- अरुण मिश्र
"माता शैलसुतासपत्नि वसुधाश्रृंगारहारावलि
स्वर्गारोहणवैजयन्ति भवतीं भागीरथि प्रार्थये |
त्वत्तीरे वसतस्त्वदम्बु पिबतस्त्वद्वीचिषु प्रेंखत-
स्त्वन्नाम स्मरतस्त्वदर्पितदृशः स्यान्मे शरीरव्ययः||"
- महर्षि वाल्मीकि (गंगाष्टक, श्लोक १)
माता शैलपुत्री की सहज सपत्नी तुम,
धरती का कंठहार बन कर सुशोभित हो।
स्वर्ग-मार्ग की हो तुम ध्वज-वैजयन्ती मॉ-
भागीरथी ! बस तुमसे इतनी है प्रार्थना-
बसते हुये तेरे तीर, पीते हुये तेरा नीर,
होते तरंगित गंग, तेरे तरंगों संग।
जपते तव नाम, किये तुझ पर समर्पित दृष्टि,
व्यय होवे मॉं ! मेरे नश्वर शरीर का।।
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