ग़ज़ल
&अरुण मिश्र
शामो & सहर सिंदूरी प्यास।
मृग की है कस्तूरी प्यास।।
आये पास तो प्यास बुझे।
मेरी उसकी दूरी प्यास।।
माना भूख जरूरी है।
उससे मगर जरूरी प्यास।।
रूप के दरिया से न बुझी।
सारी उमर अधूरी प्यास।।
मैने ही कब चाहा है।
होवे मेरी पूरी प्यास।।
बादल की मजबूरी बूँद।
चातक की मजबूरी प्यास।।
ज़ाम के संग&संग मुफ्त मिली।
साक़ी से दस्तूरी प्यास।।
होगी ऐश अमीरों की।
मुफ़लिस की मज़दूरी प्यास।।
दुनिया रंगीं मयखाना।
^अरुन*] हुई अंगूरी प्यास।।
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