शनिवार, 2 अगस्त 2025

शिवोऽहम् शिवोऽहम्.../ आदि शंकराचार्य कृत/ स्वर : शुभांगी जोशी

https://youtu.be/K3eASJiYVVo   

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं 
पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। 
पूर्णस्य पूर्णमादाय 
पूर्णमेवावशिष्यते॥


 मनोबुद्धयहंकारचित्तानि नाहम्
 न च श्रोत्र जिह्वे न च घ्राण नेत्रे
न च व्योम भूमिर्न तेजॊ न वायु: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥1॥


मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न च प्राण संज्ञो न वै पञ्चवायु: 
न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोश:
न वाक्पाणिपादौ  न चोपस्थपायू 
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥2॥


मैं न प्राण हूं,  न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं,
और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ 
मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥3॥


न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दु:खम् 
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदार् न यज्ञा:
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता 
चिदानन्द रूप:शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥4॥


मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


न मे मृत्यु शंका न मे जातिभेद:
पिता नैव मे नैव माता न जन्म:
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्य: 
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥5॥


न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।


अहं निर्विकल्पॊ निराकार रूपॊ
 विभुत्वाच्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्
सदा मे समत्त्वं न मुक्तिर्न बंध:
चिदानन्द रूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥6॥


मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।

 
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवागँसस्तनूभिः ।
व्यशेम देवहितं यदायूः ।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्षर्यो अरिष्टनेमिः ।
स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ॥


ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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