गुरुवार, 17 अगस्त 2023

बेटी बेचवा.../ रचना : भिखारी ठाकुर / स्वर : दीपाली सहाय

https://youtu.be/zI7M0TXvcPI 


भिखारी ठाकुर (१८८७ -१९७१), भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी, लोक-
जागरण के सन्देश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक थे। वे बहु-
आयामी प्रतिभा के व्यक्ति थे। वे भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना एवं अपने
सामाजिक कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वे एक महान लोक कलाकार थे जिन्हें 'भोजपुरी का
शेक्शपीयर' कहा जाता है।

एक समय था जब समाज की एक ऐसी प्रथा थी जहाँ छोटी लड़कियों की शादी बुज़ुर्ग
इंसान से कर दी जाती थी। पैसों की कमी और बेटी को पालने का भार नहीं सहन कर
पाने की क्षमता ने इस कुरीति को जन्म दिया और इसको दिल चीरकर इस गाने के
माध्यम से समझाया, ‘शेक्सपियर ऑफ भोजपुरी’ माने जाने वाले, परम आदरणीय,
भिखारी ठाकुर जी ने। ये गीत मन में कई सवाल खड़े करता है और विवश करता है
सोचने पर कि क्या आज भी औरत की गिनती दूसरे दर्जे के नागरिकों में होती है? बेशक
हालात सुधरे हैं पर अभी भी काम बाक़ी है !

गिरिजा-कुमार!, करऽ दुखवा हमार पार;
ढर-ढर ढरकत बा लोर मोर हो बाबूजी।
पढल-गुनल भूलि गइलऽ, समदल भेंड़ा भइलऽ;
सउदा बेसाहे में ठगइलऽ हो बाबूजी।
केइ अइसन जादू कइल, पागल तोहार मति भइल;
नेटी काटि के बेटी भसिअवलऽ हो बाबूजी।
रोपेया गिनाई लिहलऽ, पगहा धराई दिहलऽ;
चेरिया के छेरिया बनवलऽ हो बाबूजी।
साफ क के आँगन-गली, छीपा-लोटा जूठ मलिके;
बनि के रहलीं माई के टहलनी हो बाबूजी।
गोबर-करसी कइला से, पियहा-छुतिहर घइला से;
कवना करनियाँ में चुकली हों बाबूजी।
बर खोजे चलि गइलऽ, माल लेके घर में धइलऽ;
दादा लेखा खोजलऽ दुलहवा हो बाबूजी।
अइसन देखवलऽ दुख, सपना भइल सुख;
सोनवाँ में डललऽ सोहागावा हो बाबूजी।
बुढऊ से सादी भइल, सुख वो सोहाग गइल;
घर पर हर चलववलऽ हो बाबूजी।
अबहूँ से करऽ चेत, देखि के पुरान सेत; डोला
काढ़ऽ, मोलवा मोलइहऽ मत हो बाबूजी।
घूठी पर धोती, तोर, आस कइलऽ नास मोर;
पगली पर बगली …

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