रविवार, 14 नवंबर 2010

बाल-दिवस पर विशेष



सभी बच्चों को  बाल-दिवस की   शुभकामनायें
- अरुण मिश्र






प्यारे बच्चे, भूखे बच्चे...   

 - अरुण मिश्र

( टिप्पणी :  वर्ष 2002 में बाल-दिवस पर, विद्यालयों में मध्याह्न-भोजन योजना के पक्ष में लिखी गई कविता यथावत प्रकाशित.)


                : भूमिका :

       "सूबे के ऐ ! हुक्मरानों , वक़्त  के आक़ा सुनो।
        नन्हें बच्चों के  हक़ों पे,  डालो न  डाका सुनो।
        देश  की  ऊँची अदालत का भी ऐसा हुक्म है।
        बच्चे अब स्कूलों में ,  ना करेंगे फ़ाक़ा  सुनो।।"

          

        : वेदना :

ये   बच्चे ,  प्यारे   बच्चे  हैं।
ऑखो   के   तारे   बच्चे   हैं।
ये  बच्चे  फूल हैं  बगिया के।
ये    राजदुलारे    बच्चे    हैं।।

        ये  बच्चे, भारत  के  दिल  हैं।
        ये  भारत के  मुस्तक़बिल हैं।
        कुछ   इनमें   नंगे - भूखे   हैं।
        कुछ   बच्चे   सूखे - सूखे   हैं।।

ये  कमखुराक़ के  हैं  शिकार ।
हम  कहें   इन्हें,  स्कूल  चलो।
तुम  कठिन पहाड़े  याद करो।
औ’ आग  पेट की  भूल चलो।।

        इन  बच्चों   को  स्कूलों   में,
        जो मिले  दोपहर का भोजन।
        ढेरों   आयें,  मन   लगा  पढ़ें,
        शिक्षा पे  व्यर्थ न होवे  धन।।

तन-मन से स्वस्थ  यही बच्चे,
लड़      पायेंगे     बीमारी     से।
सम्पदा    बनेंगे    भारत    की;
शिक्षित;  विमुक्त   लाचारी  से।।

        अच्छी    विद्या     ये     सीखेंगे,
        उत्तम   भोजन  से   हो  पोषित।
        होंगे तन-मन से स्वस्थ,सबल,
        कोई   न  सकेगा  कर  शोषित ।।
               
इस  बाल-दिवस पर  मंचो से।
लफ़्फाजी    होगी   बार - बार।
जयकारों  से  घिर ,  नेतागण,
भाषण     उगलेंगे    लगातार।।

        मंचों     से    प्रवचन    उछलेंगे,
        औ’  बुद्धिजीवियों   के   विचार।
        द्यड़ियाली      ऑसू       टपकेंगे,
        बच्चों   के   हित  में   लगातार।।

इस    राजनीति     के    होवेंगे,
लेकिन फिर से बच्चे , शिकार।
कोई      नेता ,     कोई     मंत्री,
ऐ  काश !  कि,  होता  शर्मसार।।
                         *


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