिश्र.

नमन तुम्हें  हे गरुड़ारूढ़ा !  कोलासुर के हेतु   भयङ्करि !
देवि !  समस्त पाप  हरती हो;  महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।२।।


                                      *

मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

नमस्ते  गरुडारूढे  कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥२।।


                                   *
 

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम्



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महालक्ष्मी अष्टकम्

"हंस मर रहे भूखे , उल्लुओं की  पौ बारह,
 लक्ष्मी मैया की भी सुरसती से क्या ठनी ॥"

                                         

                                           -अरुण मिश्र

शरद् पूर्णिमा बीत गयी है।
दीपावली का पक्ष प्रारम्भ हो गया है।
इस दीपावली में सरस्वती मइया की कृपा से,
इन्द्रकृत लक्ष्मी अष्टकम् (जो संभवतः पद्मपुराण में है)
का भावानुवाद करने को ठाना है।
लक्ष्मी मैया और सरस्वती मैया का बैर जग जाहिर है।
अब भगवान ही बेड़ा पार करें। (और ये दोनोँ देवियाँ भी
क्षमाशील एवं कृपालु होवें।)

काव्य-भावानुवाद (क्रमशः) :

तुम्हें प्रणाम  महामाया हे ! श्रीपीठ-स्थित, सुरगण-पूजित।
शंख, चक्र औ’ गदा लिये कर,   महालक्ष्मी   तुम्हें  नमन है।।१॥


मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

नमस्तेस्तु  महामाये   श्रीपीठे   सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥१॥