सोमवार, 30 जनवरी 2023

मन बसियो हो मन बसियो.../ सद्गुरु प्रेमानन्द स्वामी / राग : झिंझोटी / गायन : आदित्य आप्टे

 https://youtu.be/AbdvQsV5EiA

मन बसियो हो मन बसियो...
राग : झिंझोटी 

मन बसियो हो मन बसियो,
प्यारो महाराज लाल,
नटवर रूप अनूप साँवरो,
मनमोहन मतवारो 
मन बसियो हो मन बसियो...

तान सुनावत मन ललचावत 
रसियो धर्मदुलारो
मन बसियो हो मन बसियो...

मन्मथगंजन मुनिमनरंजन,
गोपीजन दृग तारो
मन बसियो हो मन बसियो... 

प्रेमानंद के राखुं नैनन में,
नेक न करुं अब न्यारो 
मन बसियो हो मन बसियो...

रविवार, 29 जनवरी 2023

गुरु अष्टकम् / आदि शंकराचार्य / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/F89yS-QQgfo  

शरीरं सुरुपं तथा वा कलत्रं
यशश्चारू चित्रं धनं मेरुतुल्यम्
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

यदि शरीर रुपवान हो, पत्नी भी रूपसी हो और सत्कीर्ति चारों दिशाओं 
में विस्तरित हो, मेरु पर्वत के तुल्य अपार धन हो, किंतु गुरु के श्रीचरणों 
में यदि मन आसक्त न हो तो इन सारी उपलब्धियों से क्या लाभ?

कलत्रं धनं पुत्रपौत्रादि सर्वं
गृहं बान्धवाः सर्वमेतद्धि जातम्
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

सुन्दरी पत्नी, धन, पुत्र-पौत्र, घर एवं स्वजन आदि प्रारब्ध से सर्व सुलभ 
हो किंतु गुरु के श्रीचरणों में मन की आसक्ति न हो तो इस प्रारब्ध-सुख 
से क्या लाभ?

षडंगादिवेदो मुखे शास्त्रविद्या
कवित्वादि गद्यं सुपद्यं करोति
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

वेद एवं षटवेदांगादि शास्त्र जिन्हें कंठस्थ हों, जिनमें सुन्दर काव्य-निर्माण 
की प्रतिभा हो, किंतु उसका मन यदि गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न 
हो तो इन सदगुणों से क्या लाभ?

विदेशेषु मान्यः स्वदेशेषु धन्यः
सदाचारवृत्तेषु मत्तो न चान्यः
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

जिन्हें विदेशों में समादर मिलता हो, अपने देश में जिनका नित्य जय-जयकार 
से स्वागत किया जाता हो और जो सदाचार-पालन में भी अनन्य स्थान रखता 
हो, यदि उसका भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति अनासक्त हो तो इन सदगुणों 
से क्या लाभ?

क्षमामण्डले भूपभूपालवृन्दैः
सदा सेवितं यस्य पादारविन्दम्
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

जिन महानुभाव के चरणकमल पृथ्वीमण्डल के राजा-महाराजाओं से नित्य 
पूजित रहा करते हों, किंतु उनका मन यदि गुरु के श्री चरणों में आसक्त न 
हो तो इसे सदभाग्य से क्या लाभ?

यशो मे गतं दिक्षु दानप्रतापात्
जगद्वस्तु सर्वं करे सत्प्रसादात्
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

दानवृत्ति के प्रताप से जिनकी कीर्ति दिगदिगान्तरों में व्याप्त हो, अति उदार 
गुरु की सहज कृपादृष्टि से जिन्हें संसार के सारे सुख-ऐश्वर्य हस्तगत हों, किंतु 
उनका मन यदि गुरु के श्रीचरणों में आसक्तिभाव न रखता हो तो इन सारे 
ऐश्वर्यों से क्या लाभ?

न भोगे न योगे न वा वाजिराजौ
न कान्तासुखे नैव वित्तेषु चित्तम्
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

जिनका मन भोग, योग, अश्व, राज्य, धनोपभोग और स्त्रीसुख से कभी विचलित 
न हुआ हो, फिर भी गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाया हो तो इस मन 
की अटलता से क्या लाभ?

अरण्ये न वा स्वस्य गेहे न कार्ये
न देहे मनो वर्तते मे त्वनर्घ्ये
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

जिनका मन वन या अपने विशाल भवन में, अपने कार्य या शरीर में तथा अमूल्य 
भंडार में आसक्त न हो, पर गुरु के श्रीचरणों में भी यदि वह मन आसक्त न हो 
पाये तो उसकी सारी अनासक्तियों का क्या लाभ?

अनर्घ्याणि रत्नादि मुक्तानि सम्यक्
समालिंगिता कामिनी यामिनीषु।
मनश्चेन्न लग्नं गुरोरंघ्रिपद्मे
ततः किं ततः किं ततः किं ततः किम्

अमूल्य मणि-मुक्तादि रत्न उपलब्ध हो, रात्रि में समालिंगिता विलासिनी पत्नी भी 
प्राप्त हो, फिर भी मन गुरु के श्रीचरणों के प्रति आसक्त न बन पाये तो इन सारे 
ऐश्वर्य-भोगादि सुखों से क्या लाभ?

गुरोरष्टकं यः पठेत्पुण्यदेही 
यतिर्भूपतिर्ब्रह्मचारी च गेही।
लभेत् वांछितार्थ पदं ब्रह्मसंज्ञं 
गुरोरुक्तवाक्ये मनो यस्य लग्नम्॥

जो यती, राजा, ब्रह्मचारी एवं गृहस्थ इस गुरु-अष्टक का पठन-पाठन करता है 
और जिसका मन गुरु के वचन में आसक्त है, वह पुण्यशाली शरीरधारी अपने 
इच्छितार्थ एवं ब्रह्मपद इन दोनों को सम्प्राप्त कर लेता है यह निश्चित है।

शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

विद्यादायिनि शारदे.../ सरस्वती वंदना / स्वर : पद्मा वाडकर

https://youtu.be/VDiAQ8omy6c  

विद्यादायिनि शारदे...

स्वर : पद्मा वाडकर 
संगीत : आचार्य जियालाल वसंत 

विद्यादायिनि शारदे !
नादब्रह्म स्वर ज्ञानदायिनी, 
मधुरिम वीणावादिनी।
पुण्य बावड़ी भर दे, वर दे,
विद्यादायिनि शारदे! 

परमानन्द वत्सले,
रस रंजित स्वर-
लय निनाद से 
जीवन झंकृत कर दे
विद्यादायिनि शारदे!

गुरुवार, 26 जनवरी 2023

विनवहुँ मातु सरस्वति चरना.../ अरुण मिश्र

https://youtu.be/vm6d4FqBPWU








विनवहुँ मातु सरस्वति चरना...

विनवहुँ मातु सरस्वति ! चरना। 
कलुष, कुबुद्धि, कुसंसय हरना।।

                    शुभ्र वसन, शुभ-अंग विराजे। 
                    कर निज वीणा, पुस्तक साजे। 
                    फटिक-माल उर, हंस सवारी। 
                    करहु कृपा, कवि-कुल महतारी।।

बंदउँ चरन-कमल सुख-करना। 
सब तजि मातु, गहउँ तव सरना।।

                     विद्या, बुद्धि, ज्ञान अरु प्रज्ञा। 
                     मिलइ न मातु,तुम्हारि अवज्ञा। 
                     सकल कला कीरति कै दाता 
                     तव पद-पंकज नेहु, सुमाता।।

प्रणवहुँ कमलासना, सु-बरना। 
तुम रक्षक, काहू को डरना।।

बुधवार, 25 जनवरी 2023

ऋतु वसंत की आई .../ नृत्य प्रस्तुति : अनन्या

 https://youtu.be/nWAbcHpR05I 

बसंत पंचमी पर हमारी फसल गेहूँ जौ चना आदि तैयार हो जाती है।
इसलिए इसकी खुशी मे सभी भारतीय बसंत पंचमी का त्योहार
मनाते हैं। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते है और पीले फूलो से माँ
सरस्वती की पुजा अर्चना करते हैं। ऋतुराज बसंत की छटा निहारकर
जड़ चेतन सभी मे नव जीवन का संचार होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से
भी यह ऋतु बड़ी ही उपयुक्त है। बसंत ऋतु ऋतुओं का राजा कहलाया
जाता है। इसमे प्रकृति का सौन्दर्य सभी ऋतुओं से अधिक होता हैं |
इसकी सुंदरता देख कर मनुष्य भी झूम उठता है। यह दिन विद्यार्थियो
के लिए भी विशेष महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन सभी विद्यालयों
में माँ सरस्वती की अर्चना की जाती है। इस तरह बसंत पंचमी का
त्योहार हर्ष उल्लास के साथ पूर्ण होता है।

ऋतु वसंत की आई.../ टी.वी. शो देवों के देव महादेव से


धरती अम्बर झूम रहे हैं, 

चहुँ दिशि खुशियां छाई। 

ऋतु वसंत की आई ।।    


वृक्ष लता ने हैं पहने 

सतरंगी फूलों के गहने 

चारों दिशा सुवासित करती

पवन वसंती लगी  बहने  

बगिया में अलियों की गुंजन 

सुन कलियां मुस्कायीं। 

ऋतु वसंत की आई ।।    


रुत आ गयी रे, रुत छा गयी रे.../ फिल्म अर्थ १९४७ से 

रुत आ गयी रे
रुत छा गयी रे

पीली-पीली सरसों फूले
पीले-पीले पत्ते झूमें
पीहू-पीहू पपीहा बोले
चल बाग़ में

धमक-धमक ढोलक बाजे
छनक-छनक पायल छनके
खनक-खनक कंगना बोले
चल बाग़ में

चुनरी जो तेरी उड़ती है
उड़ जाने दे
बिंदिया जो तेरी गिरती है
गिर जाने दे

रुत आ गयी रे
रुत छा गयी रे

रविवार, 22 जनवरी 2023

सूर्य मण्डल स्तोत्र.../ श्री भविष्योत्तरपुराण / श्री कृष्णार्जुन संवाद

https://youtu.be/32TGOFRIVmE 
नमोऽस्तु सूर्याय सहस्ररश्मये
सहस्रशाखान्वित सम्भवात्मने ।
सहस्रयोगोद्भव भावभागिने
सहस्रसङ्ख्यायुधधारिणे नमः ॥ 1 ॥

यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालं
रत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम् ।
दारिद्र्यदुःखक्षयकारणं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 2 ॥

यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं
विप्रैः स्तुतं भावनमुक्तिकोविदम् ।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्यं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 3 ॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनन्त्वगम्यं
त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम् ।
समस्ततेजोमयदिव्यरूपं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 4 ॥

यन्मण्डलं गूढमतिप्रबोधं
धर्मस्य वृद्धिं कुरुते जनानाम् ।
यत्सर्वपापक्षयकारणं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 5 ॥

यन्मण्डलं व्याधिविनाशदक्षं
यदृग्यजुः सामसु सम्प्रगीतम् ।
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 6 ॥

यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति
गायन्ति यच्चारणसिद्धसङ्घाः ।
यद्योगिनो योगजुषां च सङ्घाः
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 7 ॥

यन्मण्डलं सर्वजनैश्च पूजितं
ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके ।
यत्कालकालाद्यमनादिरूपं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 8 ॥

यन्मण्डलं विष्णुचतुर्मुखाख्यं
यदक्षरं पापहरं जनानाम् ।
यत्कालकल्पक्षयकारणं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 9 ॥

यन्मण्डलं विश्वसृजं प्रसिद्धं
उत्पत्तिरक्षप्रलय प्रगल्भम् ।
यस्मिन् जगत्संहरतेऽखिलं च
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 10 ॥

यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोः
आत्मा परं‍धाम विशुद्धतत्त्वम् ।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 11 ॥

यन्मण्डलं वेदविदोपगीतं
यद्योगिनां योग पथानुगम्यम् ।
तत्सर्व वेद्यं प्रणमामि सूर्यं
पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम् ॥ 12 ॥

सूर्यमण्डलसु स्तोत्रम् यः पठेत्सततं नरः ।
सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥

इति श्री भविष्योत्तरपुराणे श्री कृष्णार्जुन संवादे सूर्य मण्डल स्तोत्र ।

I offer my respectful obeisances unto the sun-god, whose 
rays are thousands of rays and who has thousands of branches.
O Lord, You are the source of all mystic powers. 141

The orb of the sun is vast and shining like a jewel.
May that excellent sun, the cause of all poverty and misery, 
purify me.142॥

The Mandala is well worshiped by hosts of demigods and praised 
by brāhmaṇas. I offer my respectful obeisances unto the sun-god, 
who is the best of the sun-gods. 143॥


The orb of the Supreme Personality of 


Godhead is dense in knowledge 
and is accessible to the three worlds. May that divine form, which is full 
of all effulgence, purify me. 144॥
The circle that is mysterious and very enlightening increases the religious 
principles of the people. May that sun-god, who is the source of all sins, 
purify me. 145॥
The Mandala is capable of destroying disease, and the Yajur Veda is sung 
in the Sāma Veda. May the sun-god, who has illuminated the earth, the 
heavens and the earth, purify me. 146॥
The scholars of the Vedas call it the Mandala, and the hosts of Siddhas 
chant it. May the sun, the best of all, purify me by the hosts of mystics 
and those who are engaged in yoga. 147॥
The orb that is worshiped by all people and the light that shines in this 
world of mortals. May that sun-god, whose form is timeless and begining 
less, purify me. 148॥
The orb of the four-faced Lord Viṣṇu is the syllable that destroys the sins 
of men. May that sun-god, who causes the destruction of time and ages, 
purify me. 149॥
The sphere of the universe is famous for its creation, protection and 
annihilation. May the sun-god, who withdraws the entire universe, 
purify me. 150॥
The sphere in which the Supreme Personality of Godhead, Lord Viṣṇu, 
is situated, is the supreme abode of the Supreme Personality of Godhead.
May that sun-god, who is the best of all, purify me by following the path of 
mystic power through subtle means. 151॥
The circle of the Vedas is spoken of by the knowers of the Absolute Truth 
and chanted by the hosts of Siddhas who chant it. May the sun, the best 
of the suns, whose orb is remembered by those who know the Vedas, 
purify me. 152॥
The circle of the Vedas is sung by the learned, and it is accessible to 
the yogīs on the path of yoga. I offer my respectful obeisances unto the 
sun-god, who knows all the Vedas. May that sun-god, the best of the suns, 
purify me. 153॥

Anyone who constantly recites this eightfold mantra is pious. 
One who is purified of all sins is situated in the sun-god’s planet. 154॥