वो ऑखें इन ऑखों में कुछ जादू सा करती हैं. : ग़ज़ल : |
-अरुण मिश्र.
वे ऑखें, इन ऑखों को, अक्सर हैं रुला देतीं।
इक आन में ज़ां लेतीं, इक छिन में जिला देतीं।।
वो ऑखें, इन ऑखों को, उल्फ़त का सिला देतीं।
मिलती हैं जो आपस में,दिल,दिल से मिला देतीं।।
साक़ी की तरह, मन में फिर मिसरी घुला देतीं।।
वे नज़रें मुझ पे फिरतीं, जब भोर के किरन सी।
मन के चमन में सौ-सौ, गुन्चों को खिला देतीं।।
वो ऑखें, इन ऑखों में, कुछ जादू सा करती हैं।
ऑखें खुली रह जातीं , पर होश सुला देतीं।।
रहे-इश्क़ के सिवा वे , हर राह भुला देतीं।।
उन ऑखों का‘अरुन’ है, एहसान इन ऑखों पर।
सपनों के हिंडोले में , तन-मन को झुला देतीं।।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें